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असल में जमीन कम, पर कागज में बनाया अधिक का मालिक

रांची : धनबाद में अधिगृहीत जमीन से ज्यादा का भुगतान रैयतों को किया गया है. धनबाद के तिलाटांड में झरिया पुनर्वास एवं विकास प्राधिकार के लिए आवास हेतु जमीन का अधिग्रहण किया गया है. तिलाटांड मौजा में कुल 770.48 एकड़ जमीन अधिगृहीत की गयी है. इसमें धनबाद में 174.815 एकड़ आदिवासी जमीन अधिग्रहीत हुई है. […]

रांची : धनबाद में अधिगृहीत जमीन से ज्यादा का भुगतान रैयतों को किया गया है. धनबाद के तिलाटांड में झरिया पुनर्वास एवं विकास प्राधिकार के लिए आवास हेतु जमीन का अधिग्रहण किया गया है.
तिलाटांड मौजा में कुल 770.48 एकड़ जमीन अधिगृहीत की गयी है. इसमें धनबाद में 174.815 एकड़ आदिवासी जमीन अधिग्रहीत हुई है. आदिवासी जमीन का अधिग्रहण और मुआवजा वितरण में अनियमितता की बात आयी है.
इस मौजा की खाता संख्या-02 में 32.17 एकड़ जमीन रिकॉर्ड के मुताबिक कुंवर टुडू और शुकु टूडू के नाम है. इनके वशंज श्यामलाल हांसदा (6.145 एकड़), दिनेश टुडू एवं गणोश टुडू (6.80 एकड़), विश्वनाथ मरांडी (1.229 एकड़) एवं शनिचार सोरेन (1.229 एकड़), सादमुनी देवी (1.229 एकड़), सरोती देवी (1.229 एकड़) एवं रविलाल सोरेन (1.229 एकड़) की जमीन अधिग्रहीत की गयी. इस खाते के 32.17 एकड़ जमीन से कुल 19.09 एकड़ जमीन अधिग्रहण के बाद शेष 13.08 एकड़ जमीन बच गयी.
बाघमारा अंचल के इस बची हुई आदिवासी जमीन में से 12.09 एकड़ जमीन की खरीद-बिक्री की अनुमति दे दी गयी. इस जमीन का फरजी डीड बना कर आदिवासियों के बीच ही खरीद-बिक्री दर्शाया गया. वंशावली के अनुसार श्यामलाल हांसदा के हिस्से 8.04
एकड़ जमीन आती है. श्याम लाल हांसदा की इसमें से 6.145 एकड़ जमीन पहले ही अधिग्रहीत हो गयी थी.अधिग्रहण के बाद श्यामलाल हांसदा की लगभग दो एकड़ जमीन बच रही थी, लेकिन उनकी 6.885 एकड़ जमीन की खरीद-बिक्री की अनुमति दी गयी. खतियान में दर्ज जमीन से ज्यादा का खरीद का डीड बना दिया गया. यही नहीं रिकार्ड में बताया गया कि जमीन बेचने के बाद भी श्यामलाल हांसदा के पास 29.09 एकड़ जमीन बच रही है. इस प्रकार जिस व्यक्ति के हिस्से में 8.04 एकड़ जमीन मिलनी थी, उसे 42.93 एकड़ जमीन का मालिक बना दिया गया.
आदिवासियों को पता नहीं, हो गयी जमीन की खरीद-बिक्री
तिलाटांड में जमीन की खरीद-बिक्री की जानकारी आदिवासी रैयतों को नहीं है. आदिवासियों ने इसकी लिखित शिकायत धनबाद के उपायुक्त से की है. आदिवासियों ने लिख कर दिया है कि उन्होंने किसी को जमीन नहीं बेची है, जबकि रिकार्ड में आदिवासी जमीन की खरीद-बिक्री आदिवासियों के बीच किया जाना दर्ज है. भू-माफियाओं ने इसका फरजी डीडी मुआवजा हड़पने के लिए तैयार किया है.

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