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जरूरी था हाइकोर्ट का ऐसा निर्णय

उत्तर प्रदेश में सरकारी प्राइमरी स्कूलों की दुर्दशा पर इलाहाबाद हाइकोर्ट ने जिस प्रकार की तीखी टिप्पणी की है, उसे सही संदर्भ में देखे जाने की जरूरत है. संबंधित याचिकाओं में भले ही सिर्फ प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों की बात की उठायी गयी हो, लेकिन सचाई यह है कि देश के अन्य हिस्सों में भी […]

उत्तर प्रदेश में सरकारी प्राइमरी स्कूलों की दुर्दशा पर इलाहाबाद हाइकोर्ट ने जिस प्रकार की तीखी टिप्पणी की है, उसे सही संदर्भ में देखे जाने की जरूरत है.
संबंधित याचिकाओं में भले ही सिर्फ प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों की बात की उठायी गयी हो, लेकिन सचाई यह है कि देश के अन्य हिस्सों में भी हालात कोई बेहतर नहीं हैं. हर जगह सरकारी स्कूल उपेक्षित और खस्ताहाल हैं.
बिल्डिंग, टीचर, लाइब्रेरी और शौचालय जैसी प्राथमिक जरूरतों की भी इनमें ढंग की व्यवस्था नहीं है. आलम यह है कि इन सबके बारे में बार-बार बताये जाने और निवेदन भेजे जाने के बावजूद संबंधित अधिकारी कान में तेल डाले पड़े रहते हैं.
इसी स्थिति से आजिज होकर हाइकोर्ट ने आदेश दिया है कि सभी सरकारी अधिकारियों और निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए यह अनिवार्य कर दिया जाये कि वे अपने बच्चों को इन्हीं स्कूलों में पढ़ने भेजें.
अनिल सक्सेना, अनुग्रहपुरी, गया

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