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धर्म आधारित राष्ट्र में किसका भला?

आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया धार्मिक मान्यताओं पर आधारित राज्य बहिष्करण के सिद्धांत पर ही स्थापित किया जा सकता है. इसलामिक राज्यों में अपराधों के लिए शरिया कानून को लागू करना राज्य के धार्मिक चेहरे का एक हिस्सा है. जिस दौर में जेलों की व्यवस्था नहीं थी, तब दुनियाभर में शारीरिक दंड का […]

आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
धार्मिक मान्यताओं पर आधारित राज्य बहिष्करण के सिद्धांत पर ही स्थापित किया जा सकता है. इसलामिक राज्यों में अपराधों के लिए शरिया कानून को लागू करना राज्य के धार्मिक चेहरे का एक हिस्सा है. जिस दौर में जेलों की व्यवस्था नहीं थी, तब दुनियाभर में शारीरिक दंड का प्रचलन था. मारपीट, अंग-भंग, पत्थर मारना और सिर काटना आज भले ही हमें अमानवीय लग सकता है, लेकिन सातवीं सदी में ऐसे दंड आम बात थे. भारतीय उपमहाद्वीप समेत हर राजशाही में हिंसक दंड कानूनों का हिस्सा थे.
ऐसी व्यवस्था के चेहरे का दूसरा हिस्सा बहिष्कार है. पाकिस्तानी कानून के मुताबिक, कोई ईसाई वहां प्रधानमंत्री नहीं बन सकता है और कोई सिख राष्ट्रपति का पद नहीं पा सकता है. बहिष्करण की इस सूची में हिंदू भी शामिल हैं. इस व्यवस्था में धार्मिक राज्य अपने को अल्पसंख्यकों की आम आबादी, जो कि आदर्श नागरिक हैं, से भिन्न दिखा कर अपनी पहचान को रेखांकित करता है. जैसे पाकिस्तान में धार्मिक मुसलिम ही पूरी तरह उचित माने जाते हैं. जब जिन्ना के सहयोगी लियाकत अली खान ने पाकिस्तानी संविधान को बनाने का काम संभाला था, तब स्थिति ऐसी नहीं थी. उन्होंने संविधान की प्रस्तावना को इस सोच के साथ पारित किया कि पाकिस्तान के सभी अल्पसंख्यकों को कानूनी संरक्षण मिलेगा, पर ऐसा नहीं हुआ.
फील्ड मार्शल अयूब खान और प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के दौर में बहिष्करण की प्रक्रिया शुरू हुई और जनरल जियाउल हक के समय में यह अपने चरम पर पहुंची. आज ईरान से लेकर सऊदी अरब तक कोई ऐसा इसलामिक राज्य नहीं है, जहां गैर-मुसलिमों का बहिष्करण का सिद्धांत मूलभूत सिद्धांतों में शामिल नहीं है.
हाल की कुछ घटनाओं पर नजर डालते हैं. कुछ दिन पूर्व नेपाली नीति-निर्धारकों ने देश के नये संविधान में नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाने के संशोधन प्रस्ताव को खारिज कर दिया. काठमांडू में राजशाही की बहाली और हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग कर रहे विरोधियों की पुलिस से झड़पें हुईं.
बहुत से नेपाली मानते हैं कि उनके राजा भगवान विष्णु के अवतार थे और वे राजशाही को फिर से स्थापित करने का समर्थन करते हैं. आज संवैधानिक रूप से नेपाल एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, लेकिन यह राजशाही के उन्मूलन तक सदियों से एक हिंदू राज्य था.
चूंकि भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा की जाती रही है तथा भारतीय जनता पार्टी के अनेक लोग भी इसके समर्थक हैं, आइये, इस विचार के तत्वों का विश्लेषण करते हैं कि क्या यह भी बहिष्कार को मान्यता देता है.
