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लेनिनग्राद में एनडीए-महागंठबंधन की लड़ाई

आपका जिला बेगूसराय बेगूसराय जिले में सात विधानसभा सीटें हैं. भाकपा व माकपा का इन सीटों पर लंबे समय तक दबदबा रहा है. कभी ‘लेनिनग्राद’ का प्रतीक माने जाने वाले बेगूसराय में बाद के वर्षो में वामपंथी कमजोर हुए और उनकी सीटें कम होती चली गयीं. 2010 के विधानसभा चुनाव में जदयू-भाजपा गंठबंधन ने वामदलों […]

आपका जिला बेगूसराय
बेगूसराय जिले में सात विधानसभा सीटें हैं. भाकपा व माकपा का इन सीटों पर लंबे समय तक दबदबा रहा है. कभी ‘लेनिनग्राद’ का प्रतीक माने जाने वाले बेगूसराय में बाद के वर्षो में वामपंथी कमजोर हुए और उनकी सीटें कम होती चली गयीं. 2010 के विधानसभा चुनाव में जदयू-भाजपा गंठबंधन ने वामदलों को गहरा धक्का दिया. इस बार होने वाले विधानसभा चुनाव में वामपंथी फिर पुरानी पकड़ बनाना चाहेंगे. जाहिर है ऐसे में महागंठबंधन, एनडीए और वाम दलों के बीच त्रिकोणात्म चुनावी संघर्ष के आसार बन सकते हैं. महागंठबंधन और एनडीए के घटक दलों में कौन सीट किसे मिलती है और कहां से कौन उम्मीदवार होगा, फिलवक्त इसी पर सब की नजर है.
टिकट पाने में दिग्गजों की परीक्षा
चेरिया बरियारपुर
विधानसभा चुनाव में राजनीतिक पार्टियां अपने किस नेता के सिर उम्मीदवारी का ताज रखती हैं, इस पर सब की नजर होगी. सभी दलों के बड़े नेता भी अपनी दावेदारी को मजबूत करने में जुटे हुए हैं. वर्तमान में यह सीट जदयू के पास है. जदयू की मंजु वर्मा यहां पिछले विधानासभा चुनाव में विजयी हुई थीं. इस बार राजनीतिक बदलाव के तहत भाजपा अपनी और सहयोगी दल लोपजा की साझी ताकत की बदौलत इस सीट को अपनी झोली में करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी. पिछले विधानसभा चुनाव में यहां लोजपा ने अपना उम्मीदवार दिया था और वह दूसरे स्थान पर रहा था. लिहाजा इस बार भी इस सीट से लोजपा के अनिल चौधरी के चुनाव लड़ने की संभावना है. हालांकि वोटों का अंतर बड़ा था. वहीं भाजपा के रामसुमिरन सिंह, महेश्वर सिंह बाबा आदि भी दौड़ में शामिल हैं. दूसरी ओर, भाकपा भी इस सीट पर अपने उम्मीदवार देने की तैयारी कर रही है.
अब तक
लोजपा के अनिल चौधरी ने पिछले चुनाव में एनडीए को कड़ी टक्कर दी थी. वहीं लोकसभा चुनाव में भाजपा और राजद के वोटों में अंतर बहुत कम था.
इन दिनों
एनडीए और महागंठबंधन विस चुनाव के लिए अलग-अलग कार्यक्रम चला रहे हैं. वामदल भी अपनी जमीन को मजबूत करने में जुटे हैं.
समीकरण : यहां भूमिहार और यादव मतदाताओं की संख्या ज्यादा है. अन्य पिछड़े और अतिपिछड़े वोटर भी इस बार अहम भूमिका निभायेंगे.
