आइये. अब हम सभी जंगलों की ओर लौट चलें. इन्हीं जंगलों में हरियाली, हिरणों की चंचला, असीम शांति और प्रकृति अपना आंचल बिछाये बैठी है. आधुनिकता की पराकाष्ठा में लिप्त शहरी जीवन अब घुटन पैदा करने लगी है. यहां की वायु, वातावरण, जमीन, पानी आदि प्रदूषित हो गये हैं. पर्यावरण का संतुलन बिगड़ने लगा है और सामाजिक संतुलन में भी बिखराव आ गया है.
हमारी धरती ग्लोबल वार्मिग का शिकार होने लगी है. भौतिक सुख और आधुनिकता की होड़ में पेड़ों को काट कर, पहाड़ों को तोड़ कर और नदियों को बांध कर प्रकृति पर निर्मम प्रहार कर रहे हैं. प्रकृति हमें चेता रही है, पर हम मान नहीं रहे हैं. हम सभी को मिल कर इस प्रहार को रोकना होगा. आधुनिकता की अंधी दौड़ में कंक्रीट के महलों को त्याग कर हरियाली की इमारत तैयार करनी होगी.
उदय चंद्र मिश्र, रांची