न्यूयार्क : विश्व को आर्थिक वृद्धि बढाने के लिए चीन के अलावा कुछ ‘अतिरिक्त कंधों’ की जरुरत है और यह भारत के लिए मौका है. यह बात वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कही. कोलंबिया विश्वविद्यालय में कल यहां छात्रों और अध्यापकों को संबोधित करते हुए जेटली ने कहा कि भारत में आकांक्षाएं बढाने की क्रांति अच्छा संकेत है. उन्होंने कहा कि भारत अब ऐसी स्थिति में पहुंच गया है जबकि वह छह से आठ प्रतिशत की वृद्धि दर से संतुष्ट नहीं है और ज्यादातर भारतीयों का मानना है कि ‘मेरी आठ प्रतिशत की सामान्य वृद्धि दर, शायद, नौ प्रतिशत के करीब या इससे अधिक का संकेतक है.’
उन्होंने कहा, ‘नीति-निर्माताओं पर जो दबाव बन रहा है उसमें मुझे कुछ भी गलत नजर नहीं आता क्योंकि जितनी तेजी से आप आगे बढते हैं, सरकार के लिए उतना ही अच्छा है.’ उन्होंने कहा ‘विश्व के सबसे मजबूत कंधों में से चीन था. विश्व को अब वृद्धि दर को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ अतिरिक्त कंधों की जरुरत है.’ जेटली ने कहा ‘यह बडा मौका है और यदि हम उस दिशा में आगे बढना बरकरार रखते हैं जिस दिशा में अभी अग्रसर हैं, तो मुझे लगता है कि अगले कुछ साल में जहां तक आर्थिक हालात का सवाल है ज्यादा अनुकूल माहौल के मद्देनजर हमारी वृद्धि दर बढेगी, हमारी वृद्धि दर्ज करने की क्षमता बढेगी और गरीबी से संघर्ष की हमारी क्षमता भी कम से कम सुधरेगी.’
भारत को बताया वैश्विक वृद्धि का साथी
जेटली ने कोलंबिया विश्वविद्यालय के स्कूल आफ इंटरनैशनल एंड पब्लिक अफेयर्स के दीपक एंड नीरा राज सेंटर ऑन इंडियन इकानामिक पालिसीज के उद्घाटन के मौके पर मुख्य अभिभाषण में बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि भारत ने पिछले साल करीब 7.3 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की और आंतरिक अनुमान के मुताबिक इस साल ‘हमारा प्रदर्शन इससे कहीं बेहतर रह सकता है.’ उन्होंने कहा कि सबसे बडी समस्याओं में एक है कराधान मामलों में विश्वसनीयता. उन्होंने कहा ‘जहां तक कराधान मामलों का सवाल है, हमारी ओर से बहुत कुछ करने की जरुरत है. प्रत्यक्ष कर के लिहाज से हमने विश्व में विश्वसनीयता खो दी.’
आक्रामक कराधान प्रणाली ने देश का कोई भला नहीं किया है. इससे कर तो आया नहीं लेकिन बदनामी जरुर मिली. उन्होंने कहा ‘सरकार में किसी के लिए भी यह गंभीर चुनौती होगी कि जिन मामलों में आकलन आदेश जारी हो चुका है उन्हें सिर्फ न्यायिक प्रक्रिया के द्वारा परे किया जा सकता न कि कार्यकारी आदेश के जरिए.’ साथ ही कहा कि इनमें से हरेक मुद्दे का समाधान उनके लिए सबसे कठिन चुनौतियों में से हैं. उन्होंने हालांकि संतोष जाहिर किया कि प्रत्यक्ष कर से जुडे ये सभी मुद्दे अब निपटाए जा रहे हैं.
कराधन समस्या को हल करने में काफी हद तक सफल
जेटली ने कहा कि सरकार ने कराधान समस्या के समाधान के हल के लिए कानूनी और शासकीय तरीकों सहित सभी विकल्प खुले रखे हैं. उन्होंने कहा ‘मुझे लगता है कि पिछली तारीख से कराधान का भय कमोबेश खत्म दूर किया जा चुका है.’ वित्त वर्ष 2016-17 से कार्पोरेट कर की दर चरणबद्ध तरीके से घटा कर 25 प्रतिशत करने की शुरुआत हो जाएगी. जेटली ने कहा कि वह व्यक्तिगत बचत को प्रोत्साहित करने वाली रियायतों को छोडकर ज्यादातर छूटों को खत्म करने पर भी विचार कर रहे हैं.
उन्होंने कहा ‘अगले चार साल में कार्पोरेट कर की समग्र दर घटकर 25 प्रतिशत पर आ जाएगी. मैं एक-एक कर उन कर छूटों को खत्म करुंगा. मैं जल्दी ही उन करछूटों के संबंध में अधिसूचना जारी करने वाला हूं जिन्हें इसी साल तर्कसंगत बनाया जाना है.’ वृहत्-आर्थिक बुनियादी कारकों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति आम तौर पर नियंत्रण में है और केंद्रीय बैंक ने पिछले 16 महीनों में धीरे ही सही लेकिन दृढता से मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखते हुए रेपो दर में लगभग 1.25 प्रतिशत की कटौती की है.
राजकोषीय घाटा नियंत्रण में, अर्थव्यवस्था में सुधार
जेटली ने कहा कि राजकोषीय घाटा भी नियंत्रण में है और देश राजकोषीय घाटे का लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में है. उन्होंने कहा ‘इन बुनियादी लक्ष्यों को प्राप्त करने और राजकोषीय सावधानी के बाद हम अगले दो-ढाई साल में (2018 तक) राजकोषीय घाटे को (जीडीपी के) तीन प्रतिशत तक सीमित करने का लक्ष्य प्राप्त करना चाहते हैं और हम इसे प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर हैं.’ चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को 3.9 प्रतिशत तक सीमित रखने का लक्ष्य है. अमेरिका और 11 अन्य भागीदार देशों के बीच हुए प्रशांत-पारीय समझौते और इन समझौतों से उत्पन्न परिस्थितियों का सामना करने की तैयारियों के बारे में पूछने पर जेटली ने कहा कि भारत अपनी अर्थव्यवस्था और मजबूत करना होगा और वह विश्व के विभिन्न हिस्सों में व्यापार समझौतों पर बातचीत कर रहा है. उन्होंने कहा ‘हमने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि हम पृथक नहीं रह सकते.’ उन्होंने कहा एक वक्त था कि जब भारत में ऐसी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्थाओं के खिलाफ आंदोलन का माहौल हुआ करता था. ‘हम इस पूरी व्यवस्था को रोकने का प्रयास करते थे लेकिन अब यह समझ बनी है कि भारत को इन सभी कार्यों में केंद्रीय भूमिका निभाने वालों के बीच रहना है.’
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