दुनियाभर में इंटरनेट के लगातार बढ़ते उपयोग के बीच इसके नये-नये आयाम सामने आ रहे हैं.कंप्यूटर और लैपटॉप से आगे बढ़ते हुए अब स्मार्टफोन की लोकप्रियता के कारण इंटरनेट तक आम लोगों की पहुंच भी तेजी से बढ़ी है. आज स्मार्टफोन में इंटरनेट का उपयोग कर लोग कहीं से भी और कभी भी रोजमर्रा के कई तरह के काम निबटा रहे हैं.
इसी कड़ी में ‘इंटरनेट ऑफ थिंग्स’ का दायरा भी दिनोंदिन फैल रहा है और एक नये तरह की क्रांति लाने की ओर आगे बढ़ रहा है. क्या है ‘इंटरनेट ऑफ थिंग्स’ और इसकी तकनीक से कैसे बदल रही है जीवनशैली, बता रहा है नॉलेज.
मुकुल श्रीवास्तव
तकनीकी मामलों के लेखक
इंटरनेट पूरी दुनिया में नित नयी तरक्की कर रहा है. भारत में भी इसने जबसे अपने पांव पसारे हैं, तबसे हर क्षेत्र में तरक्की के सिक्के गाड़ रहा है.
इंटरनेट न सिर्फ संचार जगत में क्रांतिकारी बदलाव लाने में सफल हुआ है, बल्किहमारे जीवन जीने के सलीके और जीवन शैली में भी बदलाव लाया है.
शिक्षा, मेडिकल, हेल्थ, मनोरंजन की फील्ड में तो इंटरनेट अपने कारनामे दिखा ही रहा है, अब ‘इंटरनेट ऑफ थिंग्स’ के जरिये ऐसे कारनामे करने को तैयार है, जिसके बारे में हम सोच भी नहीं सकते.
वर्ष 2010 में हुए एक शोध के आंकड़ों की मानें तो उस वर्ष विश्व की आबादी करीब 6.8 अरब थी और उस दौरान 1.3 अरब लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे थे. आनेवाले पांच सालों में यह आंकड़ा पांच अरब को पार कर सकता है.
भारत जैसे देश में इंटरनेट अब स्मार्टफोन का पर्याय बन गया है, क्योंकि यहां स्मार्टफोन धारकों की संख्या बढ़ती जा रही है.
इंटरनेट मुख्यतया कंप्यूटर आधारित तकनीक रही है, पर स्मार्टफोन के आगमन के साथ ही यह धारणा तेजी से खत्म होने लग गयी और जिस तेजी से मोबाइल पर इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ रहा है, वह साफइशारा कर रहा है कि भविष्य में इंटरनेट आधारित सेवाएं कंप्यूटर नहीं, बल्किमोबाइल को ध्यान में रख कर उपलब्ध करायी जायेंगी. स्मार्टफोन उपभोक्ताओं के लिहाज से भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा बाजार है.
आइटी क्षेत्र की एक अग्रणी कंपनी सिस्को ने अनुमान लागाया है कि सन 2019 तक भारत में स्मार्टफोन इस्तेमाल करनेवाले उपभोक्ताओं की संख्या लगभग 65 करोड़ हो जायेगी. सिस्को के मुताबिक, वर्ष 2014 में मोबाइल डेटा ट्रैफिक 69 प्रतिशत तक बढ़ा.
साथ ही वर्ष 2014 में विश्व में मोबाइल उपकरणों एवं कनेक्शनों की संख्या बढ़ कर 7.4 बिलियन तक पहुंच गयी. स्मार्टफोन की इस बढ़त में 88 प्रतशित हिस्सेदारी रही और उनकी कुल संख्या बढ़ कर 43.9 करोड़ हो गयी.
घर के उपकरण हो रहे स्मार्ट
स्मार्टफोन से तात्पर्य ऐसे फोन से है, जिन पर इंटरनेट के वो सारे काम अंजाम दिये जा सकते हैं, जो पहले किसी कंप्यूटर पर किये जाते थे. इंटरनेट से जुड़ा स्मार्टफोन हमारे जीवन में कई मूलभूत बदलाव लाया, पर यह बदलाव ज्यादातर संचार आधारित रहा.
लेकिन अब यह अपने विकास के अगले चरण में जा रहा है, जहां फोन ही नहीं, घर से लेकर हमारी गाड़ी, किचन तक सब स्मार्ट होंगे. इसको आप यूं समझ सकते हैं.
