बेटियों का जीवन कठिनाइयों भरा होने के बावजूद सामाजिक स्तर पर इसमें बड़ा बदलाव लाने की दिशा में कोई कारगर कदम नहीं उठाये जा रहे हैं. परिवार में लड़की का जन्म अभिशाप माना जाता है.
इसके पीछे कहीं न कहीं हमारे समाज में व्याप्त रूढ़िवादी सोच और दहेज रूपी दाव का भय अहम है. यही वजह है कि हमारे देश में लड़कियों की दशा काफी दयनीय है. आज के समय में दुनिया भर के लोग चांद-तारों पर घर बनाने की बात कर रहे हैं, लेकिन अपने ही घर में लड़कियों की दशा सुधारने में नाकाम हो रहे हैं.
आज समाज में जागरूकता फैलने के बावजूद लड़कियों के जीवन को नये सिरे से परिभाषित करने की जरूरत है. समाज के बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों को आपस में मिल-बैठ कर यह तय करना ही होगा कि आखिर लड़कियां किस राह पर चलें कि उसका जीवन सुखमय हो?
नारायण कैरो, लोहरदगा