इंटरनेट डेस्क
मणिपुर के चंदेल में 18 वीर भारतीय सैनिकों को शहीद बनाने वालों को मार कर भारतीय सेना ने अपना बदला ले लिया. इतना ही नहीं सेना व भारत सरकार ने सारे पडोसी देशों को स्पष्ट व कडा संदेश दिया है कि वह यह जान लें कि भारत मजबूत देश है और अगर उसके साथ ऐसा घटना होगी, तो दुश्मनों के साथ भी ऐसा ही बर्ताव किया जायेगा. यह एलान हर भारतीय के लिए गौरव की बात है और भारत को एक लुंज-पंुज देश मानने वालों की धारणा पर भी करारा आघात करता है. पर, इस ऑपरेशन को सफल बनाने वाले देश के हीरो हैं, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल.उधर, चीन ने भारत के कडे रुख के बाद यह स्पष्ट किया है कि मणिपुर हमले में उसका हाथ नहीं है. चीन ग्लोबल टाइम्स ने इस आशय की खबर वहां के प्रमुख अधिकारियों के हवाले से दी है.
जानिए अजीत डोभाल के बारे में तथ्य
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ चुनिंदा गैर राजनीतिक लोगों पर बहुद अधिक भरोसा करते हैं. ऐसे ही लोगों में एक हैं, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल. 1968 बैच के केरल कैडर के आइपीएस अधिकारी एक दशक तक आइबी के ऑपरेशन विंग के प्रमुख रहने के बाद 2004-05 में उसके प्रमुख बने. गढवाली परिवार से आने वाले डोभाल के पिता भारतीय सेना में थे और उनकी आरंभिक पढाई अजमेर के मिलिट्री स्कूल में हुई. पूर्वोत्तर के उग्रवादी समूहों की उन्हें विशेषज्ञता हासिल है. अजीत डोभाल विकेकानंद केंद्र से जुडे हैं, जिससे प्रधानमंत्री मोदी का भी लगाव है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तो आदर्श भी स्वामी विवेकानंद हैं.
बांग्लादेश नहीं गये थे अजीत डोभाल
अजीत डोभाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विदेश दौरों पर पर हमेशा उनके साथ रहते हैं. लेकिन जब प्रधानमंत्री छह व सात जून को बांग्लादेश के दो दिवसीय दौरे पर थे, तो आश्चर्यजनक रूप से उनके साथ अजीत डोभाल नहीं थे. कई लोगों के लिए यह आश्चर्य की बात थी. पर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी अनुपस्थिति को लेकर आश्वस्त थे और जानते थे कि वे एक विशेष ऑपरेशन पर काम कर रहे हैं, जो डोभाल के उनके साथ होने से अधिक अहम है. यह ऑपरेशन था भारत पर बुरी नजर डाले उग्रवादियों को नष्ट करना, अपने शहीद जवानों की शहादत का बदला लेना. म्यांमार हमले के बाद भी भारत ने यह तय कर लिया था कि वह इस हमले का बदला लेगी और दुश्मनों को सबक सिखायेगी.
दोनों ठिकाने थे 150 उग्रवादियों का पनाहगार, 40 हुए ढेर
अजीत डोभाल ने इस पूरे हमले को लेकर खुफिया एजेंसियों व सेना से जानकारी जुटायी और ऑपरेशन की एक योजना तैयार की. इसके लिए आखिरी वक्त में म्यांमार को भी विश्वास में लिया गया. डोभाल की इस योजना को सेना प्रमुख दलबीर सिंह सुहाग ने सफलतापूर्वक कार्यरूप दिया, जो हमले के तुरंत बाद मणिपुर पहुंचे थे और वहां उन्होंने सेना, असम रायफल और दूसरी एजेंसियों से पूरी घटना की जानकारी ली थी और आगे की रणनीति पर विचार-विमर्श किया था.
सूत्रों का कहना है कि भारतीय सेना ने सीमा पार म्यांमार में वहां की सेना के साथ मिल कर व उग्रवादियों के बागी गुट के साथ मिल कर यह ऑपरेशन चलाया. इस हमले में उग्रवादी संगठन नेशनल सोशलिस्ट आउंसिल ऑफ नागालैंड खापलांग (एनएससीएन -के) व मणिपुर में केंद्रित खांगली योवल कन्ना लूप (केवाइकेएल) के 40 उग्रवादियों को मारा गिराया व उनके केंद्र को ध्वस्त कर दिया. भारतीय सेना को इस आपॅरेशन में नेशनल सोशलिस्ट आउंसिल ऑफ नागालैंड खापलांग (एनएससीएन -के) के ही बागी गुट ने ही मदद की.
सेना सूत्रों का कहना है कि उन दोनों उग्रवादी कैंपों में 150 उग्रवादियों ने अपना ठिकाना बना रखा था. ये कैंप नागालैंड व मणिपुर के म्यांमार सीमा के 15-20 किमी के दायरे में थे. ऑपरेशन मंगलवार तडके तीन बजे शुरू किया गया और इसे अगले 10 घंटे में पूरा कर दिया गया, जिसके बाद सेना ने इस मुद्दे पर प्रेस कान्फ्रेंस कर औपचारिक बयान जारी किया. सूत्रों का तो यह भी कहना है कि इस ऑपरेशन की भनक अंतिम समय तक म्यांमार की सेना को भी नहीं लगने दिया था.
पडोसी देशों में भारत के ऑपरेशन का इतिहास
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब भारत ने किसी देश की सीमा में घुस कर अपना ऑपरेशन चलाया है. 1971 में भी भारत ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान व मौजूदा बांग्लादेश में मुक्ति वाहिनी के साथ ऑपरेशन चलाया. भारत ने कश्मीर में भी एलओसी पर आतंकी समूहों को नष्ट करने के लिए ऐसा ऑपरेशन चलाया. भारत ने दो दशक पूर्व 1995 में ऑपरेशन गोल्डन बर्ड नाम से म्यांमार में ऑपरेशन चलाया था, जिसमें पूर्वोत्तर के विभिन्न उग्रवादी संगठनों के 40 उग्रवादी ढेर हो गये थे. उस समय म्यांमार बर्मा के नाम से जाना जाता था. 2003-2004 में ऑपरेशन ऑल क्लियर भी भारत ने रॉयल भूटान आर्मी के साथ चलाया था, जिसमें असम के प्रमुख आतंकी समूह यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम यानी उल्फा के 40 ठिकानों को ध्वस्त कर दिया था. इसमें 140 उग्रवादी ढेर हो गये थे.