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लालबहादुर शास्त्री जयंती : शास्त्री जी के जीवन के अंतिम आठ घंटे

-अनुज कुमार सिन्हा- भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत 11 जनवरी, 1966 को तड़के ताशकंद (तब के सोवियत संघ) में हुई थी. सरकार ने भले ही घोषणा की थी कि उनकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई है लेकिन किसी को उस समय भी भरोसा नहीं हुआ था. जांच की मांग […]

-अनुज कुमार सिन्हा-
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत 11 जनवरी, 1966 को तड़के ताशकंद (तब के सोवियत संघ) में हुई थी. सरकार ने भले ही घोषणा की थी कि उनकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई है लेकिन किसी को उस समय भी भरोसा नहीं हुआ था. जांच की मांग उठी थी.
शास्त्री जी की पत्नी ललिता शास्त्री ने भी उसी समय जांच की मांग की थी, लेकिन कुछ हुआ नहीं. हाल ही में सुभाष चंद्र बोस (नेताजी) से संबंधित कुछ गोपनीय फाइल को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सार्वजनिक किया है. उसके बाद शास्त्री जी के पुत्र अनिल शास्त्री ने भी अपने पिता (लाल बहादुर शास्त्री) की मौत से जुड़ी गोपनीय फाइल (संभवत: ऐसी फाइल है) को सार्वजनिक करने की मांग कर दी है ताकि दुनिया सच जान सके.
शास्त्री जी की मौत का असली कारण बता पाना आसान नहीं है, क्योंकि उनके शव का न तो सोवियत संघ में पोस्टमार्टम किया गया था और न ही भारत में. लेकिन शक के पर्याप्त कारण थे.
इनमें एक था उनके शव का नीला हो जाना, शरीर पर कटने का दाग. इसलिए यह भी सवाल उठा कि क्या शास्त्री जी की मौत खाने में जहर देने से हुई थी? या समझौते को लेकर शास्त्री जी काफी मानसिक दबाव में थे और इसी कारण उन्हें दौरा पड़ा. बहुत सी बातें स्पष्ट हो जाती हैं उनके साथ अंतिम दिन, अंतिम क्षणों में रहे उनके सहयोगियों के बयान से. ऐसे ही एक व्यक्ति थे सीपी श्रीवास्तव, शास्त्री जी के निजी सचिव रह चुके थे. वरिष्ठ आइएएस, जो प्रधानमंत्री के संयुक्त सचिव के नाते दौरे में उनके साथ थे. उन्होंने अपनी पुस्तक राजनीति में सत्यनिष्ठ जीवन : लाल बहादुर शास्त्री (अनुवादक : शंकर नेने) में कई तथ्यों का जिक्र किया है.
1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध विराम के बाद सोवियत संघ के तत्कालीन प्रध़ानमंत्री कोसीजिन दोनों देशों के बीच समझौता कराना चाहते थे. इसके लिए जनवरी में कार्यक्रम तय हुआ. शास्त्री जी 3 जनवरी 1966 को ताशकंद गये थे. पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान भी ताशकंद पहुंच चुके थे. कोसीजिन ने खुद रूचि लेकर दोनों का स्वागत किया था. समझौते के पहले अयूब खान का रुख इतना अड़ियल था कि उन्होंने कोसीजिन को कह दिया था-भारतीय प्रध़ानमंत्री से हाथ नहीं मिलाऊंगा. इस पर कोसीजिन नाराज हुए थे. तब अयूब खान माने थे.
शास्त्री-अयूब समझौता वार्ता कई बार बिगड़ी थी. अंतत: 10 जनवरी, 1966 को शाम चार बजे भारत-पाक के बीच समझौता हुआ जिस पर शास्त्री जी और अयूब खान ने हस्ताक्षर किया. तब शाम के चार बज रहे थे. दोनों खुश थे. अयूब खान ने इतना तक कहा-कल लौटते वक्त आप रावलपिंडी (पाकिस्तान) में रुके और चाय पी कर जायें. (हालांकि शास्त्री जी को दूसरे दिन भारत नहीं लौटना था बल्कि काबुल जाना था).
इसके बाद शास्त्री जी ने भारतीय पत्रकारों से बात की.
फिर अपने कमरे में चले गये. शाम में साढ़े सात बजे वे प्रधानमंत्री कोसीजिन द्वारा आयोजित भोज में शामिल हुए. इसमें अयूब खान भी थे. अच्छे माहौल में बात हुई थी. फिर शास्त्री अपने आवास (जहां वे ठहरे थे) लौट गये. कुछ देर तक सीपी श्रीवास्तव (सचिव) से बात की. कहा-हर दिन लेट से सोते हैं. कल सवेरे काबुल जाना है. क्यों न हम सभी आज जल्द सो जायें.
श्रीव़ास्तव से उन्होंने कहा-वहां (काबुल में) ठंड काफी पड़ती है. आप गरम कपड़ा रख लेंगे. श्रीवास्तव ने जवाब दिया-ठीक है. लेकिन हम अभी होटल जा रहे हैं. कुछ भारतीय पत्रकारों से मिलना है. शास्त्री ने पूछा-ठंड ज्यादा है. मेरी गाड़ी ले जाइए. इतना कह कर वे खुद बाहर आये और अपने ड्राइवर को निर्देश देते हुए श्रीवास्तव को हाथ हिला कर अपनी गाड़ी से विदा किया. तब रात के साढ़े दस बज रहे थे.
