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समुद्री उत्पादों से लेकर लैब में बने पदार्थ होंगे भविष्य के भोजन

दुनियाभर में खेती की जमीन के कम होते रकबे और बढ़ती आबादी के मद्देनजर भविष्य में संभावित खाद्य संकट का समाधान तलाशने में वैज्ञानिक काफी समय से जुटे हैं. जीवनशैली में व्यापक बदलाव के कारण भी लोग नये प्रकार के व्यंजनों की तलाश में हैं. आज के नॉलेज में जानते हैं कि आनेवाले समय में […]

दुनियाभर में खेती की जमीन के कम होते रकबे और बढ़ती आबादी के मद्देनजर भविष्य में संभावित खाद्य संकट का समाधान तलाशने में वैज्ञानिक काफी समय से जुटे हैं. जीवनशैली में व्यापक बदलाव के कारण भी लोग नये प्रकार के व्यंजनों की तलाश में हैं. आज के नॉलेज में जानते हैं कि आनेवाले समय में किस तरह के नये व्यंजन बन सकते हैं हमारे भोजन का हिस्सा.
शंभु सुमन
त कनीक की सवारी इंसान की जीवनशैली को तेजी से बदल रही है. इस दौरान भोजन और खाद्य पदार्थों में भी कई तरह के बदलाव आये हैं. आज प्रसंस्कृत आहार, डिब्बाबंद भोजन एवं पेय पदार्थ, फास्ट फूड आदि के चलन से लेकर जीएम फसलें तक भोजन में शामिल हो चुकी हैं. खाद्य सामग्रियों से संबंधित कृषि वैज्ञानिक और शोधकर्ता भोजन की पौष्टिकता के साथ उसकी अधिक उपलब्धता के लिए दशकों से गंभीर प्रयास कर रहे हैं. इस कड़ी में भविष्य के लिए आहार के नये स्रोतों की तलाश भी जारी है.
यह कहना गलत नहीं होगा कि सजी-सजाई थाली में विभिन्न व्यंजनों का संतुलित आहार अब महज भूख मिटानेवाला भोजन भर नहीं रह गया है, बल्कि इसे वैज्ञानिक कसौटी पर भी कसा जाने लगा है कि इसमें कितनी और किस स्तर तक की पौष्टिकता है.
सुपाच्यता के साथ इससे शरीर को कितनी क्षमता की ऊर्जा प्राप्त हो सकती है. शरीर की मांसपेशियों से लेकर रक्त, मज्जा आदि के लिए यह कितना उपयोगी साबित हो सकता है. इसे कितने समय तक खराब होने से बचाया जा सकता है.
भारत में भोजन में बदलाव भले ही ज्यादातर प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों से संबंधित आया हो और खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में फल, सब्जियां, मसाले, मांस, मछली, पॉल्ट्री, दूध के उत्पाद, अनाज आदि की बहुलता बढ़ी हो, लेकिन विकसित देशों के वैज्ञानिकों ने भविष्य के भोजन की तलाश के दौरान कुछ नये आहार की खोज में भी सफलता पायी है.
नये भोजन के तौर पर मांसाहार से लेकर शाकाहार तक के भोजन की खोज की जा रही है. उनके व्यंजन पारंपरिक व्यजनों से भिन्न हो सकते हैं, लेकिन पौष्टिकता में उससे कहीं बढ़कर होते हैं. इनमें शैवाल, जेलीफिश, कीडे़-मकोड़े, प्रयोगशाला में तैयार होनेवाले मांस, वीगन चीज, किण्वित कॉफी आदि मुख्य हैं.
भविष्य के भोजन और आहार को लेकर वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, आहार विशेषज्ञों, शेफों और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का उत्पादन करनेवाली कंपनियों के उद्यमियों का हाल ही में अमेरिका में जमावड़ा लगा. भविष्य के भोजन सप्ताह के आयोजन के दौरान पारंपरिक खाद्य पदार्थों की होनेवाली कमी के विकल्प के तौर पर दूसरे खाद्य पदार्थों पर चर्चा हुई तथा उनसे तैयार होने वाले विविध व्यंजनों से लेकर प्रसंस्कृत करने के वैज्ञानिक तरीके पर भी विचार-विमर्श किया गया.
