डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
दो माह पूर्व मैगी नूडल में लेड की मात्र मानदंड से अधिक पाये जाने के कारण इसे प्रतिबंधित कर दिया गया था. सरकार ने नेशनल कन्ज्यूमर रिड्रेसल में मैगी बनानेवाली नेस्ले कंपनी के विरुद्ध 640 करोड़ रुपये का दावा भी उपभोक्ताओं की तरफ से ठोंका है.
एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के विरुद्ध सख्त कार्रवाई के लिए एनडीए सरकार को बधाई. लेकिन, लेड की मात्र कम हो, तो भी फास्ट फूड का स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव होता है. इसमें चीनी और तेल की मात्र अधिक रहती है और फाइबर तथा मिनरल्स की कम.
चीनी और तेल अधिक रहने से फैट बढ़ता है और फाइबर कम होने से अपच होता है, साथ ही मिनरल कम होने से स्वास्थ कमजोर होता है. अत: विषय को किसी एक कंपनी द्वारा बनाये गये विशेष खाद्य पदार्थ तक नहीं समेटना चाहिए. जीवनशैली से संबंधित इस विषय पर व्यापक दृष्टिकोण को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.
मुङो कुछ समय पहले टय़ूनीशिया जाने का अवसर मिला था. वहां शाम में बच्चे सड़क पर रोटी बेचते थे. घरों में रोटी बनाने के स्थान पर रेडीमेड रोटी खरीदने का प्रचलन था. अपने देश में ब्रेकफास्ट में खरीदी गयी ब्रेड खाने का प्रचलन बढ़ रहा है. इसी क्रम में फास्ट फूड ने भी किचन की भूमिका को और अधिक सीमित किया है.
कई परिवारों में माता-पिता दोनों काम पर जाते हैं. घर आने पर मां यदि किचन में लग जाये तो बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाती. ऐसे में फास्ट फूड सस्ता भी पड़ता है और सहूलियत भी हो जाती है. आज 15 रुपये में आधा किलो ब्रेड उपलब्ध है.
आधा किलो आटे को गूंथने, उसमें ईस्ट मिलाने, ओवन में पकाने और स्लाइस काटने में लगे श्रम, समय तथा बिजली को जोड़ दें तो घर में बनी ब्रेड महंगी पड़ेगी. अर्थशास्त्र का सिद्धांत है कि बड़ी मात्र में उत्पादन करने से उत्पाद सस्ता पड़ता है. जिन पदार्थों की मात्र कम तथा बनाने में समय ज्यादा लगता है, उन्हें बाहर से रेडीमेंड खरीदना सरल लगता है, जैसे कम ही परिवारों में गोलगप्पे बनाये जाते हैं.
इसके विपरीत जिन पदार्थों की मात्र अधिक तथा श्रम कम लगता है, उन्हें किचन में ही बनाया जाता है, जैसे बच्चे को गरम दूध देना. जैसे-जैसे गृहिणी की आय बढ़ रही है, उसके लिए किचन में काम करना महंगा होता जा रहा है. इसलिए फास्ट फूड का सिस्टम बढ़ रहा है.
फास्ट फूड से लाभ है कि समय और पैसे की बचत होती है. नुकसान है कि स्वास्थ्य की हानि होती है. एक बीच रास्ता निकल सकता है, यदि बाजार को स्वास्थवर्धक फास्ट फूड की ओर मोड़ा जाये. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने आर्थिक नीतियों में इस बारे में सुधार का सुझाव दिया है. फल, सब्जी तथा मोटे अनाजों पर सब्सिडी मिले और फास्ट फूड पर अधिक टैक्स लगे, तो लोगों की प्रवृत्ति फल सब्जी की खपत बढ़ाने की ओर होगी.
फल तथा सब्जी के भंडारण के लिए सरकार द्वारा कोल्ड स्टोरेज बनाये जा सकते हैं या इन पर सब्सिडी दी जा सकती है. गुड्स एंड सर्विस टैक्स के अंतर्गत हर माल पर एक ही दर से टैक्स लगाने का प्रस्ताव है. यह प्रस्ताव पास हुआ तो लौकी और पीजा पर एक ही दर से टैक्स लगेगा. तब आर्थिक नीतियों के माध्यम से स्वास्थ्य में सुधार नहीं हो सकेगा. जीएसटी के प्रति सरकार को मोह छोड़ना होगा.
डब्ल्यूएचओ का दूसरा सुझाव है कि फास्ट फूड के विज्ञापन पर रोक लगे. एक अध्ययन के अनुसार, अमेरिका में इस प्रतिबंध से मोटे लोगों की संख्या में 14 प्रतिशत की कमी आयेगी.
ताइवान में पाया गया कि बच्चों द्वारा अधिक टेलीविजन देखने से उनके वजन में वृद्धि होती है. कनाडा में पाया गया कि फास्ट फूड के एडवरटाइजमेंट से खपत में वृद्धि के साथ अधिक खर्च की प्रवृत्ति भी बढ़ती है. फास्ट फूड से होनेवाले नुकसान को लेकर जागरूकता अभियान भी चलाना जरूरी है.
संस्था का तीसरा सुझाव फास्ट फूड के लेबल को पारदर्शी एवं सख्त बनाने का है. किसी पदार्थ के स्वास्थ्य पर प्रभाव की जानकारी नहीं दी जाती है. सरकार को चाहिए कि भोजन के मानक बनाये.
कंपनियों के लिए इन मानकों का पालन जरूरी होना चाहिए. उदाहरण के लिए मैदे से बनी व्हाइट ब्रेड और आटे से बनी होल व्हीट ब्रेड के प्रभाव को रैपर पर छापना चाहिए. उपभोक्ता स्वयं तय करेगा कि वह किसकी खपत करेगा.
फास्ट फूड को स्वास्थ्यवर्धक दिशा में ले जाना है. यदि मैगी के पैकेट में सब्जी, मिनरल और फाइबर पर्याप्त मात्र में डाला जाये, तो यह स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होगा और इससे समय की बचत भी होगी. अमेरिका में ‘हेल्दी फास्ट फूड’ की चेन स्थापित हो रही है.
इस रेस्तरां में सब्जी, मोटे अनाज आदि की बिक्री की जा रही है. उल्लेखनीय बात है कि पिछली तिमाही में मैक्डानल्ड के वैश्विक बिक्री में 23 प्रतिशत की गिरावट आयी है, जबकि चिपटोले जैसे हेल्दी फास्ट फूड की बिक्री में भारी वृद्धि हुई है. हमें भारतीय कंपनियों को हेल्दी फास्ट फूड की दिशा की ओर गतिशील करने की कोशिश करनी चाहिए.