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स्वास्थ्य के लिए अमृत है अमृता
कई बार महंगी अंगरेजी दवाइयां भी रोग की नहीं सुनतीं. ऊपर से इनके साइड इफेक्ट. जबकि इनके मुकाबले हमारे पास कई आयुर्वेदिक औषधियां हैं, जो कई सारे छोटे-बड़े रोगों से बचाव करने में प्रभावशाली हैं. इन्हीं में से एक अहम वनौषधि है अमृता. विशेष जानकारी दे रहे हैं आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल. अमृता […]
कई बार महंगी अंगरेजी दवाइयां भी रोग की नहीं सुनतीं. ऊपर से इनके साइड इफेक्ट. जबकि इनके मुकाबले हमारे पास कई आयुर्वेदिक औषधियां हैं, जो कई सारे छोटे-बड़े रोगों से बचाव करने में प्रभावशाली हैं. इन्हीं में से एक अहम वनौषधि है अमृता. विशेष जानकारी दे रहे हैं आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल.
अमृता का उपयोग परंपरागत रूप से भारत के सभी राज्यों में विशेष कर गांवों में विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के उपचार में होता रहा है. आयुर्वेद में 50 से अधिक साधारण और कठिन बीमारियों में अमृता का प्रयोग अकेले या अन्य जड़ी-बूटियों के साथ करने का विवरण है. दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने अमृता के गुणों तथा उपयोगों पर रिसर्च करके पाया है कि अमृता में शरीर की प्रतिरोधक शक्ति अर्थात् रोगों से लड़ने की क्षमता (इम्युनिटी) बढ़ाने के विशिष्ट गुण
हैं, जिसके कारण यह अनेक रोगों में प्रभावशाली है. मैं 25 से अधिक वर्षो से अमृता का प्रयोग विभिन्न रोगों के इलाज में कर रहा हूं. लंबे अनुभव के बाद मेरा मत है कि केवल अमृता की पहचान और इसके गुणों की जानकारी जन-जन तक पहुंचा कर एवं लोगों को इसके प्रयोग के लिए प्रेरित करके अनेक लोगों के स्वास्थ्य में बेहतरी लाने के साथ-साथ उन्हें अनेक रोगों से बचाया जा सकता है.
इसे व्यवहार करने के तरीके
अमृता स्वरस : अमृता के परिपक्व तने का सबसे ज्यादा उपयोग होता है. तने की मोटाई अंगूठे के बराबर या उससे अधिक होना चाहिए. पतले तनों में गुण कम होता है. अमृता का पूरा लाभ इसके तने के स्वरस से मिलता है.
स्वरस ताजा हो, तो अच्छा है.
इसके अलावा अमृता चूर्ण और अमृता घन वटी के रूप में भी इसका प्रयोग होता है. बताये गये उपयरुक्त रोगों के अलावा भी अमृता अन्य अनेक समस्याओं में लाभकारी है. साल में एक महीने तक अमृता स्वरस या चूर्ण का सेवन मनुष्य को हर उम्र में स्वस्थ बनाये रखता है तथा अनेक रोगों से बचाता है.
मनुष्यों एवं जानवरों पर अभी तक किये गये सभी अध्ययनों में अमृता को पूरी तरह सुरक्षित पाया गया है, इसके उपयोग से किसी प्रकार की हानि नहीं देखी गयी है. आयुर्वेद में अमृता का प्रयोग अनेक जड़ी-बूटियों के साथ तथा विभिन्न तरीकों जैसे-अमृता घृत, अमृता तेल आदि रूपों में किया जाता है.
इम्युनिटी बढ़ाती है यह जड़ी, अमृता का प्रयोग साधारण रोगों में
बुखार में : यह हर प्रकार के बुखार में लाभदायक है. सर्दी-जुकाम के साथ होनेवाला साधारण बुखार वायरस के कारण होता है. अमृता को कालमेघ, मोथा, पुनर्नवा, नीम छाल, कंटकारी के साथ लेने से जल्द लाभ होता है.
