II अनुप्रिया अनंत II
फिल्म : फैंटम
कलाकार : सैफ अली खान, कैटरीना कैफ, जीशान अयूब
निर्देशक : कबीर खान
रेटिंग : 2 स्टार
कबीर खान आतंकवाद के मुद्दे को लेकर फिल्में बनाते रहे हैं. उनकी हर फिल्म में दो मुल्कों की कहानी को बयां किया जाता रहा है. हाल ही में आयी उनकी फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ ने काफी लोकप्रियता भी हासिल की. अब वे इस बार ‘फैंटम’ लेकर आये हैं. लेकिन अफसोस ‘फैंटम’ उनकी अब तक की सबसे कमजोर फिल्मों में से एक है. इसकी वजह यह है कि इससे पहले नीरज पांडे की फिल्म ‘बेबी’ दर्शक देख चुके हैं.
कबीर अपनी कहानी को 26-11 को मुंबई में ताज पर हुए हमलों की कहानी पर लिये चलते हैं. भारत की एक टीम तैयार होती है. रॉ जो उन आतंकवादी गिरोह की तलाश में है, जिसने यह हमले कराये थे. वह उन्हें जड़ से उखाड़ना चाहता है. लेकिन यह सबकुछ भारत सरकार की इजाजत से मुमकिन नहीं है. सो, रॉ तय करता है कि वह दूसरा रास्ता इख्तियार करेगा और इसी क्रम में उसे एक ऐसे व्यक्ति की तलाश है, जिसमें देशभक्ति हो और वह किसी परिवार के झमेलों में न उलझा हुआ हूं.
सो, उन्हें दीनदयाल मिलता है, जो कभी फौज में था. लेकिन अपनी पलटन को छोड़ कर भाग जाने की वजह से फौज से निकाला जाता है. जबकि वह उस वक्त भी लड़ाई लड़ने ही जा रहा था. सो, गलतफहमियों में फौज से निकाला गया दीनदयाल अपनी अलग दुनिया बसा चुका है. जहां कोई भी नहीं है उसकी जिंदगी में. ऐसे में उसे रॉ अपने सिर पर से इल्जाम हटाने का मौका देता है. दिन दयाल उर्फ डानियल इसलिए इस मिशन पर निकलता है, क्योंकि उसे अपने पिता की नजरों में सम्मान वापस पाना है, जो अपने बेटे से कई सालों से फौज से गद्दारी करने के जूर्म में मुंह मोड़ चुके हैं.
कबीर की कहानी में यहां तक तो विश्वसनीयता झलकती है. लेकिन अचानक जब डानियल मिशन पर निकलता है, परिस्थितियां आतंकवाद पर बनी फिल्मों पर कम गैंबलर पर बनी फिल्मों में दिखाये जाने वाले दृश्य अधिक नजर आने लगते हैं. सैफ पहले लंदन जाता है. वही उन्हें नवाब मिलती हैं. कैटरीना नवाब हैं, जो सीक्रेट एजेंसी के लिए काम करती हैं. डानियल और नवाब एक एक करके सारे दुश्मनों को मारते जाते हैं. वे लंदन से होते हुए सीरिया फिर पाकिस्तान पहुंचते हैं.
कबीर की इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि इस फिल्म में वे नायक को लेकर ‘अतिश्योक्ति’ दिखा रहे हैं. डानियल लगातार दूसरे मुल्क के आतंकवादी मनसूबों को नाकाम कर रहा है लेकिन फिर भी उसे दूसरा मुल्क तलाश नहीं पा रहा. वह सिर्फ फाइलों में ही डानियल की तलाश कर रहा है. यह बिंदू फिल्म को बेहद फिल्मी बनाते हैं. कबीर खान ने इस बार अपने विषय को हल्के में ले लिया है. हालांकि उन्होंने अपने फिल्म के पहले दृश्य से दर्शकों के दिमाग में यह बात डालनी चाही है कि यह गंभीर फिल्म है. लेकिन जिस तरह से फिल्म आगे बढ़ती है.
यह फिल्मी नजर आती है और सबसे अहम बात हम फिल्म के किरदारों से खुद को जोड़ नहीं पाते. उनके दुख से हमें दुख नहीं होता. नायक को चोट लगती है तो दुख नहीं होता. वह आतंकवादियों को मार गिरा रहा तो खुशी नहीं होती. देशभक्ति की भावना नहीं आती. चूंकि फिल्म में बनावटीपन अधिक है. वही दूसरी तरफ इसी विषय पर बनी फिल्म बेबी अंत तक रोमांच खोने नहीं देती. कबीर खान पर अब शायद पूरी तरह से कमर्शियल सिनेमा हावी हो चुका है. सो, जरूरत न होते हुए भी उन्होंने अफगान जलेबी जैसे गीतों का इस्तेमाल किया है.
बेहतर होता अगर वे और गंभीरता से इस फिल्म के संवाद और दृश्यों पर काम करते. सैफ अली खान का अभिनय रोमांच नहीं करता. इस फिल्म को देखते हुए उनकी एजेंट विनोद वाली छवि वापस नजर आने लगती है. कैटरीना कैफ इतने सालों के बावजूद अपने चेहरे के भाव पर काम नहीं कर पा रहीं. वे हर दृश्य में एक से ही एक्सप्रेशन देती हैं. शायद यही वजह है कि इस फिल्म से दर्शकों का भावनात्मक रूप से जुड़ना कठिन होगा.
जीशान अयूब बेहतरीन कलाकार हैं और वे लगातार कई फिल्मों में अलग किरदार निभा कर खुद को साबित कर रहे हैं. इस फिल्म में उन्हें छोटा किरदार मिला है. लेकिन वे सार्थक लगे हैं. फिल्म के अंतिम दृश्य कुछ हद तक प्रभावित करते हैं. वरन, शेष फिल्म भावनात्मक जुड़ाव करने में असफल होती है. यकीनन कबीर खान की यह अब तक की सबसे कमजोर कड़ी है.