दक्षा वैदकर
हम घर और आसपास की सफाई की बात तो कर लेते हैं, लेकिन आत्मा और मन की सफाई कैसे होगी, इस पर हमारा ध्यान कम ही जाता है. आत्मा और मन की सफाई के लिए ज्ञान स्नान की जरूरत है. बिना ज्ञान स्नान के कभी भी आत्मा और मन की सफाई नहीं हो सकती है.
ज्ञान स्नान का मतलब केवल वेद, ग्रंथ, धार्मिक और आध्यात्मिक पुस्तकों का पढ़ लेना नहीं है, बल्कि उसे जीवन में अभ्यास कर उतारने की जरूरत है. हर वक्त अपने मन में संकल्पों पर पहरा देना पड़ेगा, ज्ञान रूपी झाड़ू लगा कर सफाई करनी पड़ेगी, तब जा कर इसकी धीरे-धीरे सफाई होने लगेगी. जैसे-जैसे मन की सफाई होगी, आत्मा में निखार आयेगा और मन स्वस्थ, खुश और शक्तिशाली होता जायेगा.
इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है अपनी नकारात्मक सोच पर मन की लगाम लगाना. मन में आने वाले व्यर्थ और नकारात्मक संकल्पों का हमेशा आकलन कर अपने मन से ही दृढ़तापूर्वक संकल्प कर उस पर पाबंदियां लगाएं ताकि वह दुबारा प्रवेश ना कर सके. जब कभी भी मन में किसी तरह का नकारात्मक और दुर्भावनापूर्ण विचार आये, तो उसे ज्ञान की कसौटी पर उतारें. थोड़े धैर्य के साथ समय बिताएं. पूरी तरह सकारात्मक सोच के साथ काम करें.
कर्मों पर निगरानी रखते हुए जब हम कर्म करेंगे, तो व्यर्थ व बुकी चीजें मन में इकट्ठी नहीं हो पायेंगी. इससे धीरे-धीरे आत्मा शुद्ध, सात्विक, आनंदमयी और सुखदायी बन जायेगी. सकारात्मक दृष्टिकोण मूल्यों से सुगंधित करेगी.
दूसरी जरूरी बात है ‘मलिनता दूर होने से निखरेगा व्यक्तित्व”. मन की सफाई के लिए ध्यान, राजयोग, ज्ञान का मनन, चिंतन और साधना पर ध्यान देना होगा. जितनी खतरनाक बाहर की गंदगी है, उससे ज्यादा खतरनाक आंतरिक गंदगी है, जो जीवन को बर्बाद कर देती है.
मनुष्य का यह प्रयास आत्मा की मलिनता को साफ कर देगा. जब मलिनता समाप्त हो जायेगी, तो उससे सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास होने लगेगा. जब व्यक्ति देखेगा, बोलेगा, सोचेगा, तो उसका दायरा सीमित ना हो कर विशाल हो जायेगा. हर कोई अपना लगेगा.
बात पते की..
– ज्ञान स्नान से ज्ञान का तीसरा नेत्र खुल जायेगा और आपके जीवन में सुख और शांति का विस्तार होगा.
– शक्तिशाली किरणों से हमारी अंतरात्मा का कीचड़ सूखेगा और हमारे जीवन में परिवर्तन दिखने लगेगा.