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कम संख्या में आते हैं मरीज

नवादा (नगर)देशी चिकित्सालय में चिकित्सक हैं. लेकिन, इलाज कराने बहुत कम संख्या में मरीज आते हैं. नगर के न्यू एरिया आरएमडब्ल्यू कॉलेज के पास किराये के मकान में संचालित देशी चिकित्सालय के बारे में स्थानीय लोग भी बहुत कम जानते हैं. अस्पताल सही ढंग से बना नहीं रहने के कारण मरीजों को इसकी जानकारी ही […]

नवादा (नगर)देशी चिकित्सालय में चिकित्सक हैं. लेकिन, इलाज कराने बहुत कम संख्या में मरीज आते हैं. नगर के न्यू एरिया आरएमडब्ल्यू कॉलेज के पास किराये के मकान में संचालित देशी चिकित्सालय के बारे में स्थानीय लोग भी बहुत कम जानते हैं. अस्पताल सही ढंग से बना नहीं रहने के कारण मरीजों को इसकी जानकारी ही नहीं है. देशी चिकित्सालय भवन को बाहर से देख कर शायद ही कोई बता सकता है कि इसमें अस्पताल संचालित होता होगा. देशी चिकित्सालय में होमियोपैथ, आयुर्वेद एवं यूनानी तीनों भारतीय चिकित्सा पद्धति के विशेषज्ञ डॉक्टर बहाल हैं. अधिकारियों के अनुसार तीन से 40 मरीज ही प्रतिदिन इलाज के लिए पहुंच पाते हैं.

अस्पताल का नहीं है अपना भवन : जिले में बने सभी देशी अस्पतालों का अपना भवन नहीं है. वर्षो पुराने तय रेट के आधार पर किराये के मकान में यह अस्पताल चल रहा है. नया रेट फिक्सेशन नहीं होने के कारण दोना गांव में दो सौ रुपये में तथा सोनसिहारी गांव में ढ़ाई सौ रुपये में किराये के मकान में अस्पताल चलाया जा रहा है. मकान मालिकों द्वारा देशी अस्पताल को खाली करने का दबाव बनाया जाता है. प्रशासन द्वारा नया किराया रेट फिक्सेशन की प्रक्रिया जटिल होने के कारण अब मकान मालिक अस्पताल खाली कराने की बात करते हैं. जिला मुख्यालय में नया रेट फिक्स हुआ है. लगभग छह हजार रुपये मासिक किराया तय हुआ है. लेकिन पांच कमरों के फ्लैट के लिए यह रुपये कम ही है.
दवाओं का रहता है अभाव : जिला मुख्यालय को छोड़ कर देशी चिकित्सालय के अंतर्गत आयुर्वेदिक अस्पताल दोना, दरामा एवं वारिसलीगंज में बना है. इसी प्रकार होमियोपैथिक अस्पताल हिसुआ में तथा यूनानी अस्पताल सेनसिहारी गांव में बना हुआ है. सोनसिहारी को छोड़ कर सभी अस्पतालों में डॉक्टरों के सभी पद भरे हुए हैं. बावजूद आम लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है. प्रतिवर्ष सरकार की ओर से लगभग दो लाख रुपये की दवा खरीदने का बजट आता है. इस रुपये से आयुर्वेदिक, यूयानी एवं होमियोपैथिक के अस्पतालों के लिए वर्ष भर की दवा खरीदी जाती हैं. यह रुपये दवा खरीद के लिए पर्याप्त नहीं है. वित्तीय वर्ष 2014-15 के लिए फरवरी माह में दवा की खरीदारी हुई है. जो अब स्पतालों में समाप्त होने को है. अगले महीने से अस्पताल में आनेवाले मरीजों का इलाज कैसे होगा इसका जवाब किसी के पास नहीं है.
दवा खरीदारी में होती है परेशानी : दवा खरीदारी का काम जिला को करना होता है. लेकिन, खरीदारी प्रक्रिया जटिल होने के कारण टेंडर कराने में दिक्कत आती है. टेंडर के लिए दूसरे जिला द्वारा एप्रूव रेट के अनुसार काम करना होता है. क्योंकि एक जिला के लिए कोई दवा कंपनी टेंडर डालना नहीं चाहती है.
कर्मचारियों का वेतन है बाकी :
देशी अस्पताल में काम करनेवाले कर्मचारियों व डॉक्टरों का वेतन पिछले तीन माह से बाकी है. वेतन के अभाव में कर्मचारियों की समस्या बढ़ी हुई है. कर्मचारियों ने कहा कि नियमित रूप से काम करने के बाद जब वेतन नहीं मिल रहा है तो परिवार का खर्च कैसे चलेगा.

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