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पढ़ाई के नाम पर यह क्या!

हमारी सरकार कल्याणकारी है. सरकारी स्तर से स्कूली बच्चों के लिए ड्रेस, साइकिल, खेलकूद सामग्री व छात्रवृत्ति का प्रावधान है और कमोबेस ये सुविधाएं मिल भी रही हैं. लेकिन विद्या का मंदिर कहे जानेवाले विद्यालय में चल रहे मध्याह्न् भोजन के लिए बच्चों को अपने घर से थाली लेकर स्कूल जाना पड़ रहा है. आखिर […]

हमारी सरकार कल्याणकारी है. सरकारी स्तर से स्कूली बच्चों के लिए ड्रेस, साइकिल, खेलकूद सामग्री व छात्रवृत्ति का प्रावधान है और कमोबेस ये सुविधाएं मिल भी रही हैं. लेकिन विद्या का मंदिर कहे जानेवाले विद्यालय में चल रहे मध्याह्न् भोजन के लिए बच्चों को अपने घर से थाली लेकर स्कूल जाना पड़ रहा है.

आखिर यह कैसी शिक्षा व्यवस्था है जहां बच्चों के मन में हीन भावना का बीजारोपण किया जा रहा है. कहने में तो बड़ा बुरा लगता है लेकिन ऐसा लगता है कि पढ़ाई-लिखाई के बहाने बच्चों को भिक्षावृत्ति सिखायी जा रही है.

स्कूल के मास्टर साहब भी अब पढ़ाना-लिखाना छोड़ कर बच्चों के लिए राशन-पानी की व्यवस्था में लग गये हैं. कड़ी स्पर्धा के इस दौर में इन बच्चों का भविष्य भला किस ओर जा रहा है? आखिर इस व्यवस्था का दोषी कौन है और यह सिलसिला कब तक चलेगा?

सत्येंद्र कुदास, देवघर

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