अगर नये भारत के निर्माण का मंत्र ‘मेक इन इंडिया’ है, तो जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल के दौरे के महत्व का आकलन इस बात से होना चाहिए कि क्या इस मंत्र को लेकर उनके मन में विश्वास गहरा हुआ है और क्या भारत अपने इस मंत्र के जरिये जर्मनी के निवेशकों को पहले की तुलना में ज्यादा आकर्षित करने में सफल हुआ है.
दोनों देशों के बीच हुए इंटर गवर्नमेंटल कंसल्टेशन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चांसलर एंजेला मर्केल के संयुक्त बयान से निकले संकेतों से इन दोनों प्रश्नों के उतर हां में मिलते हैं.
एक तो आपसी सहयोग के 18 समझौतों और एमओयू पर हस्ताक्षर होना ही दोनों देशों के बीच पारस्परिक सहयोग की बढ़ती भावना का पता देता है. दूसरे, जिन समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं, उनमें ज्यादातर आपसी व्यापार और निवेश बढ़ाने, विनिर्माण के क्षेत्र में साझेदारी, लोगों को इंडस्ड्री की जरूरतों के मुताबिक कौशल प्रदान करने, स्वच्छ ऊर्जा और बुनियादी ढांचे के विकास से संबंधित हैं.
अगर प्रधानमंत्री के स्किल इंडिया मिशन, स्वच्छ भारत अभियान तथा मेक इन इंडिया जैसी महत्वाकांक्षी पहलकदमियों को ध्यान में रखें, तो जाहिर होगा जर्मनी के साथ हुए समझौते इनसे तालमेल बिठा कर किये गये हैं और ये सभी समझौते लंबी अवधि के हैं. संकेत साफ है कि जर्मनी नये भारत के निर्माण में सहयोग देने के लिए तत्पर है. भारत के लिहाज से मर्केल के दौरे की सबसे ठोस उपलब्धि है सौर-परियोजना तथा स्वच्छ ऊर्जा के विकास-विस्तार के लिए भारत को सवा दो अरब डॉलर की सहायता देने पर जर्मनी का राजी होना. दुनिया के विकसित देश भारत के औद्योगिक विकास पर लगाम कसने के लिए जलवायु-परिवर्तन और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की ओट लेते हैं.
उनका तर्क होता है कि भारत का औद्योगिक विकास जैविक ऊर्जा पर आश्रित होने के कारण पर्यावरणीय प्रदूषण का जिम्मेवार है और मानवता को जलवायु-परिवर्तन के खतरों से बचाने के लिए भारत को चाहिए कि वह स्वच्छ ऊर्जा का इस्तेमाल करे. पेरिस में जलवायु-परिवर्तन पर वैश्विक सम्मेलन होनेवाला है, जहां भारत को भी स्वच्छ ऊर्जा के विकास के मामले में किये जा रहे अपने प्रयासों के बारे में सूचित करना होगा. जर्मनी से प्राप्त सहायता इस लिहाज से महत्वपूर्ण है. फिलहाल भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में जर्मनी सात देशों से पीछे है.
बीते 25 सालों में भारत में जर्मनी का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सवा आठ अरब डॉलर का रहा है, लेकिन मेक इन इंडिया के नारे के बाद से इसमें इजाफा हुआ है. अकेले 2014 में भारत में जर्मनी का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एक अरब डॉलर से ज्यादा का रहा. उम्मीद बांधी जा सकती है कि हालिया समझौतों के बाद इसमें और ज्यादा तेजी आयेगी. जर्मनी का सहयोगी रुख भारत के लिए एक और कारण से महत्वपूर्ण है. भारत में फिलहाल 1700 जर्मन कंपनियां कारोबार कर रही हैं. इनमें ज्यादातर मंझोले आकार की हैं.
इनकी अकसर शिकायत रही है कि भारत में नौकरशाही काम में अड़ंगे लगाती है और बौद्धिक संपदा की सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था नहीं है. ज्यादातर जर्मन कंपनियों को भारत में उन पर लागू कराधान तथा व्यवस्थागत भ्रष्टाचार से परेशानी रही है. उनकी एक बड़ी समस्या भारतीय कामगारों के पेशेवर रूप से पर्याप्त प्रशिक्षित नहीं होने को लेकर भी है. एंजेला मर्केल के दौरे के वक्त ये शिकायतें मुखर हुईं और दोनों देशों के बीच हुए समझौतों में इन शिकायतों को दूर करने के संकेत भी पढ़े जा सकते हैं. नौकरशाही के अड़ंगों को धता बताने के लिए दोनों देशों के बीच फास्ट ट्रैक एप्रूवल एग्रीमेंट हुआ है. कौशल के विकास को लेकर हुआ समझौता भी इस लिहाज से महत्वपूर्ण है.
जर्मनी व्यावसायिक शिक्षा के मामले में दुनिया में अव्वल माना जाता है और इससे संबंधित समझौते से भारत के स्किल इंडिया मिशन को बल मिलेगा. मर्केल के दौरे से भारत और यूरोपियन यूनियन के बीच फ्री ट्रेड पैक्ट की दिशा में बात आगे बढ़ने की संभावनाएं प्रबल हुई हैं. यूरोपियन यूनियन ने भारत से आयातित सात सौ जेनरिक दवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया था.
तब से फ्री ट्रेड पैक्ट की दिशा में बातचीत बंद हो गयी थी. मर्केल ने भारत से वादा किया है कि वे इस बातचीत को आगे बढ़ाने में सहयोग करेंगी.
आतंकवाद के निरोध पर दोनों देशों के बीच बनी आपसी सहमति और संयुक्त राष्ट्रसंघ के सुरक्षा परिषद् में संरचनागत बदलाव की दिशा में दोनों देशों का पारस्परिक सहयोग के लिए हामी भरना भी इस दौरे की कामयाबियों में गिना जायेगा, जो एक बार फिर संकेत देता है कि विदेशों में भारत की छवि चमकाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयास रंग ला रहे हैं.