ऑस्टियोआर्थराइटिस पुराने जोड़ों की बीमारी है जो ज्यादातर बड़े लोगों से जुड़ी है. लेकिन आधुनिक परिवेश में बढ़ती अनियमितताओं के कारण भी ऑस्टियोआर्थराइटिस होने का खतरा बढ़ता जा रहा है.
पुरुषों के मुकाबले घरेलू महिलाओं में ऑस्टियोआर्थराइटिस अधिक देखने को मिलता है. दरअसल, परिवार का ख्याल रखते हुए महिलाएं अपना ख्याल रखना भूल जाती हैं. कभी भी खा लेना, कम सोना, जल्दी जागना और पोष्टिक आहार न लेने से ऑस्टियोआर्थराइटिस होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.
डिप्रेशन, स्ट्रेस, अधूरी नींद और लगातार कमर दर्द के होने से भी ऑस्टियोआर्थराइटिस होने के चांस रहते हैं.
बढ़ती उम्र में हड्डियों के जॉइंट्स में चिकनाहट कम होने लगती है जिसकी वजह से उनके कार्टिलेज घिसने लगते हैं. जिसे ऑस्टियोआर्थराइटिस कहा जाता है. अधेड़ उम्र में होने वाला यह रोग अब युवाओं में भी देखने को मिल रहा है. जिसका कारण है दैनिक अनियमितताओं का होना. जोड़ों में दर्द होना, हड्डियों का तिरछापन, चलने में दिक्कत होना इसके लक्षण हो सकते हैं.
यदि किसी व्यक्ति में अनिन्द्रा, लम्बे समय का दर्द और डिप्रेशन देखने को मिले तो यह अनुमान लगा लेना चाहिए कि वह व्यक्ति ऑस्टियोआर्थराइटिस से पीड़ित है. सामान्यता इसमें जोड़ो का दर्द होता है लेकिन युवाओं में हाथों और कूल्हों में दर्द देखा जा रहा है. दरअसल, दैनिक क्रियाओं में अनियमितता के चलते युवाओं में अनिन्द्रा, दर्द और अवसाद के होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.
इन सभी में अनिन्द्रा का होना, सबसे बड़ा कारण है ऑस्टियोआर्थराइटिस होने का क्योंकि यही बाकी अन्य समस्याओं का कारण बनती है. अनिन्द्रा के चलते ही अवसाद और दर्द की समस्याएं पैदा होती है. व्यक्ति अनिद्रा की वजह से अवसाद में आ जाता है जिसके बाद उसे मानसिक और शारीरिक कष्टों का सामना करना पड़ता है.
पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में ऑस्टियोआर्थराइटिस ज्यादा देखा जाता है. महिलाओं को दूध, पनीर, सोयाबीन, मछली, चिकन आदि प्रोटीन युक्त भोजन का सेवन करना चाहिए. शोध कहता है कि यदि महिलाएं नियमित रूप से दूध का सेवन करें तो उन्हें जोड़ों के दर्द और इससे जुड़ी बिमारियों से निजात मिल सकता है.
पोष्टिक आहार के साथ व्यायाम और दवाओं को नियमित सेवन ऑस्टियोआर्थराइटिस और अन्य जोड़ो की बिमारियों से बचा सकता है.