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कैसा क्रिकेट-प्रेम!
व्यक्ति अपने विवेक से जाना जाता है, भीड़ अपने उन्माद से! कटक के बारामती स्टेडियम में दक्षिण अफ्रीकी टीम के साथ सीरीज के दूसरे टी-ट्वेंटी मैच में जो कुछ अशोभनीय हुआ, उससे निकलनेवाला सबसे जरूरी सवाल यही है कि क्या हम एक उन्मादी भीड़ में तब्दील होने की राह पर हैं? दर्शकों के हो-हल्ले और […]
व्यक्ति अपने विवेक से जाना जाता है, भीड़ अपने उन्माद से! कटक के बारामती स्टेडियम में दक्षिण अफ्रीकी टीम के साथ सीरीज के दूसरे टी-ट्वेंटी मैच में जो कुछ अशोभनीय हुआ, उससे निकलनेवाला सबसे जरूरी सवाल यही है कि क्या हम एक उन्मादी भीड़ में तब्दील होने की राह पर हैं? दर्शकों के हो-हल्ले और दुर्व्यवहार के कारण मैदान पानी की बोतलों से भर गया, खिलाड़ियों का मैदान में खड़ा रहना मुश्किल हो गया और सभ्य लोगों का खेल कहा जानेवाला क्रिकेट-मैच दो दफे रोकना पड़ा.
अपना देश क्रिकेट-प्रेमियों का देश है, लेकिन क्या यह प्रेम इतना विध्वंसक भी हो सकता है कि मनचाहा परिणाम न निकले, तो प्रेम के विषय को यानी क्रिकेट के खेल को ही तहस-नहस कर दे. विध्वंस प्रेम की नहीं, उन्माद की सूचना है और ऐसा कोई भी उन्माद देश-समाज के लिए गंभीर चिंता और चिंतन का सबब होना चाहिए. माना कि पहला मैच गंवाने के बाद सीरीज में बने रहने के लिए कटक का मैच जीतना जरूरी था, लेकिन अपनी मनचाही टीम अजेय स्कोर न बना सके या मनचाहा खिलाड़ी मनमाफिक प्रदर्शन न कर पाये, तो दर्शकों में सहनशीलता खत्म हो जाना और अपने दुर्व्यवहार से क्रिकेट के खेल को ही लज्जित तथा दंडित करना क्या उचित कहलायेगा? क्या दर्शक के रूप में हम जीत देखने के लिए इतने अधीर और आतुर हो चले हैं कि किसी खेल को उसकी पूरी प्रक्रिया में न देख कर हम सिर्फ अपने मनचाहे परिणाम तक सीमित कर देना चाहते हैं.
याद रहे कि खेल हमेशा अपनी प्रक्रिया के भीतर ही होता है और नतीजे के अनिश्चित होने के कारण ही उसका आकर्षण है, वरना तीन दशक पहले कौन कह सकता था कि भारतीय क्रिकेट टीम विश्वविजयी वेस्टइंडीज को हराने का चमत्कार करेगी. खेल को अपने मनपसंद नतीजे का औजार मान कर व्यवहार करना असल में खेल के बुनियादी नियम से इनकार करना है. क्रिकेट का दायरा इतना विस्तृत हो चुका है कि अब यह दो देशों के आपसी संबंधों में भी दखल रखता है.
जो देश क्रिकेट खेलते हैं, वहां के दर्शकों के व्यवहार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस बात का संकेतक भी समझा जाता है कि उस देश में कितना अमन-चैन है. यानी यह बात अंततः देश की अंतरराष्ट्रीय छवि से भी जुड़ी है. इसलिए, क्रिकेट के दर्शक और देश के नागरिक के रूप में हमें कुछ भी ऐसा नहीं करना चाहिए, जिससे खेल के बुनियादी नियम का नकार झांकता हो और एक शांतिप्रिय देश की छवि धूमिल होती हो.
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