टायफाइड या अन्य संक्रामक बुखार में एंटीबायोटिक के साथ अमृता का प्रयोग रोग जल्द ठीक करता है. टीबी से होनेवाले हल्के या लंबे समय तक रहनेवाले हर बुखार में इसका स्वरस या चूर्ण लाभकारी है. अमृता इम्युनिटी बढ़ाती है, अत: शरीर की आंतरिक गड़बड़ियों एवं संक्रमण से होनेवाले बुखारों के उपचार में उपयोगी है.
भूख की कमी : लिवर की कमजोरी, पाचन क्रिया की गड़बड़ियांे से या बुखार के बाद भूख कम हो जाती है. इसका स्वरस लेने से तीन-चार दिनों में ही लिवर सक्रिय हो जाता है और भूख बढ़ जाती है.
तीन-चार हफ्ते खाली पेट स्वरस लेने से भूख सामान्य हो जाती है. नये-पुराने घावों में : चोट या ऑपरेशन के कारण बने घाव या संक्रमण के कारण फोड़ा, फुंसी और मवाद से बने जख्म को ठीक करने में मेक्रोफेज सेल्स की महत्त्वपूर्ण भूमिका है. ये शरीर के टूटे-फूटे हिस्सों, मवाद आदि को साफ करके मरम्मत का काम करते हैं.
अमृता के उपयोग से इनकी सक्रियता बढ़ती है. इससे सभी प्रकार के घाव ठीक होने लगते हैं. जो घाव एंटीबायोटिक तथा अन्य दवाओं से ठीक नहीं हो रहे हों, वे इसके प्रयोग से ठीक हो जाते हैं. ऑपरेशन से पहले एवं बाद में अमृता के प्रयोग से घाव जल्द ठीक हो जाते हैं. अमृता के निरंतर प्रयोग से डायबिटीज रोगियों के घाव भी जल्द ठीक होते
अम्लपित्त में : खान-पान की अनियमितता से पेट, छाती और गले में जलन होती है. यह विशेष कर सुबह में होती है. इसके स्वरस या चूर्ण से 10-15 दिनों में आराम हो जाता है. इसे खाली पेट दिन में दो बार लें.
श्वेत प्रदर में : योनि में संक्रमण से योनि द्वार से हल्का पीला दरुगधयुक्त स्नव होता है. अमृता अकेले या शतावर तथा अश्वगंधा के साथ प्रयोग करने से कुछ सप्ताह में लाभ होता है. यह पूरी तरह ठीक हो जाता है या कम हो जाता है. यदि ठीक न हो, तो डॉक्टर से जांच कराएं.
रक्तप्रदर में : कई कारणों से पीरियड में खून अधिक आता है. कभी-कभी माह में दो बार या लगातार 10-12 दिनों तक. पहले डॉक्टर से जांच कराएं. गर्भाशय में गंभीर समस्या न हो, तो अमृता चूर्ण का उपयोग करें. रात में एक चम्मच चूर्ण एक कप पानी में भिगोएं. सुबह छान कर खाली पेट पीएं. दो माह तक लें.
बार-बार होनेवाले सर्दी-बुखार में : मौसम बदलने, भीग जाने या अधिक थकने पर कुछ बच्चों को बार-बार सर्दी-खांसी और बुखार होता है. कुछ वयस्कों में भी ऐसा होता है. अमृता का प्रयोग घन-वटी, चूर्ण या स्वरस के रूप में या अन्य जड़ी-बूटियों के साथ करने से इम्युनिटी सुधरती है और समस्या ठीक हो जाती है.
मलेरिया में : मलेरिया के कीटाणु अमृता के प्रयोग से नहीं मरते, लेकिन एलोपैथ दवाओं के साथ अमृता के प्रयोग से मलेरिया के कारण हुई कमजोरी ठीक हो जाती है. बार-बार मलेरिया होने से प्लीहा बढ़ जाती है. इसे सामान्य करने में भी यह काफी उपयोगी है.
