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हर इलाके में वोट का हिसाब-किताब
रोहतास को धान का कटोरा भी कहा जाता है. सड़कों की खस्ता हालत और सिंचाई की उचित व्यवस्था नहीं होने से किसान गुस्से में हैं. उनकी नाराजगी कोई एक से नहीं, सभी से है. इसके बावजूद वेमतदान में हिस्सा लेंगे. जिले में जिस किसी से मिलिए, वह आपको वोट का हिसाब-किताब बता देगा. प्रभात खबर […]
रोहतास को धान का कटोरा भी कहा जाता है. सड़कों की खस्ता हालत और सिंचाई की उचित व्यवस्था नहीं होने से किसान गुस्से में हैं. उनकी नाराजगी कोई एक से नहीं, सभी से है. इसके बावजूद वेमतदान में हिस्सा लेंगे. जिले में जिस किसी से मिलिए, वह आपको वोट का हिसाब-किताब बता देगा. प्रभात खबर के गया संस्करण के संपादक कौशल किशोर त्रिवेदी की रिपोर्ट.
बिहार के बाकी जिलों की तरह रोहतास में भी न खूबी कम है न कमी. शेरशाह से लेकर जगजीवन राम तक, जिले से जुड़े कई ऐसे नाम हैं, जिन पर रोहतास के लोग गर्व करते हैं. रोहतास जिले की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है. यहां के लोग अपने जिले की खासियतें गिनाते वक्त इसे ‘धान का कटोरा’ बताना नहीं भूलते. खेतों पर नजर डालिए, तो इनका दावा भी सही लगता है.
इन दिनों जिले में सर्वत्र धान की लहलहाती फसल दिख रही है. इन उपलब्धियों के साथ-साथ लोग दुखी भी हैं और नाराज भी. खेती के लिए पानी की कमी, जगह-जगह सड़कों की खस्ताहाली, खनन माफियाओं की मनमानी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं में कमी के साथ ही विकास के मोरचे पर ऐसी कई रुकावटों से रोज इनका सामना होता है, जिनके लिए यहां के लोग शासन-प्रशासन और अंतत: राजनीति को ही जिम्मेवार मानते हैं. प्रशासन व राजनीति से नाराज होने के बावजूद आगामी 16 अक्तूबर को यहां होनेवाले मतदान में लोग भाग लेंगे.
सासाराम में मिले करगहर के रूपेश कुमार सिंह ने कहा, ‘लोग वोट तो देंगे ही. वोट देना भी चाहिए. आखिर तभी तो लोकतंत्र में आपकी आवाज सुनी जा सकेगी. अब तो नाराज मतदाताओं के लिए भी नोटा का प्रावधान भी है न!’
रोहतास जिले के चेनारी विधानसभा क्षेत्र की सीमा सासाराम शहर से सटे मोरसराय के पास ही शुरू होती है. शहर से निकल कर शिवसागर की दिशा में एनएच-2 की तरफ बढ़ने के दौरान ओल्ड जीटी रोड पर सत्तू बेचनेवाले के ठेले के इर्द-गिर्द पांच-छह लोग एकत्र हैं.
यहां कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सभा की चर्चा के बीच एक सज्जन कहने लगते हैं, ‘ऐ मरदिया केहू का अइला-गइला से कवनो फरक पड़ेके बा. हम-तूं जवन बानी, तवने रहब जा. प्रधानमंत्री स्वच्छता अभियान चलावतारन. लेकिन, इहां का हाल बा. देखतारù नूं. शहर से गांव तक सड़के शौचालय बनल बा. चेनारी से ही मोरसराय आये प्रमोद कुमार हाथ में सत्तू का गिलास लिये कहते हैं, ‘कइलो का जाव महाराज. एही में नूं रास्ता खोजे के बा. भोटवा ना देला से भी तù कवनो फायदा नइखे.’