यदि 450 ग्राम का पाउडर करीब डेढ़ लीटर पानी में मिलाने के बाद यह आपके लिए सुबह का नाश्ता, दोपहर तथा रात के भोजन के बराबर बन जाये, तो आपको जरूर हैरानी होगी.
इसका दावा करनेवाले अमेरिका के 28 वर्षीय उद्यमी रॉब राइनहार्ट हैं, जिसे उनकी कंपनी सॉयलेंट ने तैयार किया है. रॉब का कहना है कि बीते तीन सालों से यही पाउडर उनका मुख्य आहार रहा है, जिसे सही रखरखाव से कई दशकों तक भंडारण और उपयोग किया जा सकता है. इसमें इंसानी शरीर के लिए जरूरी करीब 35 पोषक तत्वों का मिश्रण है. इसी तरह भोजन के कई अन्य परिवर्तित रूप हैं, जो पेट भरने के साथ-साथ पौष्टिकता भी प्रदान करते हैं. जानते हैं इनके बारे में विस्तार से
शाकाहारियों का पसंदीदा विकल्प बन रहा शैवाल
एल्गी यानी शैवाल की कई प्रजातियां हैं, जिन्हें सामान्य बोलचाल की भाषा में काई भी कहा जाता है. समुद्री मछलियों का मुख्य आहार शैवाल अब इंसानी भोजन के लिए भी उपयोग में लाया जा रहा है. कुछ देशों में शाकाहारियों के लिए यह पसंदीदा आहार बन चुका है. इसकी उपयोगिता थाॅयराइड व मोटापे से निजात पाने के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है.
बाजार में यह पाउडर के रूप में उपलब्ध है. हालांकि, इसका इस्तेमाल काफी पहले से समुद्री गोभी के नाम से भी होता रहा है, लेकिन हाल में वैज्ञानिकों ने शोध में पाया कि इसमें काफी मात्रा में आयरन, विटामिन ए, सी, डी व इ और खनिज पदार्थ पाये जाते हैं. साथ ही कार्बोहाइड्रेट, अकार्बनिक पदार्थ भी प्रचूर मात्रा में पाया जाता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि शैवाल इंसानों और पशुओं के लिए भोजन मुहैया करवा सकता है तथा उसे समुद्र में उगाया जा सकता है.
कुछ वैज्ञानिकों का तो यह भी कहना है कि शैवाल से जैव ईंधन भी प्राप्त किया जा सकता है. साथ ही शैवाल की खेती दुनिया का सबसे बड़ा फसल उद्योग बन सकता है. किसी जमाने में जापान में इसके बड़े फार्म पाये जाते थे.
शैवाल आधारित पेय पदार्थ बाजार में विभिन्न नामों से उपलब्ध है. फ्रेंच की एक कंपनी इसे ‘अल्गमा’ नाम से बेचती है. हाल में ही ‘स्प्रिंगवेव’ नाम का भी एक उत्पाद बाजार में उतारा गया है.
सर्वाधिक उपयोग में आनेवाला शैवाल समुद्री है, जिसमें क्लोरोफिल सामग्री प्राकृतिक रूप में पायी जाती है. इसके क्षारीय यौगिक भोजन से अम्लीय प्रभाव को निष्क्रिय करने में सक्षम है, जिससे शरीर का पीएच स्तर काफी संतुलित हो जाता हैै. इसके अतिरिक्त इसमें दूध व मांस की तुलना में ज्यादा कैल्शियम पाया जाता है. इन दिनों फ्रैंच भोजन का यह एक अहम हिस्सा बन चुका है. गेहूं का आटा हो या फिर चावल, उसके साथ मिलाकर विविध व्यंजन पकाये जाते हैं या फिर सलाद में मिला कर खाया जाता है. नमक की जगह शैवाल का इस्तेमाल सेहत के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है.