खून की कमी में : खून की कमी अनेक कारणों से होती है. अमृता के साथ लौह भस्म या पुनर्नवा मंडुर नामक आयुर्वेदिक दवाओं के प्रयोग से खून की कमी दूर होती है. अस्थि मज्जा की गड़बड़ी के कारण खून बनना कम या बंद हो जाता है. यह अस्थि मज्जा को सक्रिय कर पुन: खून के निर्माण में सहायक है.
इन्फेक्शन में : विभिन्न वायरस, बैक्टीरिया, फंगस आदि के संक्रमण से होनेवाले रोगों के इलाज के लिए एंटीबायोटिक तथा अन्य दवाओं का प्रयोग होता है. कई बार इनसे नुकसान की आशंका भी होती है. वैज्ञानिकों ने एंटीबायोटिक के साथ इम्युनिटी बढ़ानेवाली दवाओं का प्रयोग लाभप्रद पाया है.
भारत, अमेरिका एवं अनेक देशों के सौ से अधिक वैज्ञानिकों ने रिसर्च में पाया है कि अमृता इम्युनिटी बढ़ाती है. 25 से अधिक वर्षो से विभिन्न संक्रामक रोगों में इसका प्रयोग हो रहा है. अमृता एंटीबायोटिक दवाओं के पहले, साथ एवं बाद तीनों ही स्थितियों में उपयोगी है. एलर्जी में : कुछ लोगों को बार-बार नाक से पानी और लगातार छींक आती है. अमृता-घन के प्रयोग से कुछ महीनों में लाभ देखा गया है. कुटकी, भारंगी एवं शिरीश के साथ अमृता लेने से ज्यादा लाभ होगा.
विषहर के रूप में : अमृता सर्वश्रेष्ठ विषहर है. रासायनिक विष, हवा, पानी और भोजन के साथ शरीर में जा रहे हैं. शरीर को हानिकारक रसायनों से मुक्त करने में अमृता उपयोगी है.
लिवर की कमजोरी और जॉन्डिस दूर करती है
वायरल इन्फेक्शन, खान-पान की गड़बड़ी या अन्य कारणों से लिवर की क्रिया गड़बड़ाती है. गैस बनती है, भूख कम हो जाती है. खाने के बाद पेट में भारीपन होने लगता है. कई आधुनिक दवाएं भी लिवर के लिए हानिकारक हैं. पित्त बनने और पित्त बहाव में बाधा से पीलिया या जॉन्डिस हो सकता है. आयुर्वेद में लिवर को सक्रिय करने के लिए अनेक दवाएं हैं, जिनमें अमृता प्रमुख है.
यह लिवर की हर गड़बड़ी ठीक करने में सहायक है. यह बात आयुर्वेद के साथ रिसर्च में भी प्रमाणित हो चुकी है. मैंने लिवर की गड़बड़ी के कुछ ऐसे रोगियों की चिकित्सा में अमृता का प्रयोग किया है, जहां रोगी के प्राण संकट में थे और सभी दवाएं निष्फल हो चुकी थीं. इसके प्रयोग ने विषम स्थितियों में अनेक रोगियों की प्राण रक्षा की है.
जटिल रोगों में अमृता का उपयोग
कैंसर में
अमृता में कैंसर से बचाव के गुणों का पता चला है. आजकल इस रोग के इलाज में कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी चिकित्सा की जाती है. इनके कुप्रभावों से अनेक समस्याएं हो जाती हैं, जैसे-भूख कम लगना, पाचन क्रिया में गड़बड़ी, श्वेत तथा लाल रक्त कणों का कम होना आदि.
अमृता इम्युनिटी बढ़ाने के साथ ही अस्थि मज्जा की सक्रियता बढ़ाता है. इस कारण कैंसर की आधुनिक चिकित्सा के हानिकारक प्रभावों को यह कम करने में सहायक है. कैंसर रोगियों पर अमृता के प्रयोग से होनेवाले लाभों से अब यह प्रमाणित हो गया है कि कैंसर का पता चलते ही हर रोगी को अमृता का प्रयोग अवश्य प्रारंभ कर देना चाहिए. इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है.