भाकपा छोड़ किसी की तसवीर साफ नहीं
बछवाड़ा
बछवाड़ा विधानसभा सीट पर भाकपा को छोड़ दूसरे किसी दल के उम्मीदवार के बारे में तसवीर साफ नहीं है. भाकपा अपने सीटिंग विधायक अवधेश राय को दोबारा मैदान में उतार सकती है. पिछले विधानसभा चुनाव में अरविंद सिंह निर्दलीय उम्मीदवार थे और दूसरे स्थान पर रहे थे. वे इस बार भी भाग्य आजमा सकते हैं. भाजपा में वंदना सिंह, बलराम सिंह वगैरह अपनी दावेदारी पेश कर सकते हैं. हालांकि एनडीए के तहत लोजपा के विनय कुमार भी अपनी किस्मत आजमा सकते हैं. यह देखना रोचक होगा कि एनडीए में यह सीट लोजपा को मिलती है या भाजपा को. इसी तरह महागंठबंधन में बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि यह सीट किस दल को मिलती है. महागंठबंधन अगर यह सीट कांग्रेस को देता है, तो रामदेव राय टिकट के दावेदार हो सकते हैं. जानकारों का मानना है कि टिकट नहीं मिलने से नाराज नेता अलग खिचड़ी भी पका सकते हैं. ऐसे नेताओं की भूमिका भी चुनाव में असर डालेगी.
अब तक
एनडीए और महागंठबंधन के नये समीकरण में सीट को लेकर संशय. टिकट से वंचित होने की आशंका के आधार पर नेता अलग खिचड़ी पकाने में जुटे.
इन दिनों
महागंठबंधन व एनडीए के घटक दल विकास और परिवर्तन को मुद्दा बना वाम दल को घेरेने में लगे हैं. भाकपा अपना किला बचाने में जुटी है.
समीकरण : यह यादव व भूमिहार बहुल क्षेत्र है. पिछले विधानसभा चुनाव के साथी इस बार आमने-सामने होंगे, मगर दोनों का टारगेट भाकपा ही होगी.
वोटरों के बीच पहुंच रहे प्रत्याशी
तेघड़ा
विधानसभा चुनाव में टिकट को लेकर सभी दलों में दावेदारी तेज हो गयी है. तेघड़ा 2010 के पूर्व बरौनी विधानसभा क्षेत्र के रू प में जाना जाता था. इस पर भाकपा के कॉमरेड चंद्रशेखर से लेकर राजेंद्र सिंह तक का लगातार 50 वर्षो तक कब्जा रहा. वर्ष 2010 में भाजपा-जदयू गंठबंधन के प्रत्याशी ललन कुंवर ने इस रिकॉर्ड को तोड़ा. कुंवर को भाजपा इस बार भी चुनाव मैदान में उतारेगी, इसकी संभावना ज्यादा है. वैसे भाजपा के रामलखन सिंह को भी यह मौका मिल सकता है. उधर महागंठबंधन में यह सीट किस सहयोगी दल के खाते में जायेगी, इसे लेकर अभी कयास ही लगाये जा रहे हैं. भाकपा पिछले चुनाव में दूसरे स्थान पर थी. वह अपने पिछले उम्मीदवार रामरतन सिंह को ही चुनाव मैदान में उतर सकती है. पिछले चुनाव में लोजपा भी मैदान में थी, लेकिन उसके उम्मीदवार प्रदीप राय भाकपा में लौट चुके हैं. इस लिहाज से चुनाव के पहले ही यहां उलट-पुलट हो चुका है.
अब तक
पिछले विधानसभा चुनाव में लोजपा के उम्मीदवार रहे प्रदीप राय ने पार्टी बदली है. वह अब भाकपा में लौट आयें हैं.
इन दिनों
सभी राजनीतिक दल संगठनात्मक रूप से चुनावी तैयारी में उतर चुके हैं. सीटों और उम्मीदवारों को लेकर अभी स्थिति पूरी तरह साफ नहीं.
समीकरण : यह क्षेत्र भूमिहार बहुल है. यहां अल्पसंख्यक और दलित-महादलित मतदाता भी अच्छी संख्या में हैं.
टिकट के लिए बदल सकते हैं दल
मटिहानी
मटिहानी विधानसभा क्षेत्र का इतिहास काफी दिलचस्प रहा है. यह वही विधानसभा क्षेत्र है, जहां देश में बूथ लूट की पहली घटना हुई थी. इस सीट पर पिछले चुनाव में जदयू के नरेंद्र कुमार सिंह ने जीत हासिल की थी. इससे पहले वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर भी यहां से चुनाव जीते. यह सीट कांग्रेस के खाते में भी रही है. उसके नेता प्रमोद कुमार शर्मा यहां से विधायक रह चुके हैं. फिलवक्त वे जदयू में हैं. चूंकि पिछले चुनाव में यह सीट जदयू ने जीती थी, इसलिए इस बात की संभावना ज्यादा है कि महागंठबंधन में यह सीट उसी के खाते में जाये.
