दक्षा वैदकर
जंगल में चराई के बाद किसी बछड़े को गांव की गौशाला तक लौटना था. नन्हा बछड़ा था तो अबोध ही, वह चट्टानों, मिट्टी के टीलों और ढलानों पर से उछलता-कूदता हुआ अपने गंतव्य तक पहुंचने में सफल हो गया.
अगले दिन एक कुत्ते ने भी गांव तक पहुंचने के लिए उसी रास्ते का इस्तेमाल किया. उसके अगले दिन एक भेड़ उस रास्ते पर चल पड़ी. एक भेड़ के पीछे अनेक भेड़ चल पड़ीं, भेड़ जो ठहरी.
उस रास्ते पर चलफिरी के निशान देख कर लोगों ने भी उसका इस्तेमाल शुरू कर दिया. ऊंची-नीची पथरीली जमीन पर आते-जाते समय वे पथ को कोसते कि यह कितना उबड़-खाबड़ है. बहुत लंबा रास्ता है. इस पर चलना कठिन है. भला बुराई क्यों न करते. पथ था ही ऐसा. लेकिन किसी ने भी सरल-सुगम पथ की खोज के लिए प्रयास नहीं किए.
समय बीतते के साथ वह पगडंडी उस गांव तक पहुंचने का मुख्य मार्ग बन गयी, जिस पर बेचारे पशु बमुश्किल गाड़ी खींचते रहते. उस कठिन पथ के स्थान पर कोई सुगम पथ होता, तो लोगों को यात्रा में न केवल समय की बचत होती, वरन वे सुरक्षित भी रहते. कालांतर में वह गांव एक नगर बन गया और पथ राजमार्ग बन गया. उस पथ की समस्याओं पर चर्चा करते रहने के अतिरिक्त किसी ने कभी कुछ नहीं किया.
बूढ़े जंगल की यह बात बिल्कुल सच है. कैरियर बनाने के लिए हमने कुछ क्षेत्र जैसे डॉक्टर, इंजीनियर, सीए तय कर रखे हैं.
सालों से लोग उसी राह पर जा रहे हैं. पैरेंट्स को भी लगता है कि केवल ये ही रास्ते हैं, जिन पर चल कर सफलता प्राप्त की जा सकती है. अगर कोई बच्चा गलती से दूसरे रास्ते तलाशने की कोशिश करता है, तो वे उसे डांट-डपट कर, मार-पीट कर उसी पुराने रास्ते की ओर ले जाते हैं.
daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in
बात पते की..
– यह जरूरी नहीं है कि लोग जिस तरफ चलें, आप भी उसी तरफ चलें. अपनी समझ का इस्तेमाल करें. अपना रास्ता खुद बनाएं.
– आंखें बंद कर के किसी पर भरोसा न करें. जरूरी नहीं कि सामनेवाले ने जो रास्ता चुना है, वह सही है. इसलिए भेड़ चाल न चलें.