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बड़ी संख्या में आइटी कंपनियां बिहार आएं

बिहार में पिछले दस सालों में निश्चित रूप से बड़ा बदलाव आया है. इस ने बिहार के प्रति लोगों की धारणा को बदला है. हम सबका राज्य को लेकर आत्मसम्मान बढ़ा है. 1995 और आज के बिहार में बड़ा फर्क है. हालांकि यह नहीं कहा जा सकता कि हमने वह सब हासिल कर लिया, जो […]

बिहार में पिछले दस सालों में निश्चित रूप से बड़ा बदलाव आया है. इस ने बिहार के प्रति लोगों की धारणा को बदला है. हम सबका राज्य को लेकर आत्मसम्मान बढ़ा है. 1995 और आज के बिहार में बड़ा फर्क है. हालांकि यह नहीं कहा जा सकता कि हमने वह सब हासिल कर लिया, जो इन बीस सालों में देश के दूसरे बड़े राज्यों ने प्राप्त किया है, मगर संभावनाएं जगी हैं. बीस साल पहले एलएस कॉलेज, मुजफ्फरपुर से इंटर की पढ़ाई करने के बाद ही हम दिल्ली आ गये.

दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन और मास्टर डिग्री लेने के बाद हमने यहीं नौकरी तलाश ली. अब यहीं रह रहे हैं, मगर बिहार आना-जाना बना हुआ है. हर चुनाव में हम वोट करने बिहार जाते हैं. बिहार छोड़ने की हमारी मजबूरी थी. तब वहां न तो रोजगार की संभावना थी, न टाइलेंट की कद्र. परीक्षा में खुले आम नकल हो रही थी. विकास का लक्षण दिखायी नहीं दे रहा था. सड़कों का हाल यह था कि सीवान से अपने गांव की 32 किमी दूरी तय करने में दो घंटे से ज्यादा का वक्त लगता था. कानून व्यवस्था की हालत यह थी कि शाम छह बजे के बाद सीवान स्टेशन पर उतरने में डर लगता था. इसके लिए हम मुजफ्फरपुर उतरते थे और दूसरे दिन गांव जाते थे. आज हालात बदले हैं. हम सुरक्षित भी महसूस करते हैं और सीवान स्टेशन से अपने गांव 40 मिनट में पहुंच जा रहे हैं. इस एडमिनिस्ट्रेटिव बदलाव का असर हर क्षेत्र में दिख रहा है, लेकिन अब भी चुनौतियां कम नहीं हुई हैं. राष्ट्रीय संदर्भ में विकास की खाई बनी हुई है.

हमारा अनुभव है कि इन 20 सालों में गुड़गांव और नोएडा ने जो विकास किया है, वह देश के दूसरे राज्यों के लिए एक मिसाल है. मैंने इन दोनों जगहों पर नौकरी की है, इस आधार पर यह कह रहा हूं. यहां क्या था? कायदे की जमीन तक नहीं थी, लेकिन उसने औद्योगिक और तकनीकी विकास की बदौलत अपने को इतना समृद्ध कर लिया है कि लगता ही नहीं है कि वह यही क्षेत्र है, जिसे हमने 20 साल पहले देखा था. इस दृष्टि से बिहार अब भी पिछड़ा हुआ है. इस राज्य को अगर आगे ले जाना है, तो हमें अपनी दृष्टि बदलनी होगी. यह समझना होगा कि दुनिया किस तेजी से बदल रही है, आगे बढ़ रही है और उस बदलाव की वजह जातीय संकीर्णता या सांप्रदायिक गोलबंदी नहीं है. हम दिल्ली से जाकर वहां वोट करते हैं.

हम बिहार का विकास उसी तर्ज पर देखना चाहते हैं, जो हरियाणा या दिल्ली का है, लेकिन क्या पूरा चुनाव इसी सोच के साथ लड़ा और जीता जा रहा है? अगर नहीं, तो इसके लिए जवाबदेह कौन है? हमें विश्वास है कि नयी सदी की युवा पीढ़ी बिहार के बदलाव का आधार बनेगी, क्योंकि अपने घर, अपने राज्य से दूर रह कर नौकरी-पेशा करने का दर्द वह ङोल रही है. सरकार और राजनीतिक दलों को भी इसे समझना होगा. बिहार में आइटी कंपनियां कैसे ज्यादा से ज्यादा आएं, इस पर विचार करना होगा. तभी रोजगार के भी अवसर बढ़ेंगे और हमारे जैसे लोग दिल्ली-मुंबई की बजाय अपने राज्य में रह कर वहां के विकास के लिए काम कर सकेंगे. इस चुनाव से हमें सच में बड़ी उम्मीद है.

लेखक मूलत: सीवान के कुमकुमपुर, मलमलिया के रहने वाले हैं. दिल्ली में निजी कंपनी में इंजीनियर हैं. हर बार वोट करने बिहार आते हैं.

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