आप कहीं बाहर से घर लौटे, आपको बहुत गर्मी लग रही है, आप तुरंत अपना एसी ऑन करते हैं कि गर्मी से कुछ राहत मिले. पर एसी कमरा ठंडा करने में कुछ वक्त लेता है.
एसी अगर आधा घंटा पहले कोई ऑन कर देता, तो जब आप घर पहुंचते आपको कमरा ठंडा मिलता. उसके लिए घर में किसी का होना जरूरी है, पर ‘इंटरनेट ऑफ थिंग्स’ आपकी जिंदगी आसान कर रहा है.
आपका स्मार्ट एसी आपके स्मार्टफोन से जुड़ा होगा, जो आपके बगैर घर आये इंटरनेट की मदद से एसी को ऑन या ऑफ कर देगा.
भारत में स्मार्टफोन का सबसे ज्यादा इस्तेमाल
टेलीकॉम कंपनी एरिक्सन ने हाल ही में एक शोध के नतीजे प्रकाशित किये हैं, जो काफी दिलचस्प हैं.
इससे पता चलता है कि स्मार्टफोन पर समय बिताने में भारतीय पूरी दुनिया में सबसे आगे हैं. एक औसत भारतीय स्मार्टफोन प्रयोगकर्ता रोजाना तीन घंटा 18 मिनट इसका इस्तेमाल करता है.
इस समय का एक तिहाई हिस्सा विभिन्न तरह के एप के इस्तेमाल में बीतता है. एप इस्तेमाल में बिताया जानेवाला समय पिछले दो साल की तुलना में 63 फीसदी बढ़ा है.
स्मार्टफोन का प्रयोग महज चैटिंग एप या सोशल नेटवर्किग के इस्तेमाल तक सीमित नहीं है, लोग ऑनलाइन शॉपिंग से लेकर तरह-तरह के व्यावसायिक कार्यो को स्मार्टफोन से निपटा रहे हैं.
मोबाइल पर वीडियो देखने का बढ़ता चलन टेलीविजन के लिए बड़े खतरे के रूप में सामने आ रहा है.
अमेरिका में टेलीविजन देखने के समय में गिरावट दर्ज की जा रही है और भारत भी उसी रास्ते पर चल पड़ा है. इस शोध के मुताबिक, स्मार्टफोन के 40 प्रतिशत प्रयोगकर्ता बिस्तर पर देर रात तक वीडियो देख रहे हैं. 25 प्रतिशत चलते वक्त, 23 प्रतिशत खाना खाते वक्त और 20 प्रतिशत खरीदारी करते वक्त भी वीडियो देखते हैं.
कॉम स्कोर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इंटरनेट ट्रैफिक का 60 प्रतिशत हिस्सा मोबाइल फोन व टैबलेट से पैदा हो रहा है और इस मोबाइल ट्रैफिक का 50 प्रतिशत भाग मोबाइल एप से आ रहा है.
मोबाइल का बढ़ता इस्तेमाल भारतीय परिस्थितियों के लिए ज्यादा सुविधाजनक है. बिजली की समस्या से जूझते देश में मोबाइल टीवी के मुकाबले कम बिजली खर्च करता है.
यह एक निजी माध्यम है, जबकि टीवी और मनोरंजन के अन्य माध्यम इसके मुकाबले कम व्यक्तिगत हैं. दूसरे आप इनका लुत्फ अपनी जरूरत के हिसाब से जब चाहे उठा सकते हैं, यह सुविधा टेलीविजन के परंपरागत रूप में इस तरह से उपलब्ध नहीं है.
सस्ते होते स्मार्टफोन, बड़े होते स्क्रीन के आकार, निरंतर बढ़ती इंटरनेट स्पीड और घटती मोबाइल इंटरनेट दरें इस बात की तरफ इशारा कर रही हैं कि आनेवाले वक्त में स्मार्टफोन ही मनोरंजन और सूचना का बड़ा साधन बन जायेगा.
क्या है इंटरनेट ऑफ थिंग्स
केविन एश्टन ने वर्ष 1999 में पहली बार इंटरनेट ऑफ थिंग्स शब्द का इस्तेमाल किया था. इंटरनेट ऑफ थिंग्स इंटरनेट जगत में एक ऐसा विकास है, जिसके जरिये हमारे जीवन शैली में तेजी से बदलाव आयेगा, हमारे काम आसान हो जायेंगे जिससे न सिर्फ मैनपावर की बचत होगी, बल्किहमारा समय भी बचेगा. बचे हए समय को हम अन्य कार्यो को निबटाने के लिए इस्तेमाल में ला सकते हैं.
