जहां तक मसले के कानूनी पहलुओं का सवाल है, यह अदालत की जिम्मेवारी है. बहरहाल, तोमर को चार दिन की पुलिस हिरासत में रखने के अदालती आदेश के आधार पर इतना तो कहा जा सकता है कि फिलहाल तोमर और उनकी पार्टी का पक्ष कमजोर दिख रहा है. लेकिन इस प्रकरण में जो सबसे गंभीर आयाम है, वह अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी का रवैया है. आप के पूर्व नेता योगेंद्र यादव ने सही कहा है कि अगर तोमर की डिग्री वैध है, तो संबंधित दस्तावेजों को पार्टी द्वारा सार्वजनिक कर दिया जाना चाहिए था.
उल्लेखनीय है कि यह मामला चार महीनों से चर्चा में था तथा इसकी आंतरिक जांच की मांग भी उठायी गयी थी. पारदर्शिता और ईमानदारी घोषित तौर पर केजरीवाल की राजनीति के मुख्य बिंदु हैं. विधानसभा चुनाव में आप ने दावा किया था कि वह किसी भी ऐसे व्यक्ति को टिकट नहीं देगी और ऐसे निर्वाचित सदस्यों को हटा देगी, जिन पर गंभीर आरोप होंगे. लेकिन तोमर के मुद्दे पर पार्टी ने अपने सभी सिद्धांतों को तिलांजलि दे दी. आम आदमी पार्टी अन्य दलों के नेताओं पर भ्रष्टाचार और अपराध के आरोप लगाती रही है. इस पार्टी के तेवर को देख कर ही जनता ने भारी बहुमत के साथ उसे सरकार की कमान सौंपी थी. लेकिन तोमर प्रकरण में केजरीवाल और आप का रुख किसी अन्य राजनीतिक दल से भिन्न नहीं रहा है.
इसलिए राजनीतिक और कानूनी पहलुओं से कहीं अधिक महत्वपूर्ण पक्ष सार्वजनिक जीवन में नैतिकता और शुचिता का है, जिसकी दुहाई केजरीवाल की पार्टी देती रही है. केंद्र सरकार, उपराज्यपाल और दिल्ली पुलिस की भूमिका पर बहसें अपनी जगह सही हो सकती हैं. परंतु, मसले को इस मुकाम तक लाने में आप और दिल्ली सरकार के पैंतरों पर भी सवाल उठ रहे हैं. यह केजरीवाल की साख के लिए भी ठीक नहीं है, क्योंकि उन्होंने बार-बार तोमर का बचाव किया है. उनके लिए यह मौका आत्ममंथन का भी है.