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जिले में नक्सली व पानी अहम समस्या

खपत का आधा भी नहीं हो पा रहा मछली का उत्पादन गया : जिले में मछली की खपत के अनुपात में उत्पादन नहीं हो पाता है. इसका मुख्य कारण नक्सली व पानी की समुचित व्यवस्था का नहीं होना माना जाता है. कमी को पूरा करने के लिए दूसरे राज्यों से मछली मंगायी जाती है. हालांकि, […]

खपत का आधा भी नहीं हो पा रहा मछली का उत्पादन
गया : जिले में मछली की खपत के अनुपात में उत्पादन नहीं हो पाता है. इसका मुख्य कारण नक्सली व पानी की समुचित व्यवस्था का नहीं होना माना जाता है. कमी को पूरा करने के लिए दूसरे राज्यों से मछली मंगायी जाती है.
हालांकि, मत्स्य विभाग द्वारा जलकर व तालाबों में मछली पालन की जिम्मेवारी मत्स्यजीवी सहयोग समिति को दी जाती है. शहर में तो ये लोग आराम से मछलीपालन कर लेते हैं, लेकिन देहात व नक्सलग्रस्त क्षेत्रों में दिक्कत होती है. विभाग को राजस्व देने के बाद भी समिति को विभाग द्वारा कोई सुव्यवस्थित इंतजाम नहीं किये गये हैं. मछली का बीज डालने के बाद भी समिति को उत्पादन का फायदा नहीं मिल पाता है.
उल्लेखनीय है कि जिले में जलकर की संख्या 1065 (रकबा 1400 हेक्टेयर) व निजी तालाब 331 (रकबा 62 हेक्टेयर) है.विभाग द्वारा इनसे आठ लाख, नब्बे हजार रुपये राजस्व के रूप में वसूले जाते हैं. मत्स्य विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, जिले के 36 हजार लोग मछली खाते हैं. इनके लिए साल भर में 5.184 मीटरिक टन मछली की खपत होती है. लेकिन, जिले के तालाब, पोखर व आहर से महज 2.4 मीटरिक टन मछली का ही उत्पादन हो पाता है.
इसके बावजूद विभाग द्वारा विगत तीन साल से शत-प्रतिशत वसूली की जा रही है. जिले में मछलियों की डिमांड को पूरा करने के लिए आंध्र प्रदेश से मछलियां मंगायी जाती हैं, जबकि बोधगया के मोराटाल, खिजरसराय के नैली, इमामगंज, डुमरिया व सलैया में कई झील हैं, जिनमें मछली उत्पादन कर मांग के एक हिस्से को पूरा किया जा सकता है.
नक्सलग्रस्त इलाके में प्रभावित होता है मछली उत्पादन : विभाग को नक्सलग्रस्त इलाकों के जलकरों में मछली उत्पादन में काफी कठिनाई होती है. नक्सलियों के डर के साये में अगर विभाग तैयार भी हो जाता है, तो आम आदमी तैयार नहीं हो पाता. इसकी वजह से अधिकतर तालाब खाली रह जाते हैं.
मत्स्यजीवी सहयोग समिति, वजीरगंज के अध्यक्ष अंबिका केवट ने बताया कि विभाग द्वारा विभिन्न योजनाओं में लाभुकों के लिए अनुदान की घोषणा की जाती है, लेकिन उन्हें अब तक इसका लाभ नहीं मिला है.
उन्होंने बताया कि वजीरगंज के सहिया पोखरा, अढ़वां पोखरा, दक्खिन गांव आहर पोखरा, महेशी पोखरा थाने के सामने, सोवा आहर व कारी पोखरा को विभाग द्वारा राजस्व वसूली कर मछली पालने के लिए समिति के नाम से आवंटित कर दिया गया है. लेकिन, गांव के दबंगों ने कब्जा कर लिया गया है. विभाग से शिकायत के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई. उन्होंने कहा कि सावनमें मछली उत्पादन पर असर पड़ता है. बिक्री कम जाती है.
मत्स्य विभाग के उपनिदेशक उदय प्रकाश ने बताया कि विभाग द्वारा समय-समय पर समिति के सदस्यों को ट्रेनिंग के लिए कोलकाता व आंध्र प्रदेश भेजा जाता है.
जिले में विभाग द्वारा अनुदान पर निजी जमीन पर एक मत्स्य बीज हैचरी, (अनुमानित लागत 15 लाख, 50 हजार, अनुदान 50 प्रतिशत), पांच हेक्टेयर में तालाब (अनुमानित लागत 34.85 लाख रुपये, अनुदान पचास प्रतिशत) व ट्यूबवेल (अनुमानित लागत पंद्रह लाख रुपये, अनुदान पंद्रह प्रतिशत) पर लगाने की स्वीकृति दी गयी है. इन सभी योजनाओं के पूरा हो जाने से बहुत हद तक जिले में मछली की मांग पूरी की जा सकती है. वर्तमान में जिले के जलकरों व तालाबों से विभाग को हर साल आठ लाख, नब्बे हजार रुपये का राजस्व मिलता है.

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