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गरिमा के सौदागर
– हरिवंश – झारखंड चुनाव : चुनिए राजनीतिक दलों को, अच्छे लोगों को विधानसभाओं की तुलनात्मक स्थिति राज्य विधायकों की संख्या स्टाफ वार्षिक खर्च (करोड़ रूपये में) छत्तीसगढ़ 91 255 5.60 उत्तराखंड 70 190 4.25 बिहार 243 630 7.25 झारखंड 81 960 16.81 लोकतंत्र में विधानसभा ही मूल प्राण है. सुशासन के लिए. विकास के […]
– हरिवंश –
झारखंड चुनाव : चुनिए राजनीतिक दलों को, अच्छे लोगों को
विधानसभाओं की तुलनात्मक स्थिति
राज्य विधायकों की संख्या स्टाफ वार्षिक खर्च (करोड़ रूपये में)
छत्तीसगढ़ 91 255 5.60
उत्तराखंड 70 190 4.25
बिहार 243 630 7.25
झारखंड 81 960 16.81
लोकतंत्र में विधानसभा ही मूल प्राण है. सुशासन के लिए. विकास के लिए. भ्रष्टाचार रोकने के लिए. कानून व्यवस्था दुरूस्त करने के लिए. कुल मिला कर राज्य को आगे ले जाने के लिए.
पर दिनोंदिन झारखंड विधानसभा में मर्यादाओं का हनन हुआ. नियुक्तियों में भ्रष्टाचार हुए. राज्य के गंभीर सवालों पर इस संस्था के पास न कोई सपना था, न चिंता. विधानसभा का अपने स्तर से फिसलना ही झारखंड के पतन में मूल बात है. चुनाव होने हैं. यह मौका है, जब जनता अच्छी विधानसभा का गठन कर सकती है. यह बुनियादी शर्त है बीमार, पस्त और लाइलाज झारखंड के बेहतर होने का. क्योंकि गंगोत्री में ही जब गंगा प्रदूषित और बदबूदार हों, तो कोई भगीरथ उन्हें बीच रास्ते में साफ और स्वच्छ नहीं कर सकता. इसलिए जरूरत है विधानसभा को स्तरीय, बेहतर और पारदर्शी बनाने का.
शुरूआत होती है, नियुक्तियों में गड़बड़ी से. अयोग्य लोगों का यहां चयन हुआ. इससे इसकी गरिमा घटी. स्तर प्रभावित हुआ. जो सबसे पवित्र संस्था है, जहां के नेतृत्व की रोशनी से राज्य रोशन होता, वहां राज्य अंधेरे में घुट रहा है. आलमगीर आलम के कार्यकाल में इन नियुक्तियों में घूस लेकर कई तरह की अनियमितताएं चर्चा में आयीं. यह मामला पीआइएल के माध्यम से हाईकोर्ट में है.
आरोप है कि नियुक्ति समिति में ऐसे लोग थे जिनके सगे-संबंधियों को नौकरी मिली. जो लोकतंत्र का ‘ लाइट हाउस’ है, अगर वहीं से अंधकार पसरने लगा, तो राज्य में घोटाले, भ्रष्टाचार, अराजकता पसरने ही थे. नियुक्तियों में फेवरिटिज्म, योग्यता की विदाई और अनियमितताएं.
इस फिसलन की शुरुआत इंदरसिंह नामधारी के समय से ही हुई. 2001 में विधानसभा में 212 स्टॉफ थे. नामधारी जी ने क्लास थर्ड और फोर्थ श्रेणी में 262 लोगों को भरा. क्लास थर्ड और फोर्थ में अगस्त 2009 में आलमगीर आलम ने 283 लोगों को चुन लिया. आज झारखंड विधानसभा में कुल 960 स्टॉफ हैं.
तथ्य यह है कि इन सबके एक साथ बैठने की जगह नहीं है. ड्राइवर, माली, टाइपिस्ट, क्लर्क भर गये हैं. बात इतनी ही नहीं, यही प्रमोट होकर ऊपर तक पहंच रहे हैं. संयुक्त सचिव स्तर के लोग 70,000 से अधिक वेतन पा रहे हैं. जो कुछ ही दिनों पहले मामूली पदों पर बैठे, वे अब ऊपर के पदों तक पहंच रहे हैं. सच पूछिए तो कई उस पद के काबिल ही नहीं हैं. माननीय नामधारीजी का एक और बड़ा योगदान था. विधानसभा सचिव का पद कैडर पोस्ट है. न्यायिक सेवा के लोग ही इसमें आते हैं. बिहार में भी ऐसा ही है. पर माननीय नामधारीजी ने नान-जूडिसियल कैडर का आदमी इस पर बैठा दिया. विधानसभा से इसके लिए कानून पास करा लिया. बहुत दिनों तक इन महत्वपूर्ण पदों पर कार्यकारी लोग रखे गये.
