– हरिवंश –
हमें पता है कि आज के माहौल में यह मुद्दा उठाना, आग से ही खेलना है. फिर भी ‘भ्रष्टाचार’ का घुन, देश की नींव-जड़ को खोखला कर रहा है, इसलिए देशहित में यह जोखिम उठाना ही चाहिए. देश के बारे में सोचनेवाले हर एक को? इस देश को गढ़ने-बनाने और आकार देने के लिए लाखों-करोड़ों भारतीयों ने कुरबानियां दी हैं. कम-से-कम उस पीढ़ी के ॠण से उॠण होने के लिए भी अगस्त के इस महीने में उनकी स्मृति में यह प्रयास जरूरी है.
छह अगस्त से 14 अगस्त के बीच, भ्रष्टाचार जो महामारी की तरह, हमारे जीवन, राजकाज और सोच का हिस्सा बन गया है, उस पर जानकारीपूर्ण लेख, सूचनाएं, विचार और बहस प्रभात खबर में आप पढ़ेंगे. 9 अगस्त, 42 को ‘अंगरेजो, भारत छोड़ो’ नारा लगा था, 15 अगस्त, 1947 को आजादी मिली. क्या हम इसी पृष्ठभूमि में यह माहौल बना सकते हैं कि ‘भ्रष्टाचार मिटे भारत से.’ यह उन लोगों की कुरबानी के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि होगी, जो बिना खिले ही मुरझा गये. यानी हमें आजादी दिलाने में असमय दुनिया छोड़ गये. इस मुद्दे पर आप भी अपने विचार, अनुभव और तथ्यपरक जानकारी सीमित शब्दों में भेजें. अप्रमाणित, अपुष्ट या तथ्यहीन चीजें न भेजें. नौ अगस्त, फिर 15 अगस्त. ‘भारत’ को आकार-पहचान देने में इन दोनों तिथियों का इतिहास में विशेष महत्व है.
आदर है. भारतीय इतिहास में ‘प्रेरक पुंज’ के रूप में ये तिथियां हैं.
गांधीवादी अन्ना का अनशन भी इसी माह शुरू होनेवाला है. बार-बार केंद्र सरकार भी यह कह रही है कि वह भ्रष्टाचार रोकना-बंद करना चाहती है. विपक्ष का भी यही सुर है. अनुभव तो यह है कि जो भी सत्ता से बाहर होता है वह सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों का तोप लेकर टूट पड़ता है. बताना चाहिए कि जब वे सत्ता में थे, तो क्या किया? यह न बताना, महज सत्ता पाने के लिए भ्रष्टाचार के आरोपों की सीढ़ी चढ़ कर, सरकार को घेरना, सही भूमिका नहीं है.
यह तो रही विपक्ष की बात. पर सरकार की बात?
सत्ता में बैठते ही हर सरकार क्यों बंध जाती है? किसने रोका है, भ्रष्टाचारियों को मौत की सजा का प्रावधान करने-कानून बनाने से सरकारों को? पंडित नेहरू ने आजादी के बाद कहा था कि वह नजदीक के लैंपपोस्ट पर भ्रष्टाचारियों को लटका कर (सार्वजनिक रूप से) फांसी दने के हिमायती हैं.
इसके बाद देश लुटते 60 वर्षों से अधिक हो गये, पर क्यों खामोश हैं, सरकारें? या असहाय हैं, ‘भ्रष्टाचार’ के सवाल पर दो-दो बार केंद्र की सरकारें बदलीं, पर भ्रष्टाचार के खिलाफ कभी कोई सख्त प्रभावी राष्ट्रीय कानून बना?
1974 का आंदोलन ही भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के मकसद से शुरू हुआ, पर 1977 में जब जनता पार्टी सत्ता में आयी, तो क्या सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार रोकने के लिए कानून बने? विश्वनाथ प्रताप सिंह का पूरा अभियान बोफोर्स के खिलाफ चला. उनका वायदा था, जनता से प्रतिबद्धता थी कि सत्ता पाने के 24 घंटों के अंदर बोफोर्स में शरीक नामों को उजागर करेंगे और असली मुजरिम को गिरफ्तार. पर गद्दी पाते ही वह भी भूल गये, भ्रष्टाचार के मुद्दे को. न कोई सख्त कानून बना, न इसे रोकने की गंभीर कोशिश हुई? बोफोर्स का मुद्दा भी कानूनन बंद हो गया. किसी की न गिरफ्तारी हुई, न सजा.
और कांग्रेस, वह तो इस व्यवस्था की जन्मदात्री और पालने-पोसनेवाली धाय ही रही है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह निजी स्तर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ दीखते हैं. आज उनकी साफ-सुथरी छवि पर दूसरों के किये चीजों की छाया पड़ रही है.
उनके संवैधानिक हस्तक्षेप के अधिकार के न प्रयोग करने की बात उठ रही है. वह कह भी रहे हैं भ्रष्टाचार सहने के लिए अब लोग तैयार नहीं है. पर कोई सख्त, कारगर और बड़ा कदम उठाने में वह असहाय लग रहे हैं. पहला सवाल तो यह है कि सत्ता, अगर भ्रष्टाचार से नफरत करती है, तो ‘अमर सिंह संस्कृति’ के लोग कैसे हर सत्ता के प्रिय पात्र और कर्णधार बन जाते हैं?