इंटरनेट ऑफ थिंग्स को इंटरनेट ऑफ ऑब्जेक्ट्स भी कहा जाता है या इसे इंटरनेट ऑफ एवरीथिंग और मशीन टू मशीन एरा कह कर भी संबोधित कर सकते हैं. यह ऑब्जेक्ट्स के बीच वायरलेस नेटवर्क क्रि एट करेगा, जिससे वह अप्लाइंस खुद ही काम करेगा. यह इस मिथ को हटायेगा कि इंटरनेट सिर्फ लोगों के बीच ही कम्युनिकेशन आसान बनाता है.
अब अप्लायंस और अन्य इलेक्ट्रॉनिक आइटम भी आपस में वायरलेस नेटवर्क के जरिये जुडेंगे और काम करेंगे. इंटरनेट ऑफ थिंग्स को हैंडल करने के लिए कई ऐसे ग्रेजुएट्स की जरूरत पड़ेगी, जिन्हें सॉफ्टवेयर की अच्छी नॉलेज है.
कंप्यूटर की दुनिया में समझ रखनेवाले ऐसे ग्रेजुएट्स तैयार किये जायेंगे. ऐसे लोग जिन्हें कंप्यूटर इंजीनियरिंग के साथ साथ मैक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर कोडिंग तक की अच्छी समझ होगी.
क्या है इसकी तकनीक
इंटरनेट ऑफ थिंग्स का मतलब है इंटरनेट नेटवर्क और इलेक्ट्रॉनिक अप्लाइंस का समूह. यह एक ग्लोबल नेटवर्क संरचना है, जिसमें लोग क्लाउड कंप्यूटिंग, डाटा कैप्चर व नेटवर्क कम्युनिकेशन के जरिये वस्तुओं से जुड़े होते हैं.
ऐसा पहला प्रोडक्ट तो 1982 में ही आया, जब इंटरनेट से कनेक्ट किया हुआ कोक मशीन बना. इसकी खासियत यह थी कि यह इंटरनेट के जरिये कनेक्ट था, जिसमें यह टेस्ट किया गया था कि नयी लोड की हुई कोल्ड ड्रिंक ठंडी होती है या नहीं.
इंटरनेट ऑफ थिंग्स सेंसर द्वारा काम करेगा, जो जरूरत पड़ने पर अलर्ट हो जायेगा और आइपी अड्रेस से चलाया जायेगा, जो नेटवर्क के जरिये कनेक्ट होगा. इंटरनेट ऑफ थिंग्स की जरूरत पड़ने का एक कारण इंसान की व्यस्तता भी है.
इंटरनेट बिना इंसान के क्लिक करे, कोई इंफोर्मेशन नहीं देता. इसलिए ऐसे टेक्नोलॉजी की शुरु आत की जा रही है, जिसमें सब कुछ ऑटो मोड पर होगा. इंटरनेट ऑफ थिंग्स का कॉन्सेप्ट यहीं से आया.
टेक्नोलॉजी रिसर्च के शोध की मानें तो साल 2020 तक 26 बिलियन डिवाइस इंटरनेट ऑफ थिंग्स से बन जायेंगी और 30 बिलियन डिवाइस इंटरनेट के जरिये वायरलेस रूप में कनेक्ट होने की संभावना है.
इंटरनेट औफ थिंग्स से उम्मीदें बहुत हैं. इससे स्मार्ट सिटी, स्मार्ट होम, स्मार्ट हेल्थ और इंडस्ट्रियल ऑटोमेशन के बेहतर संभावना है. यह ऐसी तकनीक है, जिसमें स्मार्ट होम हैं, स्मार्ट एप्लाइंसेस हैं, स्मार्ट प्रोडक्शन लाइंस हैं, स्मार्ट सिटी, स्मार्ट डिवाइसेस के साथ स्मार्ट आदमी भी हैं.
आइओटी से सीधा सा मतलब यह है कि जिन कामों को हमें मैनुअली करना पड़ता था, अब वह ऑटो मोड पर होगा, जिसके लिए हमें वहां मौजूद होने की भी जरूरत नहीं होगी.
इंटरनेट ऑफ थिंग्स जीवन शैली को बेहतर बनाने के लिए टेक्नोलॉजी जगत का एक अच्छा कदम है. मानव श्रम को गैर-उत्पादक कार्यो से हटा कर उत्पादक कार्यो से जोड़ा जायेगा और ऐसे गैर-उत्पादक कार्य, जो अर्थव्यवस्था में सीधे कोई योगदान नहीं दे रहे हैं, आइओटी के जिम्मे छोड़ दिये जायेंगे. इससे हम ऐसे अप्लाइंस को आसानी से मैनेज कर पायेंगे, जिन्हें हम रोजमर्रा की जिदंगी में इस्तेमाल करते हैं.