पिछले दिनों समुद्री शैवाल की उस सूक्ष्म प्रजाति की खोज पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय के बायोसाइंस विभाग ने की, जो अब तक ब्रिटेन और उत्तरी चीन के समुद्री तट पर पायी जाती रही है. वैसे मुख्य तौर पर यह लाल, भूरा और हरा होता है, जिन्हें क्रमशः रोडोफाइटा, फियोफाइटा और क्लोरोफाइटा कहा जाता है. इसे जापान, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस के अतिरिक्त भारत में भी खाया जाता है.
यह अंतरिक्षयात्रियों के लिए भी उपयोगी है. क्लोरेला नामक शैवाल को अंतरिक्षयान के केबिन के हौज में उगाकर इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि इससे अंतरिक्षयात्रियों को प्रोटिनयुक्त भोजन, जल और आॅक्सीजन पर्याप्त मात्रा में मिलता है. ब्रिटेन के सीवीड हेल्थ फाउंडेशन से जुड़े डॉ क्रेग रोस का कहना है कि समुद्री शैवाल के बारे में महत्वपूर्ण बात यह है कि वे बड़ी तेजी से उगते हैं. यह पृथ्वी पर सबसे तेजी से बढ़नेवाला पौधा है.
इसलिए इसकी खेती बहुत ही कामयाब हो सकती है. ब्रिटेन के शेफील्ड विश्वविद्यालय में वैज्ञानिकों ने समुद्र में पैदा होनेवाले पौधों के चूर्ण को ब्रेड और प्रसंस्कृत आहार में नमक की तरह इस्तेमाल किया. यह चूर्ण काफी स्वादिष्ट होने के साथ-साथ कम नमकीन होता है, जबकि सामान्य नमक उच्च रक्तचाप, पक्षाघात और समय से पहले होने वाली मौतों के लिए जिम्मेवार माना जाता है. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि समुद्री पौधे के इस चूर्ण का इस्तेमाल जल्द ही बाजार में मिलनेवाले तैयार खाने, सॉसेज और चीज में किया जा सकता है.
शैवाल में शीघ्रता से प्रजनन करने की क्षमता होती है और कार्बन डाइऑक्साइड का प्रयोग कर भोजन बनाते हैं. कार्बन डाइऑक्साइड लेने के बाद आक्सीजन छोड़ते हैं. शैवाल की एक अन्य प्रजाति स्पुरुलिना भी भविष्य का भोजन बन सकती है. वैसे इसकी पहचान एक डायट्री फूड के रूप में है, जो टेबलेट और पाउडर के रूप में उपलब्ध है. इसमें प्रोटीन के अतिरिक्त पोटाशियम, कैल्शियम, सिलेनियम, जिंक आदि की प्रचूर मात्रा पायी जाती है.
और भी हैं भोजन के नये विकल्प
जेली फिश
समुद्री खाद्य पदार्थ की प्रजातियों में इन दिनों जेली फिश भी काफी चर्चा में है. वास्तव में यह मछली नहीं है. यह समुद्र में सतह से लेकर गहराई तक पाया जाता है. इसे मांसाहार के व्यंजनों में शामिल किया जा चुका है.
ब्रिटेन के समुद्री क्षेत्रों में यह बहुतायत में पाया जानेवाला काफी लचीला, चमकदार और आकर्षक रूप-रंग का होता है. इस बारे में शोध करनेवाले आहार विशेषज्ञ लेखक और टीवी प्रस्तोता स्टीफन गेट्स बताते हैं कि चीन समेत दुनिया के अन्य भागों के समुद्र पानी में यह बड़े पैमाने पर फूल-फल रहा है तथा हमारे व्यंजनों में आकर्षण का केंद्र बन सकता है. वे समुद्र के उन संसाधनों में से एक हैं, जिनका इस्तेमाल नहीं के बराबर हुआ है. इसमें पायी जानेवाली कम कैलोरी और असामान्य संरचना के कारण इसे दूसरे व्यंजनों के साथ शामिल किया जा सकता है. यह दिखने में एक अजीब तरह की बनावट का लगता है, जो थोड़ा लचीला और रबड़ की तरह है.