जिस जगह शास्त्री जी ठहरे थे, वहां उनके साथ उनके निजी कर्मचारी जगन्नाथ सहाय और एमएन शर्मा भी थे. निजी सहायक रामनाथ, निजी चिकित्सक चुग और कपूर भी उसी आवास में ठहरे थे, नीचे के तल्ले पर. श्रीवास्तव को विदा करने के बाद साढ़े दस बजे जब शास्त्री जी अपने कमरे में आये तो उनसे रामनाथ ने पूछा-क्या खाना परोसा जाये?.
उस समय जगन्नाथ सहाय भी वहां पर थे. शास्त्री जी ने कहा-वैसे तो कुछ खास भूख नहीं है. थोड़ा ठहर कर उन्होंने कहा-अच्छा, डबल रोटी, एक स्लाइस, कुछ सब्जी और फल ले आओ. यह खाना तैयार किया था मोहम्मद जान और एक रूसी रसोइये ने. मोहम्मद जान पहले मास्को में भारतीय राजदूत टीएन कौल के आवास पर खाना बनाता था. दोनों रसोइये द्वारा बनाये गये भोजन को लेकर रामनाथ शास्त्री जी के पास गये और खाना खिलाया.
तब तक शास्त्री जी बिल्कुल स्वस्थ थे. इसी बीच दिल्ली से प्रधानमंत्री के निजी सचिव वीएस वेंकटरामन का फोन आया था. फोन जगन्नाथ सहाय ने रिसीव किया था. शास्त्री जी ने जगन्नाथ सहाय से कहा-वेंकट से पूछो कि भारत में इस समझौते पर क्या प्रतिक्रिया है. वेंकट ने फोन पर कहा था-जनसंघ के अटल बिहारी वाजपेयी और समाजवादी पार्टी के एसएन द्विवेदी को छोड़ कर किसी ने आलोचना नहीं की है. शास्त्री जी ने कहा-विरोधी दल तो आलोचना करेंगे ही. खाना खाने के बाद शास्त्री ने दिल्ली में अपने परिजनों से बात की.
वे पत्नी ललिता शास्त्री से बात करना चाह रहे थे लेकिन ललिता शास्त्री को टेलीफोन पर बात साफ-साफ सुनाई नहीं दे रही थी. परिवार के अन्य सदस्यों से उन्होंने बात की और समझौते पर प्रतिक्रिया के बारे में जानकारी ली. दामाद को कहा-कल के विमान से अखबार यहां भेज दीजिए.
जगन्नाथ सहाय ने शास्त्री जी से कहा-अच्छा होगा काबुल से भारत लौटते समय पाकिस्तान होकर न जायें क्योंकि हाल ही में पाकिस्तान ने भारत का एक यात्री विमान मार गिराया था (जिसमें गुजरात के सीएम बलवंत की मौत हो गयी थी). शास्त्री ने कहा-अब ऐसा नहीं होगा.
इसी बीच भारत के सूचना प्रसारण विभाग के छायाकार नारायण स्वामी और प्रेम वैद्य वहां शास्त्री जी की तसवीर लेने पहुंचे थे. शास्त्री जी उस समय टोपी नहीं पहने थे. छायाकारों के आग्रह पर टोपी पहनी और तसवीर खिंचवायी. (यह जीवित शास्त्रीजी की अंतिम तसवीर थी).
अब तक 11.30 बज चुके थे. सहाय वहां से चले गये. फिर रामनाथ ने जाकर शास्त्री जी को दूध पीने के लिए दिया. समय था लगभग 12 बजे रात्रि का. उन्होंने रामनाथ को कहा-जा कर सो जाओ. अन्य लोग अपना सामान बांध रहे थे. चिकित्सक चुग भी सो गये थे. इसी बीच लगभग 1.20 बजे शास्त्री अपने सहयोगियों के पास खुद चल कर आ गये और पूछा कि डॉक्टर कहां हैं? जाहिर था कि शास्त्री जी को तकलीफ हो रही थी. सहयोगी शर्मा और कपूर उन्हें कमरे की ओर पकड़ कर ले जाना चाहा. शास्त्री जी बगैर किसी सहारे के खुद चल कर कमरे में गये. उन्हें खांसी उठी और लगातार खांसने लगे.
इस बीच डॉ चुग भी आ गये. दवा लेकर. शास्त्री जी बोल नहीं पा रहे थे. इशारे से पानी मांगा. शर्मा ने पानी दिया जिसे उन्होंने पी लिया. डॉ चुग ने उन्हें इंजेक्शन दिया. शास्त्री जी लगातार खांस रहे थे और हरे राम, हरे राम बोलते जा रहे थे. एक बजकर 32 मिनट पर खांसते-खांसते शास्त्री जी का शरीर अचानक शांत हो गया. उनके प्राण निकल चुके थे.
तब तक उनके सचिव सीपी श्रीवास्तव आ चुके थे. खबर मिलते ही रात में कोसीजिन और अयूब खान भी पहुंचे. सोवियत संघ के चिकित्सक भी पहुंचे. कहा गया कि शव पर लेप लगाना होगा ताकि शव खराब नहीं हो. चिकित्सक यही दावा करते रहे कि लेप के कारण उनका शव नीला पड़ गया था लेकिन किसी को इस पर भरोसा नहीं हुआ. दूसरे दिन शव को जब ताशकंद से दिल्ली लाया जा रहा था, एयरपोर्ट पर खुद कोसीजिन और अयूब खान ने शव पेटिका को अपने कंधे पर रखकर सम्मान दिया.
शव जब दिल्ली पहुंचा, तब भी शव का पोस्टमार्टम नहीं किया गया. किसी को भरोसा नहीं हुआ कि 12 बजे रात तक जो शास्त्री जी बिल्कुल स्वस्थ थे, एक-सवा घंटे बाद किस परिस्थिति में उनकी मौत हो गयी. आज भी इस सवाल का जवाब नहीं मिल पाया है.

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