बात से बात निकलेगी, तो स्वाभाविक है कि वह ‘हां’और ‘ना’ द्वंद्व का रूप लेगी ही. विवादों को विराम देना ही अच्छा होता है, न कि किसी खास और आम घटना को मुद्दा बना कर बुद्धिजीवी और नेताओं के साथ फिर से नया अध्याय आरंभ किया जाये. याकूब मेमन की फांसी के पहले और उसके बाद भी बहस जारी है.
मेमन की जगह पर पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की उपलब्धियों, देश के प्रति उनका प्यार और उनके संघर्ष भरे जीवन को न्यूज चैनलों पर चर्चा का विषय बनाया जाता, तो देश के हर नागरिक के लिए बहुत प्रेरणादायी होता.
मुङो याद है कि अप्रैल, 2008 में प्रभात खबर द्वारा ‘मीडिया और आप’ पर चर्चा आयोजित हुई थी. तब भी मेरा यही कहना था कि मीडिया का दायित्व सुनने और पढ़नेवालों के लिए स्वच्छ और सच्ची सामग्री पेश करना है.
शीला प्रसाद, रांची