II अनुप्रिया अनंत II
फिल्म : मसान
कलाकार : श्वेता त्रिपाठी, विनीत कुमार, विकी कौशल, ऋचा चड्डा, संजय मिश्रा
निर्देशक : नीरज घेवन
लेखक : वरुण ग्रोवर
सिनेमेटोग्राफर : अविनाश अरुण
रेटिंग : 4 स्टार
‘मसान’ आपको जिंदगी की हकीकत के उतने ही करीब ले जाती है. जितनी मौत के. मृत्यु जीवन का अटल सत्य है. लेकिन मृत्यु का ख्याल आते ही, अपनो को खोने के डर मन को विचलित कर देता है. लेकिन नीरज घेवान ने अपनी ‘मसान’ के जरिये मृत्यु के इस सच को सहजता से दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया है. बनारस की पृष्ठभूमि में बनी इस फिल्म में इस बार हम रांझणा का रूप तो देखते हैं. लेकिन किसी अन्य अंदाज में.
आमतौर पर बनारस व वहां के घाटों पर गढ़ी गयी कहानियां दर्शकों के सामने आयी है. ऐसी मान्यता है और हिंदू रीति-रिवाज में अब भी अंतिम संस्कार के बाद अस्थियां बनारस के घाट में ही प्रवाहित किया जाना पुण्य माना जाता है. नीरज अपने सिनेमेटोग्राफर अविनाश अरुण और लेखक वरुण ग्रोवर की मदद से हमें इस दुनिया की उस हकीकत से सामना कराते हैं. शायद जिससे अब तक हिंदी सिनेमा के निर्देशकों ने भी दूरी बना रखी थी.
एक निर्धारित जाति द्वारा किस तरह मुर्दाओं को जलाने का काम किया जाता है. और किस तरह उनकी तमाम पीढ़ी इसी में झोंकी रहती है. फिल्म के यह दृश्य आपको बनारस के घाट की खूबसूरती के होने वाले बखान से कहीं दूर एक कड़वे हकीकत से रूबरू कराती है. मसान में दो कहानियां एक साथ चलती हैं और दोनों का संगम इलाहाबाद के संगम में किस तरह होता है. यह दर्शाती है. इसी परिवार का एक सदस्य दीपक इन सबसे दूर जाकर अपनी पढ़ाई पूरी कर इंजीनियर बनना चाहता है.
इसी क्रम में उसे शालु से प्यार होता है. शालू और दीपक की प्रेम कहानी को फिल्मी न बनाते हुए छोटे शहरों में प्यार की एक अलग परिभाषा कैसी होती है. उसे बखूबी दर्शाया जाता है. लेकिन शालू और दीपक का प्यार अधूरा रह जाता है. गीत मन कस्तूरी रे…बात हुई न पूरी रे…के माध्यम से निर्देशक से दीपक के अधूरे प्रेम के दर्द को बखूबी परदे पर उकेरा है.
दूसरी तरफ देवी की कहानी है. देवी को अपने इंस्टीटयूट के एक लड़के से प्रेम हो जाता है और दोनों इस हालात में पहुंच जाते हैं कि लड़का आत्महत्या कर लेता है. और पुलिस लगातार देवी और उनके पिता पाठक को तंग करती है, और ब्लैकमैल करती है. देवी जिसकी छोटी सी भूल उसके लिए कलंक बन जाती है. देवी भी तय करती है कि वह हर हाल में पीयूष जो कि आत्महत्या कर लेता है. उसके घर इलाहाबाद जरूर जायेगी. पाठक पैसों का इंतजाम करने के लिए अपने पास काम कर रहे बाल झोंटा को न चाहते हुए भी गंगा में डूबकी लगाने व पैसा इकट्ठा करने को कहता है.
झोंटा के माध्यम से हम बनारस व अन्य घाट पर होने वाले व्यापार का सीधा प्रसारण देखते हैं. ‘मसान’ में एक साथ कई चरित्र अपनी अपनी कहानियां दिखा सुना रहे हैं. और इस क्रम में हमारे सामने बनारस की कई हकीकत सामने आती है. फिल्म के चरित्र, उनके अंर्तद्वंद आपको अंदर से झकझोरते हैं. फिल्म की सबसे खास बात यह है कि कलाकारों को या चरित्रों को फिल्मी नहीं बनाया गया है. कलाकार जबरन अभिनय करते नजर नहीं आते. सभी कलाकार हमारे बीच के लगते हैं और स्थितियां भी हमारी निजी जिंदगी से मेल खाती है.
शायद यही वजह है कि आप फिल्म से खुद को जुड़ा महसूस करेंगे. संजय मिश्रा और ऋचा चड्डा के बीच एक पिता पुत्री के रिश्ते को लेकर फिल्मी प्यार या फिक्र नहीं दिखाया गया है. दीपक और उसके पिता के बीच भी सामान्य व स्वाभाविक प्यार है. नीरज की यह पहली फिल्म है और उन्होंने अपनी पहली फिल्म से ही अपनी दार्शनिक व दूरदर्शी सोच व नजरिया का प्रमाण दे दिया है.
विकी कौशल और श्वेता त्रिपाठी पहली फिल्म से ही उम्मीद जगा देते हैं. वरुण ग्रोवर ने अपने लेखन व गीतों के बोल से स्पष्ट कर दिया है कि वे बनारस व मानवीय हकीकत से कितने जुड़े हैं. मसान को कान में बड़ी सफलता मिली है. हिंदुस्तान में भी इस फिल्म का स्वागत किया जाना चाहिए.