आइओटी बनायेगा स्मार्ट होम
यदि हम घर से कहीं दूर जाते हैं, तो चोरी से बचाव के लिए किसी को उसकी जिम्मेवारी या निगरानी के लिए वहां रखते हैं.
इस काम को भी अब इंटरनेट ऑफ थिंग्स की मदद से किया जा सकता है. इसके जरिये हम स्मार्टफोन से अपने घर से कनेक्ट हो सकते हैं और न होते हुए भी घर पर नजर रख सकते हैं. इससे स्मार्ट होम की शुरु आत होगी.
मेडिकल जगत में क्रांति
भारतीय हॉस्पिटल्स भी इंटरनेट ऑफ थिंग्स का इस्तेमाल कर रहे हैं. दक्षिण भारत के एक हॉस्पिटल ने इंटरनेट ऑफ थिंग्स के जरिये एक ऐसा एप बनाया है, जिससे गर्भ में पल रहे बच्चे की पल्स रेट की लगातार अपडेट मिलती रहती है. इसका फायदा गर्भवती महिला और डॉक्टर दोनों को होता है.
दूरदराज बैठा डॉक्टर दोनों की सेहत पर नजर रख सकता है और कोई अनहोनी होने से पहले ही उस पर काबू पा सकता है. इसकी मदद से रुटीन चेकअप के लिए नहीं जाना पड़ता, इससे पैसे और समय दोनों की ही बचत होती है.
साइबर सेंधमारी बन सकती है बड़ी बाधा
जिस तरह से हर मां बाप को अपने बच्चों की अच्छाई और बुराई की फिक्र होती है, उसी तरह फादर ऑफ इंटरनेट कहलाने वाले विंट सर्फ भी आइओटी को लेकर थोड़ा डरे हुए हैं. जर्मनी में हुए एक प्रेस कॉन्फ्रें स के दौरान विंट ने बताया कि चूंकि आइओटी अप्लाइंस और सॉफ्टवेयर से मिल कर बना है, इसलिए उन्हें डर है. सॉफ्टवेयर्स को लेकर शुरू से ही उन्हें चिंता रही है.
सॉफ्टवेयर को हैक करना एक बड़ा मुद्दा है. भारत जैसे देश में जहां तकनीक पहले आ रही है और उससे जुड़े कानून बाद में बन रहे हैं, इसके लिए तैयार रहने की जरूरत है. देश को साइबर हमले से बचाने की जिम्मेवारी साल 2004 में बनी इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रेस्पोंस टीम (सीइआरटी-इन) के जिम्मे सौंपी गयी थी. साल 2004 से 2011 तक आधिकारिक तौर पर साइबर हमलों की संख्या 23 से बढ़ कर 13,301 तक पहुंच गयी और वास्तविक संख्या इन आंकड़ों से कई गुना ज्यादा हो सकती है.
पिछले वर्ष सरकार ने सीइआरटी को दो भागों में बांट दिया. अब ज्यादा महत्वपूर्ण मामलों के लिए नेशनल क्रि टिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोटेक्शन सेंटर की एक नयी इकाई बना दी गयी है, जो रक्षा, दूरसंचार, परिवहन, बैंकिंग आदि क्षेत्रों की साइबर सुरक्षा के लिए उत्तरदायी है. साइबर सुरक्षा के लिए वर्ष 2012-13 के लिए मात्र 42.2 करोड़ रुपये ही आवंटित किये गये, जो काफी कम है.
साइबर हमलों के लिए चीन भारत के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है. एसोसिएटेड प्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले महीने में दुनिया में हुए बड़े साइबर हमलों के लिए चीन सरकार समर्थित पीपुल्स लिबरेशन आर्मी जिम्मेवार है, जिसके हमलों में प्रमुख सोशल नेटवर्किग साइट्स फेसबुक और ट्वीटर भी थीं. पिछले कई वर्षो से चीन को साइबर सेंधमारी के लिए जिम्मेवार ठहराया जाता रहा है, जिसके निशाने पर ज्यादातर अमेरिकी सरकार और कंपनियां रहा करती हैं. इंटरनेट के विस्तार से भारत में भी साइबर हमले का खतरा बढ़ा है, लेकिन उससे निबटने के लिए हमारी तैयारी उस अनुपात में नहीं है.