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दक्षा वैदकर बीते दिनों इंदौर के अखबारों में एक खबर छपी थी. वह एक युवक पर लिखी गयी थी, जो यूनिवर्सिटी में कोई एग्जाम देने गया था. उस रविवार वहां तीन अलग-अलग परीक्षाएं थी. जब परीक्षाएं खत्म हुई, तो परीक्षार्थियों के एक साथ निकलने की वजह से सड़क पर जाम लग गया. ट्रैफिक पुलिस भी […]

दक्षा वैदकर
बीते दिनों इंदौर के अखबारों में एक खबर छपी थी. वह एक युवक पर लिखी गयी थी, जो यूनिवर्सिटी में कोई एग्जाम देने गया था. उस रविवार वहां तीन अलग-अलग परीक्षाएं थी. जब परीक्षाएं खत्म हुई, तो परीक्षार्थियों के एक साथ निकलने की वजह से सड़क पर जाम लग गया. ट्रैफिक पुलिस भी नदारद थी. लोग एक-दूसरे की गाडि़यों के साथ गुत्थम-गुत्था हो गये थे.
सब जल्दी निकलना चाह रहे थे. तब एक युवक ने ट्रैफिक पुलिस की भूमिका निभायी और बीच में खड़े हो कर सभी को गाइड करते हुए जाम हटाया. लगभग 20 मिनट में उसने जाम हटा दिया. सभी अखबारों में उसका फोटो छपा, उसे तारीफ मिली. यह सब इसलिए, क्योंकि उसने उस काम को हाथ में लिया, जो उसका नहीं था. वह चाहता, तो दूसरों की तरह अपनी गाड़ी के साथ भी जाम में शामिल हो जाता और व्यवस्था को कोसता.
अब दूसरा उदाहरण सुनें. 7-8 दिन पहले मेरे मकान मालिक को किसी बाइक वाले ने इतनी जोर से पैर पर टक्कर मारी कि उनके पैर में मल्टीपल फ्रैक्चर हो गये. एक्सीडेंट होते ही वे सड़क पर बेहोश हो गये. जब होश आया, तो उन्होंने देखा कि सभी लोग बाइक वालेको पीट रहे हैं. उन्होंने लोगों को रोका और कहा कि जाने दो उसे. पीटने से क्या होगा.
सभी जाने लगे. तब एक युवक ने दूर पड़ा उनका महंगा मोबाइल ला कर उनकी जेब में डाला. उस बाइक वाले लड़के का नाम, गाड़ी का नंबर नोट किया और अंकल को हॉस्पिटल ले गया. वह तब तक हॉस्पिटल में रहा, जब तक परिवार वाले नहीं पहुंचे. जब अंकल हॉस्पिटल से घर आये और मैं मिलने पहुंची, तो उन्होंने यह पूरा वाकया बताया. उन्होंने बताया कि आज अगर उस लड़के ने बाइक का नंबर नोट नहीं किया होता, तो मैं मुआवजे के लिए बाइकवाले पर केस नहीं कर पाता.
कोई और होता, तो महंगा मोबाइल देख कर चुपके से ले जाता. मैं बुजुर्ग, चोट खाया पुलिस में मोबाइल चोरी होने की शिकायत भी नहीं करता, लेकिन उसने खुद दूर पड़े मोबाइल को उठाया और मुझे ला कर दिया. आजकल ऐसे लोग मिलते कहा हैं. भगवान उसे खूब तरक्की दे. खुश रखे.
daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in
बात पते की..
रास्ते में ऐसी कई घटनाएं हमें दिख जाती हैं, जिन्हें देख कर हम अफसोस जताते हैं और निकल जाते हैं. जबकि ऐसे में हमें एक्शन में आना चाहिए.
कभी यह न सोचें कि ये काम मेरा नहीं है. भला मैं ही क्यों मदद करूं. आगे बढ़ कर लोगों की मदद करें और दुआएं पायें. आपको सुकून मिलेगा.

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