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पनपेंगी खेल प्रतिभाएं

रांची में अब खेल विश्वविद्यालय बनने जा रहा है. सीसीएल के साथ इस मामले में राज्य सरकार का एमओयू हो गया है. यह झारखंड के लिए अच्छी खबर है. यह विश्वविद्यालय कैसा होगा, इसमें बाहर के छात्र भी रहेंगे या सिर्फ राज्य के, यह अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है. लेकिन इतना तय है कि […]

रांची में अब खेल विश्वविद्यालय बनने जा रहा है. सीसीएल के साथ इस मामले में राज्य सरकार का एमओयू हो गया है. यह झारखंड के लिए अच्छी खबर है. यह विश्वविद्यालय कैसा होगा, इसमें बाहर के छात्र भी रहेंगे या सिर्फ राज्य के, यह अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है.
लेकिन इतना तय है कि इससे झारखंड की प्रतिभाओं को तराशने में मदद मिलेगी. यहां राष्ट्रीय खेल के दौरान जो इंफ्रास्ट्रर बनाये गये थे, वे यों ही पड़े हुए हैं. उनका बहुत इस्तेमाल नहीं हो रहा. रखरखाव के अभाव में स्टेडियम खराब हो रहे हैं. ये सारे स्टेडियम विश्व स्तरीय हैं.
ये ठीक तभी रहेंगे जब इनका इस्तेमाल हो. राष्ट्रीय खेल के दौरान ही यह घोषणा की गयी थी कि रांची में खेल विवि बनाया जायेगा. पांच साल तक यह घोषणा ही रही, लेकिन अब रघुवर दास सरकार एक कदम आगे बढ़ी है. एमओयू हो चुका है. जितनी जल्द हो, यह काम करना होगा क्योंकि झारखंड में एमओयू होकर लटकाने की परंपरा पुरानी है. खुशी की बात यह है कि इस बार पार्टनर सीसीएल है, जिसके मुकरने की आशंका नहीं है. इसी खेल विश्वविद्यालय के तहत खेल अकादमी भी बनेगी. 15 खेलों के लिए इसमें 1400 बच्चों को प्रशिक्षित किया जायेगा.
झारखंड की पहचान खेल में भी है. अगर साई को छोड़ दे तो अधिकांश खेलों का केंद्र जमशेदपुर रहा है. राज्य बनने के बाद रांची पर फोकस ज्यादा हुआ है. जमशेदपुर में टीएफए (टाटा फुटबॉल अकादमी है), तीरअंदाजी का सेंटर है. अब रांची में ये सारी सुविधाएं होंगी. राज्य में प्रतिभाओं की कमी नहीं है. इसने देश को हॉकी और तीरअंदाजी में अनेक खिलाड़ी दिये हैं जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाया है. यहां के गांवों में प्रतिभाएं बसती हैं.
अब गांव-गांव से प्रतिभाओं को खोजा जायेगा और उन्हें अकादमी में प्रशिक्षित किया जायेगा. सरकार और सीसीएल मिल कर ये काम करेंगे. अब यहां की खेल प्रतिभाओं को भटकना नहीं पड़ेगा. उम्मीद की जा सकती है कि आनेवाले कुछ वर्षो में झारखंड से तेजी से नये-नये खिलाड़ी निकलेंगे. अभी राष्ट्रीय खेल में एक-एक पदक के लिए झारखंड को तरसना पड़ता है.
यह हाल सिर्फ झारखंड का नहीं, बल्कि पूरे देश का है. जितना बड़ा देश है, उसके अनुसार ओलिंपिक में भारत के पदकों की संख्या नहीं होती. जबकि छोटे-छोटे देश अच्छी खासी संख्या में पदक जीत जाते हैं. इसका कारण है- क्रिकेट को छोड़ कर अन्य खेलों पर ध्यान नहीं देना. उनके लिए बेहतर संस्थान नहीं बनाना. रांची में खेल विवि से यह कमी बहुत हद तक पूरी हो सकती है.

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