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प्यार या उंगलियों का टाइमपास!

प्रभात रंजन कथाकार पिछले हफ्ते दो ऐसी घटनाएं हुईं, जिनका संबंध प्यार के अहसास से था. एक, धर्मवीर भारती के कालजयी उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ के आधार पर ‘एक था चंदर एक थी सुधा’ नामक धारावाहिक का प्रसारण शुरू हुआ. दूसरे, युवा लेखक पंकज दुबे का उपन्यास प्रकाशित हुआ ‘इश्कियापा’. 1949 में प्रकाशित ‘गुनाहों का […]

प्रभात रंजन
कथाकार
पिछले हफ्ते दो ऐसी घटनाएं हुईं, जिनका संबंध प्यार के अहसास से था. एक, धर्मवीर भारती के कालजयी उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ के आधार पर ‘एक था चंदर एक थी सुधा’ नामक धारावाहिक का प्रसारण शुरू हुआ.
दूसरे, युवा लेखक पंकज दुबे का उपन्यास प्रकाशित हुआ ‘इश्कियापा’. 1949 में प्रकाशित ‘गुनाहों का देवता’ प्रेम की एक ऐसी कथा है, जिसमें नायक-नायिका पूरे उपन्यास में एक बार भी खुल कर ‘आइ लव यू’ नहीं कहते, लेकिन वे उत्कट प्रेम के आदर्श प्रतीक की तरह देखे जाते हैं.
दूसरी तरफ, 1915 में प्रकाशित ‘इश्कियापा’ डिजिटल एज की प्रेम कहानी है, जिसमें नायक लल्लन को उसकी बचपन की एक दोस्त अपना प्रेम प्रस्ताव पावर प्वॉइंट प्रेजेंटेशन बना कर भेजती है, लल्लन उसे डिलीट कर देता है. लड़का फोन पर अपनी प्रेमिका से बात करने के लिए अपनी एक महिला दोस्त के नाम पर फोन ले लेता है, और इस तरह लड़की के घर वालों को धोखा देता रहता है.
असल में फेसबुक, व्हाट्सएप्प के इस दौर में प्यार का रूहानी अहसास आभासी होता जा रहा है. फेसबुक, व्हाट्सएप्प के माध्यम से प्यार परवान चढ़ता है. चैट, मैसेज के जरिये आगे बढ़ता है, और फेसबुक, व्हाट्सएप्प पर ब्लाक किये जाने के साथ खत्म हो जाता है. अब प्यार में न वह अभिमान रह गया है, न वह कसक. उर्दू के एक व्यंग्यकार ने खूब कहा है कि प्यार अब अहसास नहीं, उंगलियों का टाइमपास रह गया है!
आज ‘देवदास’ जैसे प्रेमी की कल्पना नहीं की जा सकती, जो प्यार का रूहानी अहसास लिये अपना जीवन नष्ट कर लेता है. वह प्यार जीने का नहीं मरने का था. इस आभासी दौर में हर अहसास आभासी होता जा रहा है.
महानगरीय जीवन ने सुख-सुविधा तो दी है, मगर प्यार बस एक संभावना बन कर रह गयी है. डिजिटल एज का आदर्श फिल्म निर्देशक इम्तियाज अली की फिल्में हैं, जिनमें सच्चा प्यार जीवन की सबसे बड़ी तलाश के रूप में दिखाया जाता है, जो अकसर पवित्र समझे जानेवाले रिश्ते से बाहर ही मिलता है.
कुछ साल पहले फ्रेंच लेखक फुकिनो का उपन्यास प्रकाशित हुआ ‘डेलिकेसी’, जिसमें डिजिटल युग में प्यार की वास्तविकता को बड़ी अच्छी तरह से रखा गया है. उपन्यास का नायक एक स्थान पर कहता है कि सारी सभ्यता नंबरों में सिमटती जा रही है. हर इंसान को कितने सारे कोड याद रखने पड़ते हैं, बैक अकाउंट का कोड, इमेल, फेसबुक, सहित न जाने कितने संचार माध्यमों के पासवर्ड कोड. यहां तक कि प्रेमिका भी एक कोड में सिमट कर रह गयी है.
असल में वह जिस आभासी प्रेमिका से कई महीनों से अंतरंग प्यार में डूबा हुआ था, एक दिन उसका फोन खो जाता है और उससे उसकी प्रेमिका का नंबर खो जाता है. कुछ दिन के बाद उसकी उस आभासी प्रेमिका को ऐसा लगता है कि उसके प्रेमी ने उसके साथ धोखा किया है और वह उसे ब्लॉक कर देती है!

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