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विकास मुद्दा है पर वोट तो जाति के नाम पर ही पड़ेगा
सुबह के साढ़े चार बजे भागलपुर स्टेशन परिसर एसएससी परीक्षार्थियों से पटा था. भागलपुर से आजिमगंज पैसेंजर (53030 डाउन) के लिए बार-बार रेलवे की ओर से एनाउंसमेंट किया जा रहा था. टिकट लिया और फटाफट ट्रेन में पहुंच कर अपनी सीट सुराक्षत कर ली. बोगी में भीड़ कम थी. नियत समय 4:45 बजे ट्रेन खुल […]
सुबह के साढ़े चार बजे भागलपुर स्टेशन परिसर एसएससी परीक्षार्थियों से पटा था. भागलपुर से आजिमगंज पैसेंजर (53030 डाउन) के लिए बार-बार रेलवे की ओर से एनाउंसमेंट किया जा रहा था. टिकट लिया और फटाफट ट्रेन में पहुंच कर अपनी सीट सुराक्षत कर ली.
बोगी में भीड़ कम थी. नियत समय 4:45 बजे ट्रेन खुल गयी. मेरे बगल की सीट पर एक सज्जन आंख पर पेपर रख कर सो रहे थे, एकदम बे-फिक्र होकर. ट्रेन में इस तरह से सोते हुए बहुत कम लोगों को देखा है, वह भी पैसेंजर ट्रेन में.
सबौर और लैलख ममलखा पीछे छूट गये और बोगी में कोई हलचल नहीं. कोई उंघ रहा था तो कोई अपने आप में मगन था. लगभग पौने छह बजे ट्रेन घोघा स्टेशन पहुंची. घोघा स्टेशन पर शिक्षक अवधेश मंडल सवार हुए और मेरी बगल की सीट पर आकर बैठ गये. फिर ट्रेन खुलने के साथ ही उनसे बातचीत भी शुरू हो गयी. धीरे-धीरे बात घूम-फिर कर चुनावी
चर्चा तक पहुंची. अवधेश बाबू रहनेवाले घोघा के हैं और उनकी पंचायत पीरपैंती विधासभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है. मेरे सवाल कि इस बार आपके यहां चुनाव में क्या तसवीर बन रही है, पर वे उबल पड़ते हैं. कहते हैं- पता नहीं हमारी तीन पंचायतों को क्यों पीरपैंती में शामिल कर दिया गया.
पिछली बार वोट किया था. पांच साल हो गये. जीतने के बाद कभी विधायक जी को हमलोगों की याद नहीं आयी. वह एक बार भी हाल-चाल लेने आये. अबकी बार तो कोई प्रत्याशी वोट मांगने भी नहीं पहुंचा है. इसके बाद निराशा भरे स्वर में उन्होंने कहा- भैया कोई जीते कोई हारे जनता की समस्या न कभी सुलझी है, न सुलझेगी.
निराशा सिर्फ उनके आवाज में ही नहीं थी, चेहरे पर भी दिख रही थी. अब तक हमारी बगल में बैठे सज्जन जो आंखों पर अखबार डाल कर सो रहे थे, की आंखें भी खुल चुकी थी और वे भी इस चर्चा में शामिल होने के लिए तत्पर थे. अवधेश की के चुप होते ही उन्होंने कहा – भैया सभी लोग तो विकास की ही बात कर रहे हैं. सब बिहार का विकास करने का दावा कर रहे हैं. लगता है जैसे विकास की हवा चल पड़ी है.
इस बार तो चुनाव में विकास जरूर मुद्दा बनेगा. इस बीच अवधेश बाबू भी उस सज्जन के विकास की बात का जवाब देने के लिए तैयार हो चुके थे. तपाक से कहा-भैया आज तक किसी नेता ने अपना छोड़ कर किसी का विकास किया है क्या. विकास तो वोट लेने के लिए नेताओं का जुमला बन गया है. आजादी के बाद से आज तक किसी एक मुद्दे का समाधान नहीं हो पाया है. नेता भी जान गये हैं अब वोटर जागरूक हो गये हैं. इसलिए अब उनको रिझाने के लिए विकास का नारा दिया जा रहा है.
इतना बोलने के बाद आवधेश बाबू कुछ देर के लिए चुप हो जाते है, खिड़की के बाहर थूकने के बाद कहते हैं, भाई नेता भले ही विकास की बात कर लें, लेकिन वोट तो जाति को ही जायेगा.
इ बात सभी दल के बड़े नेता भी जानते हैं, इसलिए सभी दलों ने जाति का गुणा-भाग करके ही सभी सीटों पर अपना प्रत्याशी तय किया है. अगर विकास को ही मुद्दा बनाना था, तो टिकट बंटवारे में जाति को महत्व क्यों दिया. इतने में कहलगांव में ट्रेन में सवार पीरपैंती के व्यवसायी मनोहर टिबड़ेवाल ने इस बातचीत में कूदते हुए कहा-देखिये, भाई साहब, विकास मुद्दा बने न बने लेकिन इस बार चुनाव में जनता स्थानीय मुद्दे पर वोट जरूर करेगी. तब तक एक चाय बेचनेवाला वहां पहुंच चुका था. सुबह के साढ़े छह बज चुके थे और चाय की तलब हो रही थी. चाय वाले को रोका और एक कप चाय मांगी. टटोलनेवाले लहजे में चायवाले से पूछा, इस बार चुनाव में क्या संभावना बन रही है.
किस मुद्दे पर वोट करोगे? चाय वाले ने कहा, क्या भैया. आप भी क्या पूछते हैं.. बिहार में चुनाव में कभी मुद्दे पर वोट पड़ा है क्या? मुद्दे की बात नेता जितना कह लें, कर लें, वोट तो जाति के आधार पर होगा. तब तक ट्रेन पीरपैंती पहुंच चुकी थी और मैं ट्रेन से उतरने की तैयारी में लगा था.
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