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समावेशी विकास से दूर देश के भिखारी

अक्सर देश के नेताओं द्वारा लगातार समावेशी विकास की बात की जाती है. लेकिन आज तक देश में कोई ऐसा नेता नहीं हुआ, जो देश के भिखारियों की बात करे. मलीन और झुग्गी बस्तियों में रहनेवालों को पुनर्वासित करने की अनेक योजनाएं बनायी जाती हैं, लेकिन इनके पुनर्वास की आज तक कोई योजना नहीं बनायी […]

अक्सर देश के नेताओं द्वारा लगातार समावेशी विकास की बात की जाती है. लेकिन आज तक देश में कोई ऐसा नेता नहीं हुआ, जो देश के भिखारियों की बात करे. मलीन और झुग्गी बस्तियों में रहनेवालों को पुनर्वासित करने की अनेक योजनाएं बनायी जाती हैं, लेकिन इनके पुनर्वास की आज तक कोई योजना नहीं बनायी जा सकी है.
कहीं ऐसा तो नहीं कि देश के भिखारी समावेशी विकास से दूर होते जा रहे हैं. भले ही कोई भिखारियों को भीख देना न पसंद करे, लेकिन किसी न किसी रूप में वह हमारे समाज के अभिन्न अंग हैं.
हालांकि, देश में कई ऐसे लोग भी हैं, जो उन्हीं की तर्ज पर अपने जीवन का कारोबार चलाते हैं, लेकिन उनका तरीका और सड़कछाप भिखारियों के तरीके में अंतर है. सभ्य होते भारतीय समाज और विकासशील भारत की उन्नति और प्रगति में भी कहीं न कहीं उनका भी योगदान है.
– अनुराग मिश्र, पटना

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