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नेपाल के प्रधानमंत्री ने मधेसी पार्टियों से फिर से वार्ता की अपील की

काठमांडो : नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कोइराला ने प्रस्तावित संविधान को लेकर आंदोलन कर रहीं मधेसी पार्टियों से संविधान के मसौदा निर्माण की प्रक्रिया में शामिल होने और सडकों पर हो रहे हिंसक विरोध प्रदर्शन को खत्म करने के लिए शांतिपूर्ण हल तलाशने में मदद करने की एक बार फिर से अपील की है.हिंसक प्रदर्शनों […]

काठमांडो : नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कोइराला ने प्रस्तावित संविधान को लेकर आंदोलन कर रहीं मधेसी पार्टियों से संविधान के मसौदा निर्माण की प्रक्रिया में शामिल होने और सडकों पर हो रहे हिंसक विरोध प्रदर्शन को खत्म करने के लिए शांतिपूर्ण हल तलाशने में मदद करने की एक बार फिर से अपील की है.हिंसक प्रदर्शनों के कारण 33 लोग मारे जा चुके हैं.

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘हिंसा से कभी भी राजनीतिक मुद्दों का हल नहीं निकल सकता. इसलिए मैं वार्ता के लिए आंदोलनकारी पार्टियों से आगे आने की अपनी अपील दोहराता हूं.’ कोइराला ने नेपाल के पहले निर्वाचित प्रधानमंत्री बी पी कोइराला की 101वीं जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि लोगों ने ‘‘हमें संविधान सभा के माध्यम से संविधान का मसौदा तैयार करने का जनादेश दिया है और हम जनादेश का अपमान नहीं कर सकते.’ उन्होंने कहा, ‘‘हमें लोगों द्वारा सौंपी गयी जिम्मेदारी का दूसरी संविधान सभा के माध्यम से वहन करना चाहिए.’ कोइराला ने कहा कि संसद सर्वोच्च संस्था है जहां सभी विवादों और मुद्दों का हल किया जा सकता है.
उन्होंने राजनीतिक गतिरोध को खत्म करने की राह तलाशने के लिए वार्ता को लेकर मधेसी पार्टियों को दो बार पत्र लिखा है.
मधेसी पार्टियां तराई क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के हितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करती हैं.
गत 15 अगस्त को देश की बडी राजनीतिक पार्टियों के सांसदों ने नेपाल को सात प्रांतों में बांटने के लिए एक समझौता किया था जिसके बाद से दक्षिणी नेपाल में अशांति है.
प्रस्ताव से असंतुष्ट मधेसी पार्टियों का कहना है कि नये संविधान में उनके हितों को दरकिनार किया गया है. विरोध स्वरुप ज्वाइंट मधेसी फ्रंट ने पिछले 26 दिन तराई क्षेत्र में आम हडताल की और अधिकतर स्कूल, कॉलेज एवं बाजार बंद रहे जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पडा.
ये पार्टियां सांत प्रांतों के मॉडल को रद्द करने और नए संविधान में अपने लिए अधिक प्रतिनिधित्व एवं अधिकारों की मांग कर रही हैं.
पिछले एक महीने में आंदोलन के दौरान आठ सुरक्षाकर्मियों समेत कम से कम 33 लोग मारे गए.

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