हालांकि, यह स्वाद में बहुत अच्छा नहीं है, लेकिन यह स्वाद का अच्छा वाहक बन सकता है. इसका स्वाद लेनेवालों का कहना है कि भले ही यह एक असामान्य खाद्य पदार्थ है, फिर भी इसे अपनाने से परहेज नहीं किया जा सकता है. गेट्स कहते हैं कि हम कब तक एक जैसे खाद्य पदार्थों से चिपके रहेंगे. अब हमें वैसे खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल करना चाहिए, जिसमें पौष्टिकता के गुण हैं.
इस बारे में हमें साहसिक कदम उठाना चाहिए. वैसे जेली फिश की केवल राइजोस्टोमे वर्ग का रसोई में इस्तेमाल किया जाता है, जिसकी 85 प्रजातियों में से करीब 12 को एकत्रित कर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बेचा जाता है. एकत्रित करने की मुख्य जगहों में चीन, अमेरिका और इंगलैंड के समुद्री इलाके हैं. इसे व्यंजनों के लिए इस्तेमाल करने से पहले कई दिनों तक अच्छी तरह से प्रसंस्कृत किया जाता है, ताकि यह दुर्गंधरहित बन जाये. इसे कुरकुरा और खास्ता भी बनाया जा सकता है. अच्छी तरह से प्रसंस्कृत जेली फिश में 94 प्रतिशत पानी और छह प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है. ताजा जेली फिश सफेद मलाईदार रंग का होता है, जबकि लंबे समय तक भंडारण से यह पीला या भूरे रंग का हो जाता है. चीन में जेली फिश को पका कर खाने या कच्चा इस्तेमाल करने से पहले रातभर पानी में भिगो कर रखा जाता है.
कीड़े- मकोड़े
खाद्य पदार्थों की श्रेणी में नया नाम कीड़े- मकोड़ों के व्यंजनों का भी जुड़ चुका है. नीदरलैंड के वागेनिनगेन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार, कीड़े-मकोड़ों में भी आम गोश्त की तरह पोषक तत्व पाये जाते हैं, जबकि उन पर मवेशियों की तुलना में लागत काफी कम आती है.
शोध के अनुसार, दुनिया में कीड़े-मकोड़ों की करीब 1,400 ऐसी प्रजातियां हैं, जिन्हें इंसान खा सकता है. दुनिया के कई हिस्सों में कीड़े-मकोड़े खाये भी जा रहे हैं. अफ्रीका में कैटरपिलर और टिड्डी को शौक से खाया जाता है, जबकि जापानी ततैयों को चाव से खाते हैं. वैसे इस संबंध में अभी तक आम धारणा नहीं बन पायी है. कारण भारत के लोगों में इसके प्रति घृणा के भाव भरे हैं. खाने में कोई भी कीड़ा गिर जाने पर उसे फेंक दिया जाता है, जबकि डिब्बाबंद कई खाद्य पदार्थों में कीड़े मिले होते हैं. जैसे पीनट बटर, फ्रीज्ड ब्रोकली और पास्ता आदि.
अब यदि ‘अमेजन डॉट कॉम’ पर इन्सेक्ट्स की लिस्ट में आटे को देखें तो इसकी गुणवत्ता का भी पता चल जायेगा. जैसे झींगुरों में पालक से 15 फीसदी ज्यादा आयरन होता है, बीफ से दोगुना प्रोटीन होता है और सैलामान जितनी विटामिन बी-12 होती है. कीड़ों, लार्वा और झींगुरों आदि का आटा सुपर मार्केट और ऑनलाइन उपलब्ध है.