इस विषय पर मैंने पिछले साल लिखा था कि ‘2008 तक नेपाल दुनिया का एकमात्र हिंदू राज्य था. छेत्री (क्षत्रिय) वंश 2008 के गणराज्य के साथ समाप्त हो गया. नेपाल हिंदू राज्य क्यों था? क्योंकि कार्यपालिका शक्तियां एक योद्धा राजा से संचालित होती थीं, जैसा कि हिंदू संहिता मनुस्मृति में निर्दिष्ट है. लेकिन नेपाल सिर्फ इसी हद तक हिंदू राष्ट्र था. हिंदू शास्त्रों से कुछ भी लागू नहीं किया जा सकता था, क्योंकि इसके अधिकतर विचार मानवाधिकारों के सार्वभौमिक घोषणा के विरुद्ध थे.’
मेरे ऐसा कहने का अर्थ क्या था? मेरा मतलब हिंदू राष्ट्र में जाति व्यवस्था के प्रचलन से था. इसके हिंदू होने को हम दो पहलुओं से देख सकते हैं. इसका बाहरी पहलू वह है, जिस पर हम ध्यान देते हैं, क्योंकि यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विश्वदृष्टि है. हिंदू राष्ट्र के इसके विचार का विकास मुसलिमों और ईसाइयों के बहिष्कार के लिए हुआ है. नेपाल में यह आंतरिक पहलू था, क्योंकि यह एक क्षत्रीय राजा पर आधारित था. इसी कारण वह एक हिंदू राष्ट्र था.
लेकिन, वह पर्याप्त रूप से हिंदू राष्ट्र नहीं था. मनुस्मृति में सिर्फ राजा की स्थिति का ही वर्णन नहीं है, बल्कि अन्य जातियों के स्थान भी निर्धारित हैं. क्षत्रिय राज करते हैं, ब्राह्मण शिक्षा देते हैं और वैश्य व्यापार करते हैं. शूद्र श्रम करते हैं और अछूत व्यवस्था के हाशिये पर होते हैं. जातियां एक-दूसरे के क्षेत्र का अतिक्रमण नहीं कर सकती हैं, और हमारे शास्त्रों के अनुसार यह आदर्श हिंदू राष्ट्र है. इसमें बहिष्कार हिंदू समुदायों के धन, शिक्षा और सत्ता तक पहुंच की वर्जना से आता है. इसलामिक राज्य गैर-मुसलिमों को बहिष्कृत करता है. हिंदू राष्ट्र पहले गैर-हिंदुओं को बहिष्कृत करता है और फिर अपने आंतरिक संरचना में वर्जना को लागू करता है.
यही एकमात्र कारण है कि हिंदू राष्ट्र का विचार भारत में जड़ नहीं जमा सका, बावजूद इसके कि अधिकतर भारतीय हमारे संविधान के धर्मनिरपेक्ष पहलुओं को समझ नहीं पाते. इसी कारण, अब तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदू राष्ट्र की बात तो करता है, पर इसके अर्थ का विवरण कभी नहीं देता. वह ऐसा कर भी नहीं सकता है, क्योंकि हिंदुओं का बहुमत ही इसे अस्वीकार कर देगा, भारतीय मुसलिमों और ईसाइयों की बात तो छोड़ ही दें.
नेपाल में भी 601 सदस्यों की संविधान सभा में दक्षिणपंथी राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी के राजशाही वापसी के प्रस्ताव को सिर्फ 21 मत ही मिल सके. हिंदू राष्ट्र का विवरण सामने आने के बाद भारत में उसके पक्ष में समर्थन जुटा पाना असंभव होगा.
मेरे विचार से हिंदू राष्ट्र के विरुद्ध बेहतरीन तर्क दलित कार्यकर्ता और लेखक चंद्रभान प्रसाद ने दिया था. उन्होंने कहा कि भारत में हिंदू राष्ट्र के स्वर्णिम दौर में ब्राह्मण ज्ञान के प्रभारी थे, पर ज्ञान की हालत देखिये. क्षत्रियों की जिम्मेवारी भारत माता की रक्षा की थी, और भारत सदियों तक उपनिवेश बना रहा. वैश्य अर्थव्यवस्था संभालते थे और हम दुनिया के सबसे गरीब देशों में हैं. हिंदू राष्ट्र ने भारतीयों का भला नहीं किया.

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