विधानसभा चुनाव में राजनीतिक पार्टियां भले अपने तरीके से अपनी बात वोटरों तक पहुंचाने की कोशिश में लगी है, युवा मतदाता उस बात को अपने तरीके से समझने की कोशिश कर रहा है. उसे इस बात की शिकायत भी है कि 21वीं सदी में भी हमारा लोकतंत्र जाति और धर्म के बंधन से आगे नहीं निकल पाया है. उन्हें यह भी मलाल है कि कोई भी राजनीतिक दल विकास के अपने एजेंडे के साथ वोटरों के सामने अभी तक नहीं आया है.
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युवाओं को स्थानीय समस्या और किसानों की चिंता
विधानसभा चुनाव में राजनीतिक पार्टियां भले अपने तरीके से अपनी बात वोटरों तक पहुंचाने की कोशिश में लगी है, युवा मतदाता उस बात को अपने तरीके से समझने की कोशिश कर रहा है. उसे इस बात की शिकायत भी है कि 21वीं सदी में भी हमारा लोकतंत्र जाति और धर्म के बंधन से आगे नहीं […]
स्थानीय मुद्दे हैं अहम
चुनाव में स्थानीय मुद्दे बहुत मायने रखते हैं. स्थानीय मुद्दा जब जोर पकड़ता है तब नेताओं को खबर होती है और सभी अपने-अपने तरीके से उसे हल करने में लग जाते हैं और वोट बैंक की राजनीति करना शुरू कर देते हैं. अगर नेता क्षेत्र की समस्याओं का आकलन कर लोगों की मांग पर अमल करें तो समस्याएं समय पर सुलझ सकती हैं और उन्हें वोट बैंक की राजनीति नहीं करनी पड़ेगी. सिर्फ चुनाव के समय ही स्थानीय मुद्दों को नहीं उठाया जाना चाहिए. जनता की भावना को नेता लोग नहीं समझते हैं. नेता जनप्रतिनिधि होता है. कई जन प्रतिनिधि तो जनता से भी नहीं मिलते हैं. जब पुन: उन्हें कुरसी की याद आती है और पद पाने की दरकार रहती है तो सीधे तौर पर उन्हें जनता में ही देवता नजर आते हैं.
प्रज्ञा, पीडब्ल्यूसी, हिस्ट्री
धन-बल का प्रयोग बंद हो
मैं हमेशा से चाहती हूं कि चुनाव शांतिपूर्ण हों. चुनाव आयोग की सख्ती के बाद चुनाव की प्रक्रि या में अच्छे बदलाव हुए हैं. शांतिपूर्ण और स्वच्छ चुनाव कराने के प्रति चुनाव आयोग संवेदनशील रहता है कि कहीं कोई गड़बड़ी न हो. चुनाव में कई और बदलाव की जरूरत है. चुनाव में धन और बल का प्रयोग बंद होना चाहिए. प्रत्याशियों को चुनाव में गलत हथकंडे अपनाने से खुद को रोकना चाहिए. दल-बदल की प्रक्रि या खत्म होनी चाहिए. विकास का एजेंडा तो सिर्फ चुनाव के समय जनता के सामने रखा जाता है. चुनाव खत्म तो, एजेंडा भी गायब हो जाता है. चुनाव में जीत बाहुबली और पैसों वालों की होती है. इस परिस्थिति को बदलने की जरूरत है तभी बिहार का सही मायने में विकास संभव है.
अंकिता, एमएमसी, बी कॉम
ऐसी सरकार हो जो बिहार को बेहतर बनाये
हमें तो बिहार का विकास चाहिए. एक ऐसी सरकार चाहिए जो बिहार को बेहतर कर सके. बिहार से पलायन रुके. लोग बिहार कमाने के लिए आये. एक सुंदर बिहार का निर्माण होना चाहिए. निर्माण भी बेहतर होना चाहिए. राजधानी पटना की सुंदरता तो वर्तमान सरकार ने खत्म कर दी. अगर कभी भी दोपहर में अशोक राजपथ में पीएमसीएच, कॉलेज या यूनिविर्सटी जाना हो तो आप को जाम का सामना करना पड़ेगा. शहर को सुंदर बनाने के लिए एक सही विजन होना चाहिए. मेरा वोट उसी उम्मीदवार को मिलेगा जिसके पास मेरे विधानसभा क्षेत्र को सुंदन बनाने का विजन हो.
शफक, एमजेएमसी, पीयू
देख कर वोट करे जनता
विकास का अर्थ लोग खुद समझ रहे हैं. चुनाव में मुद्दों पर बात होती है. लेकिन चुनाव के बाद कितने मुद्दों पर काम होता है, यह भी देखा जाना चाहिए. जनता को खुद देख कर वोट करना चाहिए कि क्या उनके जनप्रतिनिधि जन समस्याओं को हल करने में कारगर साबित हुए हैं. अगर हुए हैं तो उसे पैमाना मानकर अपना फैसला करना चाहिए. राजनीतिक दल विकास को नहीं देख रहे हैं. उन्हें सिर्फ कुरसी की चिंता है. किसी भी तरह से सत्ता पाने के लिए राजनीतिक पार्टयिां बेमेल गठबंधन बनाने में जुटी है. उनका यह गंठबंधन सिर्फ जाति और धर्म के गणित पर आधारित होता है. इसमें विचार, विकास और जनता का कोई स्थान नहीं होता है. अब फैसला हम वोटरों के हाथ में. मैं तो अपना वोट ऐसे उम्मीदवार को दूंगा जो जनता के बारे में सोचता हो.
विकास कुमार, इंजीनियरिंग छात्र
किसानों की सुने सरकार
इस वर्ष का विधान सभा चुनाव कुछ अपने अलग ही रंग में नजर आ रहा है. सभी पार्टियों ने फिर से नये-नये वादों के साथ पटना को होर्डिंग्स से पाट दिया है. एक बार फिर से जात-पात की राजनीति शुरू हो गयी है. किसी के पास भी बिहार के विकास की बात करने के लिए समय नहीं है. सरकार चाहे किसी की भी बने, बिहार को विकास की ओर ले जाना उसका पहला और आखिरी मकसद होना चाहिए. बिहार की सड़कें अच्छी हो गयी. माहौल बदल गया है. लेकिन अभी भी गांव में कृषि के लिए कोई काम नहीं हुआ है. नहर की खुदाई सरकार की एक योजना थी, लेकिन नहर की खुदाई नहीं हुई. खेत तक पानी नहीं पहुंच रहा है. नयी सरकार को सबसे पहले किसानों की सुननी होगी, इसी में सभी की बेहतरी है.
पिंटू, एमजेएमसी, पीयू
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