केंद्र सरकार में इस संस्कृति के ‘नायकों’ को जगह देने के पीछे क्या मजबूरी होती है? ताजा मंत्रिमंडल विस्तार में भी ‘अमर सिंह संस्कृति’ के उभरते-स्थापित नायकों को केंद्र सरकार में गद्दी मिली है. भ्रष्टाचार से लड़ने के पहले, भ्रष्ट रास्तों से ऊपर उठे लोगों को सार्वजनिक जीवन में प्रतिष्ठा, मान-मर्यादा देना बंद करना होगा? पर केंद्र सरकार ऐसे लोगों को किन मजबूरियों से महत्व देती है? यह एनडीए कार्यकाल में भी हु़आ.
जिनसे समाज को नफरत-घृणा करनी चाहिए, सही व्यवस्था में जो जेल की सीखचों के अंदर हों, वे किन हालातों-मजबूरियों में मंत्री या बड़े पदों पर हैं? ऊर्जा मंत्री शिंदे (जो पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे) से सीबीआइ ने ‘आदर्श को-ऑपरेटिव घोटाले’ में पूछताछ की, पर वह केंद्र में मंत्री हैं. क्यों? इसी तरह विलास राव देशमुख हैं, उन पर महाराष्ट्र में गंभीर आरोप लगे, पर केंद्र में मंत्री हैं. अनेक हैं, जो गंभीर मामलों में चर्चित हैं, जिनकी भूमिकाएं संदिग्ध हैं, पर वे सार्वजनिक जीवन में प्रतिष्ठित-पूज्य हैं? क्यों? पहले सरकारें ऐसे लोगों को निरादर करना शुरू करें, उनकी उपेक्षा करे, तो इससे समाज में एक संदेश जायेगा. जब ऊपर ऐसा होगा तो आगे भी भ्रष्टाचारी ‘डिसग्रेस’ (लांछित) होंगे.
महाभारत के दिनों से कहावत है, महाजनों येन गता, सो पंथा. श्रेष्ठ जन जिस रास्ते जाते हैं, वही सही रास्ता है. पहले हमारे समाज के श्रेष्ठ जन (कर्णधार नेता, नीति-निर्धारक) तो इस रास्ते पर चलना शुरू करें? क्या इसके लिए भी कानून की जरूरत है?
और साफ-सुथरा काम या ऐसे सात्विक आचरण, सिर्फ सत्ताधारियों और सरकार तक ही क्यों सीमित रहे? विपक्ष का आचरण, सत्ता पक्ष से बेहतर और अनुकरणीय बने? क्यों सार्वजनिक जीवन के 420, ‘साधन-साध्य के हत्यारे, विपक्ष में जगह पायें? दलाल, जड़हीन लोग महत्व पायें? कारपोरेट हाउसों के पैरोकार संसद पहुंचे? घोषित भ्रष्टों को नकारने की शुरुआत अगर सत्ता पक्ष-विपक्ष अपने आचरण में लाते हैं, तो बड़ा फर्क पड़ेगा.
इसके बाद आम जनता की बात
क्या सचमुच आम जनता, आज भ्रष्टाचार के खिलाफ है? शायद नहीं. मुखिया-पंचायत स्तर पर भी यही हाल है. ठेका, कमीशन, रातों रात धनी होने की अभिलाषा. पैसा ही सब कुछ धर्म-कर्म हो जाये, तो क्या बचेगा?
भ्रष्टाचार, सिर्फ सरकारों, दलों या राजनीति की ही समस्या नहीं है. हम जनता इसमें भी हिस्सेदार और इस भ्रष्ट व्यवस्था को बनाये रखने के सबसे कारगर माध्यम हैं. फर्ज करिए, जनता घूस देना बंद कर, शोर मचाना शुरू करे, तो क्या हालात-परिदृश्य होंगे? समझदार-संवेदनशील सरकार, भ्रष्टाचार रोकने का सख्त कानून बना सकती है.
पर उस पर अमल कराने का काम तो चौकस-जागरूक जनता और राजनीतिक दलों के लोग ही करेंगे न! बिहार ने देश में अकेले भ्रष्टाचारियों से निबटने के लिए सख्त कानून बनाये हैं. जब केंद्र सरकार से लेकर अन्य सरकारें, इस रोग के निदान के लिए कुछ सार्थक-अर्थपूर्ण (बड़ी-बड़ी अर्थहीन बातों, वायदों और घोषणाओं को छोड़ कर) करने में असमर्थ, असहाय और इच्छाशक्ति-विहीन लगें, तो एक राज्य में ऐसे सख्त कानून बनना, मामूली बात नहीं है.
पर उन कानूनों को जीवंत, सक्रिय और भ्रष्टाचारियों के बीच इन कानूनों से भय पैदा करने का काम तो जनता ही करेगी न! सिर्फ कानून बना देने से बिहार में भ्रष्टाचार नहीं रुका है? भ्रष्ट लोगों का तंत्र चल रहा है, उसे रोकने का काम तब होगा, जब जनता इन कानूनों के माध्यम से भ्रष्टाचारियों को कठघरे में खड़ा करने के लिए बाध्य कर देगी. इसमें युवा (भ्रष्टाचार से जिनका भविष्य सर्वाधिक प्रभावित है), महिलाएं, सामान्य नागरिक, समाज-देश के लिए सोचनेवाले सभी दलों के ईमानदार कार्यकर्ता सामने आयें.
क्योंकि भ्रष्टाचार, देश का नाश कर रहा है.
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने दो अगस्त को बयान दिया कि भ्रष्टाचार ने देश में ‘बिजनेस सेंटीमेंट और इन्वेस्टमेंट आउटलुक’ (बिजनेस भावना और निवेश माहौल), को प्रभावित किया है. उल्लेखनीय है कि निवेश के लिए विदेशी पूंजी, भारत से अधिक पाकिस्तान में आयी है. केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने भी माना है कि भ्रष्टाचार के इश्यू के कारण विदेशी निवेश घटा है.
दिनांक 06.08.2011