II अनुप्रिया अनंत II
फिल्म : दिल धड़कने दो
कलाकार : अनिल कपूर, शेफाली शाह, रणवीर सिंह, प्रियंका चोपड़ा, फरहान अख्तर, अनुष्का शर्मा
निर्देशक : जोया अख्तर
रेटिंग : 3 स्टार
जोया अख्तर अमीर वर्ग की कहानियां दर्शाने में हमेशा से माहिर रही हैं. हालांकि उनकी पहली फिल्म ‘लक बाय चांस’ में एक आम शहर से आये युवा के महत्वकांक्षी कलाकार बनने की कहानी थी. इसके बाद ‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा’ में तीन दोस्तों और उनके रिश्तों पर आधारित कहानी थी.इस बार जोया परिवार की कहानी लेकर आयी हैं. कहानी मेहरा परिवार की है, जो दिल्ली में रहते हैं. मेहरा परिवार में कमल मेहरा खुद हैं, उनकी पत्नी हैं और उनके दो बच्चे हैं आयशा और कबीर. कमल को दिखावे की आदत है. यहां तक कि वह अपनी निजी जिंदगी में भी बच्चों व पत्नी के साथ दिखावा ही करते हैं.
कमल चूंकि काफी मेहनत से अपना नाम हासिल कर पाये हैं और दौलत शोहरत हासिल कर पाये हैं. वह इन चीजों को लेकर हमेशा गंभीर रहते हैं और हमेशा असुरक्षित रहते हैं. कमल अपने घर के मुखिया हैं और वे ही हर निर्णय लेते हैं. आयशा की शादी हो चुकी है. वह कामयाब एंटरप्रेनर है.लेकिन चूंकि वह लड़की है इसलिए उसकी खास अहमियत नहीं है.
जोया ने ‘दिल धड़कने दो’ के माध्यम से एक ऐसे वर्ग की कहानी कहने की कोशिश की है, जहां लोग एक दूसरे से बात ही नहीं करते. केवल बात करने का दिखावा करते हैं. रिश्तों की औपचारिकता किस हद तक जा सकती है. यह फिल्म इस बात का उदाहरण है. जोया ने किसी ऐसे परिवार की रचना नहीं की है, जो काल्पनिक है. हां, ऐसे परिवार तो हैं ही. जहां, लोगों को अपने बच्चों से अधिक समाज में अपने स्टेट्स की फिक्र है.
जहां बेडरूम के अंदर पति पत्नी को कुछ नहीं समझता ,लेकिन बाहर वह दुनिया को दिखा रहा कि मैरैज एनिवर्सरी पर क्रूज प्लान हो रहा. जोया ने रिश्तों की बारीकियों को फिल्म में बखूबी गढ़ा है. पिता ने बेटी के लिए ऐसे वर की तलाश की है, जैसे वर की तलाश हर उच्च वर्गीय पिता करता है आमतौर पर.
बिना यह सोचे कि उसकी बेटी की क्या मर्जी है. ‘दिल धड़कने दो’ में जोया ने जिंदगी की यह फिलॉसफी दिखाने की कोशिश की है, कि सिर्फ पैसे कमाने, दिखावा करना ही जिंदगी नहीं हैं. जरूरी है कि आप आपस में बात करें. फिल्म के कई संवाद कई दृश्यों में निर्देशक ने दर्शाया है कि कैसे एक ही परिवार का हिस्सा होने के बावजूद किसी को किसी के बारे में कुछ पता नहीं होता.
जोया ने इस कहानी को एक कुत्ते की जुबानी दर्शकों तक पहुंचाया है, प्लूटो. जोया ने प्लूटो की जुबानी कहानी कहने का निर्णय इसलिए लिया है कि वे बार बार दर्शकों को याद दिला सकें कि इंसान के पास तो जुबान हैं. वे चाहें तो रिश्ते बदल सकते हैं. सुधर सकते हैं. लेकिन कोशिशें नहीं की जाती हैं. किस तरह एक मनी माइंडेड पिता व्यवसाय के नुकसान में अपने बेटे की शादी का सौदा करना चाहता है.
किस तरह एक बिजनेसमैन की पत्नी अपने सारे दुख दर्द को दिल में रख कर पति धर्म निभा रही है और बेटी को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करती है. जोया उन लोगों के मुंह पर तमाचा भी जड़ती है, जो वाकई यह दिखावा करने की कोशिश करते हैं कि हम ब्रांडेड शराब पीते हैं, बड़े घरों में रहते हैं और सोशल स्टेट्स में उनका स्तर अमीर वर्ग का है, ऐसे लोग सोच में भी विकासशील हैं. जोया ने ऐसे परिवारों के बच्चे और उनकी रुढ़िवादी सोच को बखूबी दर्शाने की कोशिश की है, जहां बेटी को बेटे से काबिल होने के बावजूद बेटे से ऊपर का दर्जा नहीं मिलता, पत्नी को पति धर्म निभाने की सीख दी जाती है.
बेटी को अपनी जिंदगी का निर्णय लेने का हक नहीं होता. किस तरह एक परिवार उलझा हुआ है. और जब एक विस्फोट होता है तो परिवार बिखरने की बजाय सिमटत जाता है और करीब आता है. जोया ने क्रूज पर पूरी फिल्म दर्शायी है, वहां मेहरा परिवार के साथ वे हर किरदार हैं, जो हमारे आस पास होते हैं. और उनके साथ उनकी गॉसिप भरी बातें होती हैं.
इस फिल्म को किसी एक किरदार या कलाकार की फिल्म नहीं कही जा सकती. अनिल कपूर और शेफाली शाह ने फिल्म में सबसे अधिक स्क्रीन शेयर किया है और दोनों ने ही बेहतरीन अभिनय किया है. शेफाली कम फिल्में करती हैं. लेकिन यह बात निरर्थक साबित नहीं की जा सकती कि वे सक्षम अभिनेत्री हैं. फिल्म के एक दृश्य में जहां वे अपना तनाव केक ठूस कर कम करती हैं, वह दृश्य आंखों में आंसू ला देते हैं.
अनिल कपूर ने एक साथ कई किरदार इसी फिल्म में निभा लिये हैं. प्रियंका ने फिल्म में संवाद अधिक नहीं बोले. लेकिन एक नजरअंदाज की गयी बेटी और डिटक्टेरशीप सहने वाली पत् नी के किरदार में सटीक अभिनय किया है. रणवीर सिंह को जो समीक्षक लाउड कलाकार मानते हैं.वे इस फिल्म में रणवीर को देखें. फिल्म में उनके सबसे कम संवाद हैं. वे अपनी आंखों से अभिनय करते हैं. अनुष्का व रणवीर की प्रेम कहानी और प्रियंका व फरहान की प्रेम कहानी को विस्तार नहीं दिया गया.
फिल्म के अंतिम दृश्यों में मेलोड्रामा होने की वजह से फिल्म जिस वेग में चली आ रही थी. वह कमजोर हो जाती है. जोया अगर अंतिम दृश्यों के साथ भी वही संवेदनशीलता रखतीं तो कहानी और उभर कर सामने आती. हां, एक खास बात यह रही कि कहानी मेहरा परिवार से इतर भटकी नहीं हैं. फिल्म के सहयोगी कलाकारों ने फिल्म को उम्दा बनाने में सहयोग किया है.