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विद्वान चपरासी!

इसे देश की उच्च शिक्षा व्यवस्था की विडंबना ही कहेंगे, कि एक ओर कंपनियां कुशल कर्मचारियों की किल्लत महसूस कर रही हैं, दूसरी ओर सरकारी चपरासी बनने के लिए लाखों ‘विद्वान’ युवा आवेदन कर रहे हैं. अभी यूपी विधानसभा सचिवालय में चपरासी के 368 पदों के लिए मांगे गये ऑनलाइन आवेदन के जवाब में पहुंची […]

इसे देश की उच्च शिक्षा व्यवस्था की विडंबना ही कहेंगे, कि एक ओर कंपनियां कुशल कर्मचारियों की किल्लत महसूस कर रही हैं, दूसरी ओर सरकारी चपरासी बनने के लिए लाखों ‘विद्वान’ युवा आवेदन कर रहे हैं. अभी यूपी विधानसभा सचिवालय में चपरासी के 368 पदों के लिए मांगे गये ऑनलाइन आवेदन के जवाब में पहुंची 23 लाख से अधिक अर्जियां हर किसी को हैरान कर रही हैं.

आवेदकों में डेढ़ लाख से ज्यादा बीटेक, बीएससी या बीकॉम हैं, जबकि 25 हजार से अधिक एमएससी, एमकॉम या एमए और 250 से अधिक पीएचडी हैं. 23 लाख लोगों के इंटरव्यू लेने में सालों लग जाएंगे. ऐसे में सरकार विशेषज्ञों से सलाह ले रही है कि क्या करे? यह विकट स्थिति किसी एक राज्य तक सीमित नहीं है.

पिछले एक-दो महीनों में कई प्रदेशों से ऐसी ही खबरें आयी हैं. मध्य प्रदेश में चपरासी के 1332 पदों के लिए हुई परीक्षा में चार लाख के करीब युवा शामिल हुए, जिनमें बड़ी संख्या में उच्च डिग्रीधारी थे. राजस्थान में चपरासी के 143 पदों के लिए 77 हजार से अधिक, जबकि छत्तीसगढ़ में 34 पदों के लिए 75 हजार से अधिक आवेदन पहुंचने पर परीक्षा स्थगित करनी पड़ी. ये खबरें देश में शिक्षित बेरोजगारी की गंभीर होती स्थिति की सूचक तो हैं ही, शिक्षा प्रणाली की खामियों को भी सामने लाती हैं.

विभिन्न सर्वे लगातार बता रहे हैं कि उच्च एवं व्यावसायिक शिक्षण संस्थानों से डिग्री लेकर निकले ज्यादातर युवाओं में रोजगार पाने का कौशल नहीं होता. मैनपावर ग्रुप के 10वें सालाना सर्वे की कुछ माह पहले जारी रिपोर्ट में कहा गया था कि दुनियाभर के करीब 38 फीसदी नियोक्ता प्रतिभाशाली कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे हैं, लेकिन भारत में यह कमी 58 फीसदी तक पहुंच गयी है.

2014 में हुए सर्वे में देश की करीब 64 फीसदी कंपनियों ने कहा था कि उन्हें योग्य कर्मियों की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है. यह स्थिति क्यों है, इसका जवाब किसी से छिपा नहीं है. देश के कस्बाई इलाकों तक में थोक में खुले सरकारी-निजी इंजीनियरिंग एवं अन्य व्यावसायिक शिक्षण संस्थानों में से ज्यादातर में न तो योग्य शिक्षक हैं, न प्रशिक्षण के लिए पर्याप्त इन्फ्रास्ट्रक्चर. ऐसे में यहां से मोटी रकम देकर डिग्री पानेवाले लाखों युवा हर साल बेरोजगारों की कतार में शामिल होने के लिए अभिशप्त हैं.

जाहिर है, नीति नियंताओं को उच्च एवं व्यावसायिक शिक्षा की पूरी प्रणाली पर गंभीरता से गौर करना होगा, तभी हम ऐसी विडंबनाओं से पार पा सकेंगे.

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