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सेंपल जांच के बाद भी अब तक नहीं हुआ निदान, नहीं आयी जांच रिपोर्ट

बक्सर : बक्सर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के लोग न सिर्फ गंदा पानी पी रहे हैं, बल्कि आर्सेनिक उक्त पानी पीकर मौत को गले लगा रहे हैं. जिले के कई गांवों के चापाकलों से आर्सेनिक का मात्र प्रचुर मात्र में निकल रहा है, जिससे अनभिज्ञ ग्रामीण उसे वर्षो से पीते रह रहे हैं. ऐसा नहीं […]

बक्सर : बक्सर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के लोग न सिर्फ गंदा पानी पी रहे हैं, बल्कि आर्सेनिक उक्त पानी पीकर मौत को गले लगा रहे हैं. जिले के कई गांवों के चापाकलों से आर्सेनिक का मात्र प्रचुर मात्र में निकल रहा है, जिससे अनभिज्ञ ग्रामीण उसे वर्षो से पीते रह रहे हैं.
ऐसा नहीं है कि जांच के लिए प्रशासन ने पहल नहीं की है, लेकिन यह चिंता सिर्फ कागजों तक ही सिमट कर गयी है. जिले से 13 हजार चापाकलों के नमूने लिये जाने हैं, जिसमें अब तक मात्र साढ़े तीन हजार चापाकलों के जलों के नमूने लिये जा सके हैं.
जिन चापाकलों के नमूने लिये गये हैं, उनकी जांच रिपोर्ट अब तक नहीं आयी है. आर्सेनिक युक्त पानी पीने से लोग बीमार पड़ रहे हैं और शरीर में दाग व विकलांगता के भी शिकार हो रहे हैं. हाल ही में पीएचइडी ने सिमरी प्रखंड में कुछ चापाकलों के नमूने एकत्र कर जांच के लिए कोलकाता भेजा है.
जिले के सिमरी प्रखंड में आर्सेनिक फ्लोराइड व आयरन की मात्र ज्यादा मिलने की लगातार शिकायतें मिलने के बाद इस प्रखंड में दर्जनों चापाकलों के नमूने लिये जा चुके हैं. इस संबंध में पीएचइडी की ओर से प्रयास चल रहा है. विभाग का कहना है कि प्रखंड के उन क्षेत्रों से भी नमूने लिये जायेंगे, जहां की शिकायतें अभी तक नहीं मिली है. आर्सेनिक युक्त पानी जिले के गंगा और नदियों के किनारेवाले क्षेत्र में मिला है. बक्सर, चौसा, सिमरी व चक्की प्रखंड के नदी के किनारे बसे गांवों के लोग चापाकलों से निकलनेवाले आर्सेनिक युक्त पानी पी रहे हैं. बक्सर जिले के ब्रह्मपुर प्रखंड और ब्रह्मपुर से सटे भोजपुर जिले के शाहपुर प्रखंड के करनामेपुर, ओझवलिया, सोनवर्षा समेत दर्जनों गांवों में लोग आर्सेनिक युक्त पानी पी रहे हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार आर्सेनिक की मात्र जिले में 1.5 पीपीएम-पार्ट पर मिलियन-दर्ज की जा चुकी है.
जबकि चापाकलों में आयरन की मात्र भी एक पीपीएम जांच में पायी जा चुकी है. विभाग का मानना है कि चार सौ फुट नीचे गहरे चापाकल में इसकी मात्र नहीं मिलती, मगर ग्रामीण क्षेत्रों में लोग सौ फुट और डेढ़ सौ फुट की गहराई तक ही चापाकल लगाये गये हैं, जिसके कारण लोगों को आर्सेनिक युक्त पानी पीना पड़ रहा है. जांच का जिम्मा सरकार ने कोलकाता की एसआरएल कंपनी को दिया है. अब तक जिले में लक्ष्य का एक चौथाई चापाकलों का नमूना ही लिया जा सका है. जबकि करीब 10 हजार चापाकलों का नमूना लिया जाना बाकी है.
क्या-क्या होती हैं बीमारियां
आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन जैसे मिले पानी पीने से शरीर में खुजली, शरीर में फोड़ा-फुंसी, त्वचा का रंगत बदलना, पैर में झंझनाहट और दांत पीला होने समेत पेट की कई बीमारियां हो जाती हैं तथा लोगों को पेट दर्द होने लगता है. खाली पेट पानी पीने से आर्सेनिक का प्रभाव तीव्र गति से बढ़ता है.
कैसे करें पहचान
पानी को निकाल कर खुले हवा में अगर बालटी में रख कर छोड़ दिया जाये, तो उसके सतह पर परत आ जाती है और पानी का रंग भी बदल जाता है. ऐसे में पानी को फिल्टर कर और उबाल कर पीने से काफी हद तक राहत मिल सकती है.
कहते हैं विभाग के केमिस्ट
पीएचइडी के केमिस्ट इंचार्ज रविशंकर कहते हैं कि चापाकलों से मिले पानी की जांच के बाद कोई उपाय निकाला जा सकता है. जांच के बाद ही उसकी मात्र और उसका फैलाव का आंकलन किया जा सकेगा,कहते हैं पीएचइडी के अधिकारी
पीएचइडी के कार्यपालक अभियंता अनिल कुमार कहते हैं कि सरकार की ओर से आर्सेनिक युक्त और आयरन युक्त पानी की जांच सतत प्रक्रिया है. विभाग की रूरल वाटर सप्लाइ, मिनी वाटर सप्लाइ और चार सौ फुट गहरे चापाकलों से न आयरन मिलता है और न आर्सेनिक. विभाग फिर भी स्थानीय तौर पर गाड़े गये कम गहराई वाले चापाकलों से परेशान है और इसकी जांच विभाग लगातार करा रहा है.
वैसे भी अब तक हुए जांच में आर्सेनिक और आयरन दोनों की मात्र काफी कम पायी गयी है, जिससे जिलेवासियों को तनाव में रहने की जरूरत नहीं है.
आर्सेनिक के प्रभाव का लक्षण
विशेषज्ञों के अनुसार आर्सेनिक एक बेहद जहरीला धातु तत्व है और यह तीन रंगों पीला, काला और भूरे रंग के रूप में होता है.
आर्सेनिक के जहर का प्रभाव आमतौर पर पांच से 20 वर्षो के बीच होता है़ जानकारी के अनुसार आर्सेनिक के प्रभाव से त्वचा का रंग परिवर्तन, हथेली और तलवों की त्वचा कड़ी होना, त्वचा कैंसर, मुत्रशय, गुर्दे एवं फेफड़े का कैंसर, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, प्रजनन संबंधी विकार व रक्त वाहिकाओं के रोग उत्पन्न होते हैं

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