सीलबंद पैक में आनेवाला झींगुरों का पीसा हुआ आटा मुख्य तौर पर उत्तरी अमेरिका, इंडोनेशिया, कोरिया या चीन से मंगाया जाता है. इसकी बढ़ती उपयोगिता और मांग के बारे में अमेरिका की एक कंपनी का दावा है कि कीड़े-मकोड़े वैश्विक तौर पर खाद्य पदार्थों की कमी को पूरा करने में हमारे सहयोगी बन सकते हैं.
अर्थशास्त्रियों के अनुसार, 2050 तक गोश्त पूरी तरह से केवल अमीरों का भोजन बन कर रह जायेगा. ऐसे में इन्सेक्ट्स वैश्विक भोजन का जवाब बन सकते हैं. बाजार में मिलनेवाले प्रोटीन बार में करीब 40 झींगुरों का इस्तेमाल होता है, जिनमें 270-300 कैलोरी, 10 ग्राम प्रोटीन, 14-20 ग्राम फैट, 13-18 ग्राम शुगर और 5-7 ग्राम फाइबर की मात्रा पायी जाती है.
उत्तरी अमेरिका में दुनिया का पहला और अमेरिका का सबसे बड़ा औद्योगिक फार्म है, जहां कीड़े पाले जाते हैं और भोज्य पदार्थों के रूप में इनको संसाधित किया जाता है. इस फार्म में जमीन से लेकर छत तक एक के ऊपर एक रखी क्रेट्स में 30 मिलियन झींगुर पाले और ब्रीड करवाये जाते हैं.
इसके अलावा यहां मीलवॉर्म्स और खाने योग्य कीट भी पाले जाते हैं. इस बारे में वैज्ञानिकों का दावा है कि यह प्रोटीन का एक बड़ा स्रोत है और इनका आटा बना कर उसकी कुकीज, बिस्कुट या दूसरी खाने की चीजें बनायी जाती हैं.
किण्वित कॉफी
पेड़ से भूने हुए बीजों से बनायी जाने वाली कॉफी में कैफीन को लेकर कई तरह की मान्यताएं और कुछ ठोस वैज्ञानिक तर्क हैं. इसके कई प्रकार एस्प्रेसो, कैपेचीनो, फ्रैपी, फिल्टर, इंस्टैंट या सॉल्यूबल (घुलनशील), मोचाचिनो आदि के बाद एक नया नाम किण्वित कॉफी भी जुड़ गया है. हाल में ही एक अमेरिकी कंपनी अफिन्योर ने किण्वन के माध्यम से अद्वितीय स्वाद की कॉफी बनायी है. इस तरीके से सामान्यतः अनेक किस्म की शराब बनायी जाती है.
कंपनी के संस्थापक सह सीइओ कामिले डेलेबेक्ये का कहना है कि उनका प्रयास केवल काफी को नये सिरे से पेश करना है. अभी तक कॉफी को बीज और भूनने से बनाया जाता रहा है, लेकिन लोग इसे अब किण्वन से भी जानेंगे. इसे संसाधित करने के लिए सीधे तौर पर बीज भरे हरे सेम का इस्तेमाल किया जाता है. उसमें स्वाद देनेवाले पाउडर या तरल का छिड़काव किया जाता है.
शाकाहारी चीज
चीज काफी लोकप्रिय और बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाने वाला दूध का उत्पाद है, जिसे कई लोग मांसाहार की श्रेणी में रखते हैं. संभवतः यही कारण है कि शाकाहारी चीज बनाया गया है. वर्ष 2014 की शुरूआत में अमेरिका के सेन-फ्रांसिस्को में रीयल बेगन चीज परियोजना प्रारंभ की गयी थी, जिसमें गाय के दूध का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.
इसके द्वारा मवेशियों को उपयोग में लाये बगैर न केवल चीज, बल्कि दूध और अंडे की जर्दी भी तैयार करने में सफलता पायी है. यह सब बायोटेक की प्रयोगशाला से मुमकिन हो पाया है, जहां बायोटेक इंजीनियिरंग का इस्तेमाल किया गया.

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