वैसे पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 24 फीसदी से ज्यादा वोट लेकर दूसरे स्थान पर रही थी और लोकसभा चुनाव में 34 प्रतिशत से ज्यादा वोट लेकर राजद दूसरे नंबर पर था. उधर, एनडीए की तरफ से भाजपा के जिलाध्यक्ष संजय सिंह, कुंदन सिंह, पूर्व निर्दलीय प्रत्याशी सव्रेश कुमार वगैरह टिकट पाने की दौड़ में शामिल हैं, जबकि भाकपा एक बार फिर ताकत आजमायेगी. वह अपने पूर्व प्रत्याशी अनिल कुमार अंजान को इस बार भी चुनाव मैदान में उतार सकती है. मौजूदा तसवीर के मुताबिक महागंठबंधन, एनडीए और भाकपा इन तीनों के उम्मीदवारों के चुनाव मैदान में होने के आसार हैं. यानी चुनावी मुकाबला त्रिकोणात्मक हो सकता है.
अब तक
कांग्रेस के पूर्व विधायक प्रमोद कुमार शर्मा अब जदयू में हैं. लोस चुनाव में राजद ने कांग्रेस से ज्यादा वोट पाया था. वहीं भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ा.
इन दिनों
महागंठगंधन व एनडीए ने पूरी ताकत झोंक दी है. टिकट पाने के उम्मीद में नेताओं ने जोर आजमाइश शुरू कर दी है. वामदल ग्रास रूट पर सक्रिय है.
समीकरण : यह क्षेत्र यादव और भूमिहार बहुल है. मुसलमान वोटरों की संख्या भी अच्छी. जीत-हार में उन्हीं की सबसे बड़ी भूमिका रही है.
बढ़ी उम्मीदवारों की दावेदारी
बेगूसराय
बेगूसराय विधानसभा क्षेत्र का चुनाव शुरू से ही दिलचस्प रहा है. 2010 के विधानसभा चुनाव में यह सीट भाजपा को मिली थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में भी यहां उसे बढ़त मिली. इस लिहाज से इस सीट को लेकर भाजपा जितनी आश्वस्त है, विपक्ष उतनी ही बड़ी चुनौती देने की तैयारी में है. भाजपा यहां के अपने सीटिंग एमएलए सुरेंद्र मेहता को फिर चुनाव मैदान में उतार सकती है. वहीं इस पार्टी के कुमार साहब, आशुतोष पोद्दार हीरा व जयरामदास भी दावेदारी पेश कर रहे हैं.
पूर्व मंत्री जमशेद अशरफ भी अल्पसंख्यक वोट का फायदा लेने बेगूसराय आ सकते हैं. पिछले विस चुनाव में लोजपा ने यहां अपना उम्मीदवार दिया था और पार्टी दूसरे स्थान पर रही थी. इसके पिछले उम्मीदवार उपेंद्र प्रसाद सिंह इस बार भी दावा पेश कर सकते हैं. भाकपा या माकपा की भी उपस्थिति तय है. लोकसभा चुनाव में यहां राजद प्रत्याशी दूसरे स्थान पर था, जबकि कांग्रेस और जदयू की भी इस सीट पर नजर होगी.
अब तक
पूर्व मंत्री जमशेद असरफ के फिर चुनाव मैदान में उतरने की संभावना है. भाकपा-माकपा के संयुक्त उम्मीदवार दे सकती है.
इन दिनों
महागंठबंधन और एनडीए के संभावित उम्मीदवार जनता तक पार्टी कार्यक्रम और पार्टी संदेश पहुंचाने में जुटे हैं. निजी संपर्क पर भी सबका जोर है.
समीकरण : भूमिहार मतदाता निर्णायक रहे हैं. अल्पसंख्यक और यादव मतदाता इस समीकरण को अलग दिशा दे सकते हैं.
