वास्तव में कर्म जैसी कोई चीज नहीं है. कारण और प्रभाव दो अलग या भिन्न चीजें नहीं हैं. आज का प्रभाव ही कल का कारण है. ऐसा कोई अलग-थलग पड़ा हुआ ‘कारण जैसा कुछ’ नहीं होता, जो प्रभाव पैदा करे, कारण और प्रभाव अंतर्संबंधित हैं.
‘कारण और प्रभाव के नियम’ जैसी कोई चीज वास्तव में नहीं होती, जिसका मतलब यह भी है कि ऐसी भी कोई चीज नहीं होती, जिसे कर्म कहें. कर्म का मतलब है- एक परिणाम, जिसके पीछे पहले कोई कारण रहा हो, पर प्रभाव और कारण के बीच के अंतराल में जो होता है वह है समय.
इस समयंतराल में अनंत प्रकार के भारी बदलाव होते रहते हैं, जिससे हमें हर बार एक-सा ही प्रभाव प्राप्त नहीं होता. और प्रभाव निरंतर नये कारण पैदा करते रहते हैं, जो कि मात्र प्रभाव का परिणाम ही नहीं होते. अतः यह ना कहें कि मैं कर्म में विश्वास नहीं करता, हमारा यह सब कहने का यह दृष्टिकोण नहीं है.
कर्म का आशय है, बहुत ही सहज रूप से, एक ऐसा कृत्य जिससे एक परिणाम भी जुड़ा हुआ है. यदि आम की गुठली को देखें. उसमें आम का वृक्ष होना निहित है, लेकिन मानव मन के साथ ऐसा ही कुछ नहीं है. मानव मन में अपने आप में रूपांतरण और तत्काल समझ-बूझ की सामर्थ्य उसे किसी भी कारण से हमेशा अलग रख सकती है
– जे कृष्णमूर्ति