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कांख में खुजली हो सकती है

फोक्स फोरडाइसेज डिजीज 26 साल की एक महिला को कांख एवं जननांगों के पास बार-बार होनेवाली खुजली एवं दाने की शिकायत थी. उसे 14 साल की उम्र से ही यह हो रहा था. पहले यह कम होता था, परंतु इधर कुछ वर्षो से यह बढ़ गया था. माहवारी के दिनों में यह खुजली बढ़ जाती […]

फोक्स फोरडाइसेज डिजीज
26 साल की एक महिला को कांख एवं जननांगों के पास बार-बार होनेवाली खुजली एवं दाने की शिकायत थी. उसे 14 साल की उम्र से ही यह हो रहा था. पहले यह कम होता था, परंतु इधर कुछ वर्षो से यह बढ़ गया था. माहवारी के दिनों में यह खुजली बढ़ जाती थी. अनेकों बार एंटीफंगल दवा यथा फ्लूमोनागोल इट्राकोनाजोल लगाने एवं खाने के लिए दिया जाता था.
इसके अलावे स्टेरॉयड, एंटीबायोटिक एवं एंटीएलजिर्क दवा से थोड़ा बहुत ही आराम होता था. महिला ने बताया कि पढ़ाने, चलने के समय, खुजली ज्यादा होती है. परंतु शांति से बैठने, सोने के समय यह कम होती थी. जांचने एवं चर्म परीक्षण करने पर वहां पर दिनाय (यानी टीनीया, फंगल इन्फेक्शन) बलतोड़ आदि के लक्षण नहीं मिले. केवल त्वचा के रंग के कई दाने थे. कांख में सामान्य के मुकाबले बाल भी कम थे. उसे पसीना भी कम आता था.
रक्त परीक्षण में चीनी, थायरॉयड, एलर्जी की जांच, एनएच, एसएफएच, ओस्ट्रोजेन बिल्कुल नहीं मिला. त्वचा की हिस्टोपैथोलॉजी एवं बायोप्सी में एपोक्राइन, पसीने की नली के चारों तरफ सूजन एवं लिंफोसाइट (विशेष श्वेत रक्त कोशिका) का जमावड़ा मिला. इन लक्षणों एवं जांचों के आधार पर फोक्स फोरडाइसेज डीजीज की पुष्टि हुई.
क्या होता है यह रोग
यह रोग एपोक्राइन स्वेद ग्लैंड में होता है. यह पसीने की वह ग्रंथी है जो कांख, जननांग, निपल आदि जगहों पर ज्यादा होती है. इस ग्रंथी से थोड़ा तैलीय पसीना निकलता है. इसके साथ थोड़ा फैरामेन भी निकलता है, जो महिला को विशेष गंध प्रदान करता है, जिससे विपरीत सेक्स आकर्षित होता है.
इसकी नली जाम होने एवं त्वचा के एपीडरमिस/डरमिस के अंदर फटने एवं इसके चलते पसीने के त्वचा के अंदर पसीजने से होता है. सामान्यत: यह महिलाओं में पुरुषों की तुलना में 10 गुना अधिक होता है. प्यूबर्टी (यौवनारंभ) के प्रारंभ होने पर यह होने लगता है, जो 13 से 14 साल में शुरू होता है. मेनोपॉज एवं गर्भावस्था में यह बीमारी अपने आप ठीक हो जाती है. कांख/जननांगों के बालों को पुराने व कड़े रेजर से साफ करने, लेजर मशीन से बाल साफ करवाने से भी यहबीमारी होती है.
इलाज एवं बचाव : इस मरीज को ट्रैक्रोलिमस एवं पेयक्रोलिमस क्रीम लगाने के लिए दिया गया. फ्यूजिडिक एसिड, कीटोमोनाजोल क्रीम भी लगाने दिया गया. खाने के लिए ओरल आइसोट्रेटीनाइज 20 एमजी दो बार दिया गया. मरीज को प्रेगनेंसी से बचने के लिए कहा गया. ओरल एजीथ्रोमाइसिन एवं फेक्सोफेनाडाइन भी दिया गया. तीन से चार महीने में बीमारी बहुत हद तक कम चुकी थी. महिला को स्टेराइल एल्कोहल क्लिंजर से दो बार कांख की त्वचा को पोंछने की सलाह दी गयी.
बचाव : लक्षणों को पहचान कर प्रारंभ में ही चर्म रोग चिकित्सक से मिलें.
– कांख/जननांगों के बाल को सॉफ्ट रेजर से साफ करें.
– पुराने रेजर को इस्तेमाल न करें
– इन जगहों पर सूती कपड़े का प्रयोग करें.
– नो सोप क्लिंजर से इस एरिया को रोज 2-3 बार साफ करें.
– ज्यादा शक्तिशाली लेजर से कांख या जननांगों के बाल हटवाने से बचें.
– अगर ज्यादा पसीना आता है, तो एंटी फंगल डस्टिंग पाउडर का प्रयोग करें.
– परफ्यूम को कांख की त्वचा पर सीधे स्प्रे न करें.

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