महेश झा
संपादक, डीडब्ल्यू हिंदी
एक संस्था के रूप में ब्रिक्स का उदय उभरती अर्थव्यवस्थाओं के हितों के प्रतिनिधित्व की ललक का नतीजा था. ब्रिक्स के देश विचारधारा में भले ही बहुत अलग हों, उनके हित एक जैसे हैं. भारत को नेतृत्व की भूमिका में आने की जरूरत है.
ब्रिक्स के पांच देशों में दो सुरक्षा परिषद् के वीटोधारी सदस्य हैं, तो तीन स्थायी सदस्य बनना चाहते हैं. भारत, ब्राजील व दक्षिण अफ्रीका लोकतांत्रिक देश हैं, तो चीन में साम्यवादी और रूस में अधिनायकवादी ताकतें बढ़ी हैं. पांचों देशों की अर्थव्यवस्था विकास के विभिन्न चरणों में है. इन अंतरों के बावजूद एक बात समान है कि पांचों देश विकसित राष्ट्रों की कतार में शामिल होना चाहते हैं. उन्हें अपने सभी नागरिकों को विकसित देशों जैसी बुनियादी सुविधाएं जल्द उपलब्ध करानी है.
गरीबी कम करने के मामले में चीन और ब्राजील ने अच्छी प्रगति की है. चीन ने तेज आर्थिक विकास के साथ पिछले दशकों में सकल राष्ट्रीय उत्पाद और प्रति व्यक्ति वार्षिक आय में भी भारी वृद्धि की है. दूसरी ओर ब्राजील ने गरीबी कम करने के वैकल्पिक रास्ते का इस्तेमाल किया है. जीरो भुखमरी अभियान से कुपोषण के मामलों में 80 फीसदी की कमी आयी, तो परिवारों की मदद और मकान निर्माण के सरकारी कार्यक्रमों की वजह से अत्यंत गरीबों की संख्या तेजी से गिरी. न्यूनतम वेतन में इजाफे से आमदनी के बंटवारे पर असर पड़ा और ब्राजील के 3.5 करोड़ लोग मध्यवर्ग में शामिल हुए हैं.
विकसित देशों ने जी-7 के दायरे में ब्रिक्स देशों के साथ संवाद शुरू किया था, जो 2005 में जी-8 प्लस 5 के रूप में सामने आया था. लेकिन उसके बाद फिर कभी इसकी बैठक नहीं हुई. रूस को भी यूक्रेन संकट के बाद जी-7 के देशों ने अपनी कतार से बाहर कर दिया है. अमेरिकी सेना चीन और रूस को सबसे बड़ा रक्षा खतरा मानती है. और ब्रिक्स को नजरअंदाज करने की यह बड़ी वजह हो सकती है.
भारत लोकतांत्रिक देश है और इलाके को छोड़ किसी सैनिक विवाद में शामिल नहीं रहा है. वह विकसित और विकासमान अर्थव्यवस्थाओं के बीच मध्यस्थता कर सकता है. उसे नेतृत्व की भूमिका निभानी होगी, ताकि ब्रिक्स के संस्थान पश्चिमी वर्चस्व वाले संस्थानों को चुनौती देते न लगें. इलाके के विकास के लिए स्थानीय संसाधन जुटाने व उनका इस्तेमाल करने की जरूरत है. न्यू डेवलपमेंट बैंक के गठन के साथ ब्रिक्स के देश यही कर रहे हैं, लेकिन और आगे बढ़ना होगा और विकास के साझा हित में आपसी सहयोग बढ़ाना होगा.
गहन आपसी सहयोग के लिए एक जैसे ढांचे मददगार साबित होते हैं. इनके लिए एक-दूसरे को, समाज को, अर्थव्यवस्था को समझना जरूरी होता है. सरकारी और सामाजिक स्तर पर संबंधों को गहन बनाने के लिए छात्रों से लेकर रिसर्चरों, पत्रकारों, सिविल सोसायटी और अधिकारियों का गहन आदान-प्रदान जरूरी है.
जो लोग एक-दूसरे को जानते-समझते हैं, वे ही सहयोग के लिए तैयार होते हैं. इस सहयोग में सबका भला है, इन देशों का भी और दुनिया का भी, क्योंकि ब्रिक्स देशों में दुनिया की 40 प्रतिशत आबादी रहती है.