नयी दिल्ली : सरकार ने कहा है कि भारतीयों को इराक या सीरिया में संघर्ष में शामिल होने की इजाजत देने का सीधा परिणाम साम्प्रदायिक संघर्ष होगा और यह आतंकवाद को बढावा देने जैसा होगा. उसने यह कहते हुए एक धार्मिक संगठन के सदस्यों को इराक में आईएसआईएस की गतिविधियों से धर्मस्थलों को बचाने के लिए वहां जाने से उन्हें रोकने के अपने फैसले का बचाव किया.
दिल्ली उच्च न्यायालय में दाखिल अपने हलफनामे में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा कि किसी भी सम्प्रदाय को इराक या सीरिया के संघर्ष में भाग लेने देने का भारत के अन्य सम्प्रदायों पर प्रतिकूल परिणाम होगा. इससे भारत में सीधे सांप्रदायिक संघर्ष पैदा होगा जो राष्ट्र के हित में नहीं है. उन्होंने कहा कि अंजुमन ए हैदरी के छह सदस्यों की यात्रा, जिसे इराक जाने की अनुमति नहीं दी गयी, का मुख्य उद्देश्य पंजीकृत स्वयंसेवकों को इराक में धर्मस्थलों को बचाने के वास्ते भेजने के लिए तौर तरीकों पर चर्चा करना था.
गृहमंत्रालय का हलफनामा कहता है, ऐसे भारतीय नागरिकों को दूसरे देश में जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती जिसका घोषित लक्ष्य वैसे देश में किसी संघर्ष में शामिल होना है, क्योंकि ऐसा करने से ऐसे नागरिकों की सुरक्षा दांव पर लग जाएगी एवं इससे विदेशों के साथ दोस्ताना रिश्ते पर प्रतिकूल असर पडेगा.
मंत्रालय ने कहा, किसी भारतीय को संघर्ष में शामिल होने के लिए दूसरे देश में जाने देना इस आरोप को जन्म देगा कि भारत सरकार अन्य देशों में आतंकवाद को बढावा दे रही है. मंत्रालय ने वकील महमूद प्राचा की उस याचिका पर यह हलफनामा दिया जिसमें उन्हें राहत कार्य करने एवं आईएसआईएस का विरोध करने के लिए इराक की यात्रा करने से रोकने के लिए लुक आउट सर्कुलर जारी करने के सरकारी फैसले पर सवाल उठाया गया है. मंत्रालय ने कहा कि यदि स्वयंसेवको को संघर्ष क्षेत्र में जाने दिया जाता तो वे कट्टरपंथी बन सकते हैं और वापस आने पर भारत में भी कट्टरपंथी गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं.