अभी हाल ही में पोषण सप्ताह मनाया गया. तमाम तरह के विज्ञापनों को देख कर लगा कि कुपोषण जैसी जटिल समस्या पर सरकार गंभीर है, लेकिन अगर आंकड़ों पर गौर करें, तो कुछ और ही बात सामने निकल कर आती है. झारखंड में 24 प्रतिशत बाल मृत्यु सिर्फ कुपोषण की वजह से होती है.
भारत के मध्यप्रदेश में कुपोषण से मरनेवाले बच्चों की संख्या सबसे अधिक है. यहां 50 प्रतिशत से भी अधिक बच्चे कुपोषण की वजह से मौत के घाट उतर जाते हैं. मृत्यु दर को देख कर लगता है कि सरकार की योजनाएं सिर्फ खानापूर्ति का काम कर रही हैं. कम उम्र में किशोरियों का मां बनना, किशोरियों में खून की कमी, पौष्टिक भोजन का नहीं मिल पाना और आयोडीन की कमी कुपोषण का प्रमुख कारण है. शहरों की तुलना में गांव के बच्चे कुपोषण से अधिक प्रभावित हैं.
आज के समय में कुपोषण अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. विश्व बैंक ने कुपोषण की तुलना ब्लैक डेथ नामक महामारी से की है. कुपोषण एक ऐसी समस्या बन गयी है कि विश्व बैंक जैसी संस्थाएं भी इसे लेकर चिंतित हैं. कुपोषण एक ऐसी समस्या है, जिसकी चंगुल में बच्चे अपनी मां के गर्भ में ही फंस जाते हैं. कुपोषण की मुख्य वजह गरीबी है, जिसकी वजह से गर्भवती महिलाओं को जितनी पौष्टिक आहार की आवश्यकता होती है, गरीबी की वजह से वह पूरा नहीं कर पाती. कुपोषण से बच्चों में आयु और शरीर के अनुरूप पर्याप्त शारीरिक विकास नहीं हो पाता है. कुछ दिन बाद यह मानसिक विकास को भी अवरुद्ध करने लगता है. छोटे बच्चों खासतौर पर पांच साल से कम उम्र के बच्चों को भोजन के जरिये पर्याप्त पोषण आहार नहीं मिलने के कारण उसमें कुपोषण की समस्या जन्म ले लेती है. सरकार को विशेष ध्यान देकर इस समस्या को जड़ से समाप्त करने के लिए व्यापक पहल करने की आवश्यकता है.
प्रताप तिवारी, सारठ