इसी इलाके में कुम्हऊ भी है. कुम्हऊ रेलवे स्टेशन से कुछ दूरी पर. गांव में प्रवेश करते ही एक स्कूल के करीब एक पेड़ के नीचे रामविनोद सिंह व जयप्रकाश सिंह मिलते हैं. साथ हैं कुछ और लोग. प्रेस की गाड़ी देखते ही एक सज्जन जानना चाहते हैं कि कहीं कोई बड़ा नेता तो नहीं आनेवाला. उनके सवाल के साथ ही बातचीत शुरू होती है. पहले राम विनोद सिंह कहते हैं कि वोट के बारें क्या सोचना है. यहां तो पिछड़ी आबादी है. इस पर जयप्रकाश सिंह कहते हैं कि आबादी चाहे जैसी भी हो, वोट तो देना ही है.
अगला पड़ाव नोखा इलाके में है. यहां बाजार इलाके में पहुंचने पर कई लोग मिलते हैं. इनमें काराकाट विधानसभा क्षेत्र में स्थित सुसाढ़ी के दिनेश तिवारी भी हैं. खुद अखबार के कारोबार से जुड़े हैं. इसलिए सबसे पहले अखबार का ही हालचाल पूछते हैं. बातचीत में कहते हैं कि उनका इलाका धान के लिए चर्चित है. इसके बाद उन्होंने कहा, इस समय केवल वोट की बातें हो रही हैं. नेताओं को सत्ता मिल जाये, इसके लिए उन्हें वोट दीजिए और फिर चुपचाप पांच वर्ष हाथ पर हाथ धरे बैठे रहिए.
नोखा शहर से निकल कर एक नहर के किनारे से होकर गुजरती बुरी तरह खराब हो चुकी सड़क पर हिचकोले खाते हुए दिनारा विधानसभा क्षेत्र में प्रवेश करने पर करहसी गांव में एक छोटी नहर के किनारे एक ही जगह तीन-चार लोग खड़े मिलते हैं. आगे का रास्ता पूछने के लिए इनसे बात होती है. बात आगे बढ़ने पर यहीं मिले नरेंद्र प्रसाद तुरंत वोटों पर चले आते हैं. बेलाग-लपेट कह बैठते हैं कि उनके गांव में फिफ्टी-फिफ्टी का हिसाब है.
चुनाव के दिन तक हवा के हिसाब से कोई भी आगे निकल सकता है. इसी जगह मिलते हैं राजेश प्रसाद. लेकिन, वह नोखा के डुमरा से यहां आये हैं. वह कहते हैं, ‘हमारे यहां तो नोटा का सौ वोट रखा हुआ है. जब पड़ेगा, तो नोटा पर ही.’ यह पूछने पर कि ऐसा क्यों, उनका जवाब है कि गांववाले सबसे नाराज हैं. करहसी के 35 वर्षीय युवक विजय कुमार राय कहते हैं कि वे लोग रोज रात-रात भर जग कर पानी की रखवाली कर रहे हैं. अफसर हैं कि सुनने का नाम नहीं लेते.
सासाराम शहर में पुन: प्रवेश करने पर एक रोड साइड टी स्टॉल पर विवेक ओझा से मुलाकात होती है. गौरक्षणी इलाके में रहते हैं. चुनाव पर बातचीत में कहते हैं कि सासाराम में रहनेवाले लोग चाहें तो केवल यहां लगनेवाले जाम और उड़नेवाले डस्ट (धूल) को ही मुद्दा बना कर वोट नहीं दें. इनसे हर तबका परेशान है.
सासाराम शहर से गया की दिशा में जीटी रोड की तरफ बढ़ने पर डेहरी विधानसभा क्षेत्र की सीमा शुरू होती है. डेहरी में कलकतिया पुल के पास इंद्रपुरी के धनेश प्रसाद मिलते हैं. किराना दुकान चलाते हैं. चुनाव की चर्चा होने पर कहते हैं, ‘अब पहिले जइसन नइखे. जेकर जहां मन बा, भोट देता. एके घर में अलग-अलग पाटी के भोट बा.’ बातचीत में वह यह भी कहते हैं, ‘अबहीं केहू ना बताई कि उ केकरा भोट दीही. उल्टे इहे कह दी कि उतù भोटे ना दी.
लेकिन अइसन बहुत लोग चुनाव का दिन बदल जाला. भोटो गिरा देवे ला लोग. आ भोट ना देला से का बन जाई, रउरे बताईं ना? एसे अच्छा बा कि भोट देके नेता पर काम के दबाव बनाईं. आखिर वोट से ही तो बदलाव हो सकता है.
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