मधुमेह में
मधुमेह रोगियों में ब्लड शूगर लेवल कम करने में अमृता का तना, पत्तियां और जड़ उपयोगी हैं. मधुमेह के कारण रोगियों की किडनी, लिवर तथा अन्य अंगों पर बुरा असर पड़ता है. अमृता के उपयोग से मधुमेह के कारण होनेवाले कुप्रभाव कम हो सकते हैं.
फाइब्रॉयड होने पर
25 से 45 वर्ष की महिलाओं की बच्चेदानी में कई बार गांठ बन जाती है. इसे फाइब्रॉयड कहते हैं. इस कारण पीरियड में अधिक खून जाता है. रोग की प्रारंभिक अवस्था में जब गांठ छोटी हो, तब छह माह तक अमृता का प्रयोग सुबह-शाम करने से समस्या समाप्त होती है और मासिक धर्म भी सामान्य हो जाता है.
सोरियासिस में
यह कठिन चर्म रोग है, जिसमें त्वचा से छिलके की तरह सफेद पपड़ियां निकलती हैं. रोग जल्दी पूरी तरह ठीक नहीं होता, पर लंबे समय तक अमृता लगाने एवं सेवन से लाभ होता है. साथ ही कुटकी, कुटज, मंजिठ, नीम, तीसी आदि के प्रयोग के साथ ही खानपान में परहेज से राहत मिलती है. रोग की चिकित्सा डॉक्टरी सलाह से ही कराएं.
आमवात में
शरीर के छोटे-बड़े अनेक जोड़ों में दर्द और सूजन होना जोड़ों का गंभीर रोग है. इसे रुमेटॉयड आर्थराइटिस या आमवात कहते हैं. यह कठिन रोग है, जो पूरी तरह से ठीक नहीं होता है. इसकी चिकित्सा में अधिक मात्र में अमृता के साथ सोंठ या अदरक का प्रयोग निरंतर करने से रोगी के कष्ट काफी कम हो जाते हैं.
किडनी एवं मूत्र रोग
डायबिटीज के अनेक रोगियों को 5-10 वर्षों में किडनी खराब होने की गंभीर समस्या होती है. अन्य दवाओं के साथ यदि अमृता का उपयोग करें, तो समस्या से बचने में मदद मिलेगी. किडनी खराब होने की शुरुआत में ही अमृता के प्रयोग से काफी हद तक किडनी की क्षतिपूर्ति होती है.
महिलाओं को संक्रमण के कारण बार-बार पेशाब में जलन और जल्दी-जल्दी पेशाब लगने की शिकायत होती है. एंटीबायोटिक दवाओं से लाभ होता है, लेकिन कुछ दिनों के बाद पुन: इन्फेक्शन हो जाता है. अमृता का प्रयोग निरंतर कुछ महीनों तक करने से समस्या से छुटकारा मिल जाता है. अमृता के साथ पुनर्नवा, गोखरु एवं वरुण छाल का प्रयोग अधिक लाभकारी होता है.
थ्रॉम्बोसाइटोपिनिया
इस रोग में खून बहने को रोकनेवाले प्लेटलेट नामक रक्त कोशिकाओं की संख्या कम हो जाती है. अमृता के प्रयोग से प्लेटलेट की संख्या दो-तीन सप्ताह में बढ़ने लगती है. ऐसा सैकड़ों रोगियों में प्रयोग से देखा गया है.
हड्डी टूटने पर प्लास्टर के साथ अमृता का प्रयोग दो सप्ताह तक करने से, टूटी हड्डी जल्द जुड़ती है और जोड़ मजबूत होता है. अनेक बार हड्डी जुड़ने में परेशानी आती है, विशेष कर जब गंभीर चोट में हड्डी टूट कर चमड़े से बाहर निकल आती है या ऑपरेशन में नेलप्लेट आदि लगाने के बाद. ऐसी स्थिति में अमृता का प्रयोग लाभदायक होता है. हड्डी टूटने पर रोगी को अमृता का प्रयोग दो सप्ताह तक अवश्य करना चाहिए.
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