मकसद था कि ऐसे लोग नेताओं की इच्छा पूरी करें. कानून के साथ न चलें. विधानसभा सचिव के न्यायिक पृष्ठभूमि से आने के पीछे एक विजन था. कानून जाननेवाला व्यक्ति ही कानून बनानेवाली संस्था में महत्वपूर्ण पद पर हो, ताकि वहां कोई अवैधानिक काम न हो. इस कदम ने झारखंड विधानसभा की गरिमा पर कुठाराघात किया. फिर नामधारी जी ने पलामू के ही अधिकतर लोगों को ही विधानसभा में भरा. इस तरह के कामों से यह संदेश गया कि पक्षपात, अगंभीरता, संवैधानिक परंपराओं-मर्यादाओं का उल्लंघन अगर लोकतंत्र के मंदिर से ही शुरू होता है, तो फिर अन्य जगहों पर क्यों नहीं?
आलमगीर आलम के कार्यकाल में नियुक्तियों में हुई धांधली ने विधानसभा की मर्यादा की रही-सही कसर पूरी कर दी. विधानसभा के निलंबन के बाद भी वह नियुक्तियां कर रहे थे. समय मिलता, तो वह कर्मचारियों की संख्या हजार से अधिक पहुंचा चुके होते. मतदाताओं को आलमगीर आलम, कांग्रेस और यूपीए से पूछना चाहिए कि इस हालात के लिए आप अपनी क्या जिम्मेवारी कबूल करते हैं?
और इसे ठीक करने के लिए आप क्या करेंगे? क्या इसकी जांच होगी? सभी संभावित प्रत्याशियों से मतदाताओं को पूछना चाहिए कि विधानसभा में हुई नियुक्ति धांधली के खिलाफ जीतने पर आप क्या कदम उठायेंगे? जिस संस्था में राज्य के सबसे योग्य, दक्ष स्टॉफ होने चाहिए, वहां भीड़ इकट्ठी की गयी. किस मकसद से? यह दुनिया जानती है.
आज छत्तीसगढ़ विधानसभा में 91 विधायक हैं. वहां 255 स्टॉफ हैं. वहां विधानसभा पर खर्च का वार्षिक बजट है 5.60 करोड़. उत्तराखंड में 70 विधायक हैं. स्टॉफ हैं कुल 190. विधानसभा का वार्षिक खर्च बजट है 4.25 करोड़. पड़ोसी बिहार में कुल 243 विधायक हैं. स्टॉफ हैं लगभग 630. विधानसभा का वार्षिक खर्च बजट है 7.25 करोड़. झारखंड में 81 विधायक हैं. यहां स्टॉफ की संख्या हो गयी है 960. वार्षिक खर्च बजट बढ़ गया है 16.81 करोड़.
यह है झारखंड की तकदीर बनानेवालों का करतब ! विधानसभा की कार्यसंस्कृति पिछली शताब्दी की है. लीथो मशीन से काम होता है. अपार लीथो ऑपरेटर भरती कर दिये गये हैं. 21वीं शताब्दी के कंप्यूटर के जमाने में, 18वीं शताब्दी की लीथो मशीन से काम करनेवाली विधानसभा को बदले बिना क्या झारखंड बदलेगा? अगर कानून बनानेवाली संस्था ही प्रतिभाहीन लोगों, अयोग्य लोगों से भरी होंगी, तो वहां आधुनिक वर्क कल्चर कैसे होगा?
यह चुनाव विधानसभा को बेहतर बनाने का अवसर है. लोकतंत्र के मंदिर को झाड़फूंक कर साफ-सुथरा, रोशनी देनेवाला और प्रकाशवान बनाने का अवसर है. जाति, धर्म, भ्रष्टाचार, लूट, दलाली के चक्कर में फंसी राजनीति से ऊपर उठ कर क्या मुट्ठी भर लोग भी यह संकल्प लेंगे कि राजनीति को बेहतर बनाया जाये? नैतिक बनाया जाये? यही अवसर है, यह संकल्प लेने का. जो युवा संकल्प लेकर कुछ करना चाहते हैं, उनके लिए भी मौका है.
29-10-09
झारखंड चुनाव – 2
चुनिए राजनीतिक दलों को, अच्छे लोगों को
विधायकों का वेतन (प्रतिमाह)
झारखंड 26000 रुपये
गुजरात 21000 रुपये
नगालैंड 10000 रुपये
मध्यप्रदेश 9000 रुपये
कर्नाटक 8000 रुपये
हिमाचल 8000 रुपये
गोवा 5000 रुपये
राजस्थान 5000 रुपये
ओडिशा 5000 रुपये
सिक्किम 4000 रुपये
पंजाब 4000 रुपये
पं बंगाल 3000 रुपये
दिल्ली 3000 रुपये
मेघालय 3000 रुपये
तमिलनाडु 2000 रुपये
छत्तीसगढ 1500 रुपये
केरल 3000 रुपये
हरियाणा 1000 रुपये
झारखंड में अतिरिक्त सुविधाओं का पैकेज
मनोरंजन भत्ता 5000 रुपये प्रतिमाह
निजी सचिव भत्ता 10000 रुपये प्रतिमाह
यात्रा 3 लाख रुपये प्रतिवर्ष
स्थानीय यात्रा 10 रुपये प्रति किमी (विधानसभा क्षेत्र में)
टेलीफोन 1 लाख रुपये प्रतिवर्ष
(स्रोत – पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च)
झारखंड के विधायकों की प्रतिमाह परिलब्धियां हैं, 46000. प्रति वर्ष डेवलपमेंट बजट में 3 करोड का फंड, जो देश में कहीं नहीं है.
दिनांक : 28-10-09
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