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दो दिनों में 50 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किये गये

दो दिनों में 50 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किये गयेतसवीर राज देंगेबंगला साहित्य पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्नवरीय संवाददाता, रांचीरांची विवि पीजी के बांग्ला विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में 50 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किये गये़ समापन समारोह में मुख्य अतिथि रांची विवि के कुलपति डॉ रमेश कुमार पांडेय ने कहा […]

दो दिनों में 50 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किये गयेतसवीर राज देंगेबंगला साहित्य पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्नवरीय संवाददाता, रांचीरांची विवि पीजी के बांग्ला विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में 50 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किये गये़ समापन समारोह में मुख्य अतिथि रांची विवि के कुलपति डॉ रमेश कुमार पांडेय ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम का आयोजन भविष्य में भी होना चाहिए़ मौके पर रांची विवि के जनजातीय भाषा विभाग के शोधार्थी ने खोरठा व बांग्ला में समानता पर अपना शोध पत्र पढ़ा़ विश्वभारती विवि के प्रो अमर कुमार पॉल ने कहा कि बांग्ला में किशोर व शिशु साहित्य काफी समृद्ध है़ इस दौरान कोलकाता विवि के प्रो तपन बंदोपाध्याय ने बांग्ला उपन्यास के विभिन्न आयामों पर विस्तृत चर्चा की़ असम विवि की प्रो बेला दास व डॉ रफीकुल्ला खान ने भी अपनी बातें रखी़ं कार्यक्रम का संचालन डॉ शुभ्रा चटर्जी ने किया़ कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ वरूण कुमार बंदोपाध्याय ने की़ संगोष्ठी को सफल बनाने में डॉ एनके बेरा, डॉ कमल बोस, डॉ केतकी सर्वाधिकारी, डॉ पंपा सेन विश्वास, डॉ वरूण राय, डॉ प्रिया रंजन, रिया भट्टाचार्य, राजकुमार पाणिग्रही, पुलकेश मंडल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी़ सामाजिक तिरस्कार ने साहित्यकार बनाया: डॉ जलदासबांग्ला देश से आये साहित्यकार डॉ हरिशंकर जलदास ने कहा कि समाजिक तिरस्कार ने उन्हें साहित्यकार बना दिया. उन्होंने बताया कि वे मछुआरे जाति के है़ं मछुआरे को हीन भाव से देखा जाता था़ उनको भी सामाजिक तिरस्कार का सामना करना पड़ा़ तब उन्होंने प्रण लिया कि वो अपनी भावनाओं को लिखेंगे़ 47 वर्ष की उम्र में उन्होंने लिखना शुरू किया़ उन्होंने दलित व पीड़ितों पर नौ पुस्तकों की रचना की़ उनकी सभी रचनाओं के लिए उन्हें पुरस्कार मिला.

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