प्रतिनिधि , मुंगेरगंगोत्री के तत्वावधान में शुक्रवार को रमजान के मौके पर ‘ नमाजे ईद की अहमियत ‘ विषय पर एक संगोष्ठी आयोजित की गयी. उसकी अध्यक्षता आध्यात्मिक चिंतक डॉ शिवचंद्र प्रताप ने की. उन्होंने कहा कि इस्लाम में नमाज की वही अहमियत है जो ईमारत में ईंटों की होती है. नमाज फकत जिस्म की कसरत नहीं मन का सर्मपण है. अल्लाह से लम्हा-लम्हा जुड़े रहने का असली जरिया है. नमाज और शायद दुनिया का कोई भी दीन ऐसा नहीं है जो उस मालिक से हर पल जुड़े रहने पर जोर न देता हो. उन्होंने कहा कि नमाज सबको साथ लेकर चलने में यकीन करती है. जाहिर है कि सबको साथ लेकर चले बिना अल्लाह की यह दुनिया खुबसूरत नहीं हो सकती. उन्होंने कहा कि कोई शख्स जमात में शामिल होकर नमाज अता करने से कतराता है तो वह अल्लाह ही नहीं खुद अपना और जमात का भी गुनहगार हो जाता है. इसलिए हदीस में कहा गया है कि जमात में शामिल होकर नमाज अदा करने से अकेले के बजाय सत्ताईस गुना ज्यादा सबाब हासिल होता है. गौरतलब है कि जमाती नमाज की यह पाबंदी औरतों के लिए नहीं है. उन्हें घर में रहकर ही नमाज अदा करने की छूट दी गयी है जो वाजिब भी है. उन्होंने कहा कि रमजान के मौके पर नमाजे ईद की खास अहमियत है. ईद त्योहार की शक्ल में रूहानी मुहब्बत का पैगाम देता है. यह दो रकअत की होती है. इसे अदा करने के लिए पहले ईद का चांद देखते ही सदका-ए-फित्र जिसे हजरत मुहम्मद ने जफातुल फित्र कहा है, अदा कर लेना निहायत जरूरी होता है. मौके पर खुरशीद आलम, साहब उददीन, डॉ पूनम रानी, शिवनंदन सलिल, गुरू दयाल त्रिविक्रम सहित अन्य मौजूद थे.
अल्लाह से जुड़ने का जरिया है नमाज : डॉ शिवचंद्र प्रताप
प्रतिनिधि , मुंगेरगंगोत्री के तत्वावधान में शुक्रवार को रमजान के मौके पर ‘ नमाजे ईद की अहमियत ‘ विषय पर एक संगोष्ठी आयोजित की गयी. उसकी अध्यक्षता आध्यात्मिक चिंतक डॉ शिवचंद्र प्रताप ने की. उन्होंने कहा कि इस्लाम में नमाज की वही अहमियत है जो ईमारत में ईंटों की होती है. नमाज फकत जिस्म की […]
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