धनसोई : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत की आत्मा गांव में बस्ती है. केंद्र सरकार ने गांवों को रोशन करने के लिए ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के माध्यम से प्रकाश बिखेरने की कवायद शुरू की, लेकिन अब भी समहुता पंचायत के करैला के ग्रामीण अंधेरे में लालटेन व ढिबरी के सहारे रहने को विवश हैं. चुनाव के कारण इस वर्ष करैला के लोगों को बिजली मिलने की आस जगी है.
छह दशक से नहीं है बिजली : आजादी के 65 साल के बाद भी ग्रामीणों के अथक प्रयास व कनेक्शन लेने के बावजूद आजतक गांव में पोल व तार का कोई अता-पता नहीं है. ग्रामीणों द्वारा सांसद से लेकर विधायक तक अपनी समस्याओं अवगत कराया गया, मगर अधिकारियों द्वारा फाइलों को घुमा कर तीन हजार लोगों के अरमानों की बल्ब जलने से पहले ही फ्यूज कर दिया. यही कारण है कि छह दशक ढिबरी में गुजारने के बाद भी गांव में विभाग द्वारा बिजली पहुंचाने के लिए कोई योजना नहीं बनायी गयी. सैकड़ों बार ग्रामीणों ने विभागीय अधिकारियों को इस संदर्भ में आवेदन देकर बिजली के लिए पोल तार लगाने का गुहार लगायी, लेकिन विभागीय अधिकारियों के पास बगैर बिजलीवाले गांवों में पोल तार लगाने के अब तक कोई भी सकारात्मक पहल नहीं किया गया.
क्या कहते हैं ग्रामीण
सरपंच मकरध्वज चौधरी, रामस्नेही चौधरी, वार्ड सदस्य राम अवध पटेल, कन्हैया चौधरी, अंबिका चौधरी, कलावति देवी, आशा देवी पूर्व पंचायत सदस्य(बीडीसी) रामनिवास पाठक आदि ने कहा कि 2002 में 45 ग्रामीणों द्वारा घरेलू कनेक्शन के लिए 350 रुपये प्रति आवेदन जमा कर किया था, लेकिन 12 साल गुजरने के बाद गांव में बिजली के दर्शन नहीं हुआ. वहीं, गांव के ही युवा समाजसेवी पप्पू चौहान ने बताया कि तीन माह पहले पोल गांव में आया, तब लगा कि शीघ्र ही करैला में भी बल्ब जलेंगे, पर ठेकेदार की मनमानी के कारण चार माह पहले महज चार से पांच पोल ही लग पाये. सूत्रों के अनुसार ग्रामीण शीघ्र ही सामूहिक बैठक कर आगे की रणनीति पर चर्चा करेंगे.
क्या कहते हैं अधिकारी कार्यपालक अभियंता
ग्रामीण एसडीइ अभय रंजन ने कहा कि पोल तार लगाना ठेकेदार का काम है. विभाग इस संबंध में कुछ भी नहीं कर सकता.