दलों में टिकट को ले मारा-मारी
बखरी (अजा)
जिले में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित यह अकेला विधानसभा क्षेत्र है. लिहाजा इस सीट को लेकर राजनीतिक दलों और चुनाव लड़ने की मंशा रखने वाले अनुसूचित जाति के नेताओं में आपाधापी ज्यादा रही है. बखरी सीट पर पिछले कई चुनावों में लाल झंडे का कब्जा रहा, पर पिछले चुनाव में रामानंद राम ने यहां भाजपा के झंडे को बुलंद किया. संभावना ज्यादा है कि एनडीए में यह सीट फिर भाजपा को मिले और रामानांद राम फिर उसके उम्मीदवार हों. हालांकि भाजपा के अनिल भारती और अशोक चौधरी जैसे नेता भी दावेदारी पेश कर सकते हैं. पिछले चुनाव में लोजपा के रामविनोद पासवान 21 फीसदी मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे. वे भी टिकट का दावा कर सकते हैं. महागंठबंधन में अगर यह सीट कांग्रेस को मिलती है, तो गौतम सदा या अरुण पासवान उम्मीदवार हो सकते हैं. लोस चुनाव में राजद दूसरे नंबर पर था. वह भी दावा कर सकता है. भाकपा का उम्मीदवार देना तय माना जा रहा है.
अब तक
बखरी विधानसभा क्षेत्र में लाल झंडा फहरता रहा है. पिछले चुनाव में नतीजा बदल गया था. यहां के वोटरों ने भाजपा को मौका दिया.
इन दिनों
एनडीए और महागंठबंधन अपने कार्यक्रमों को लेकर वोटरों के संपर्क में हैं. वामदल केंद्र और राज्य सरकार की पोल खोलने में लगे हैं.
समीकरण : अनुसूचित जाति के मतदाता निर्णायक होंगे. भूमिहार और यादव मतदाताओं की गोलबंदी नतीजे की दिशा बदल सकती है.
उपचुनाव के बाद बदली स्थिति
साहेबपुरकमाल
साहेबपुरकमाल ने 2010 के विधानसभा चुनाव के बाद 2014 में उपचुनाव भी देखा. विधानसभा चुनाव में जदयू उम्मीदवार परवीन अमानुल्लाह को राजद उम्मीदवार के खिलाफ बड़ी जीत मिली थी. उन्हें करीब 43 फीसदी वोट मिले थे. राजद के श्रीनारायण यादव दूसरे स्थान पर रहे थे. वहीं 2014 के उपचुनाव में भाजपा-जदयू गंठबंधन टूट चुका था और दोनों अलग-अलग हो चुके थे. इसमें राजद, जदयू, भाजपा, कांग्रेस और माकपा सब ने अपने-अपने उम्मीदवार दिये थे.
इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा-लोजपा गंठबंधन यहां से शशिकांत कुमार उर्फ अमर, सुरेंद्र विवेक या फिर डॉ जमशेद अशरफ में से किसी को मौका दे सकता है. वहीं महागंठबंधन में यह सीट राजद के खाते में जा सकती है. पिछले विधानसभा चुनाव में राजद दूसरे पर रहा था, जबकि लोकसभा चुनाव में उसे सबसे ज्यादा वोट मिले थे. कांग्रेस भी इस सीट के लिए प्रयास कर सकती है. 2010 के विधानसभा चुनाव में वह तीसरे स्थान पर रही थी.
अब तक
भाजपा-जदयू अलग होने का लाभ लोस चुनाव में राजद को मिला. विस में माकपा व लोस में भाकपा चुनाव मैदान में थे.
इन दिनों
जदयू का हर घर दस्तक कार्यक्रम व भाजपा का कार्यकर्ता सम्मेलन चला. राजद, कांग्रेस और वामदल का जनमुद्दों को ले संपर्क कार्यक्रम चल रहा है.
समीकरण : यह विधानसभा क्षेत्र यादव, सवर्णो और अल्पसंख्यक के प्रभाव वाला रहा है. प्रत्याशियों के चयन में यह फैक्टर हमेशा महत्वपूर्ण रहा है.

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