सड़क चलने लायक नहीं, रजवाहा में पानी नहीं, विद्यालय परिसर में घूमते हैं पशु
वंशी (अरवल) : ‘पास में कुआं, फिर भी प्यासा’ वाली स्थिति है कंसरा गांव की. यहां से महज आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित है शांतिपूरम अतौलह पावर ग्रिड, फिर भी इस गांव में बिजली नहीं है. लालटेन व दीये की रोशनी में रहने को लोग विवश हैं. हालांकि विद्युत आपूर्ति के लिए ग्रामीणों ने कई बार बिजली कार्यालय का चक्कर लगाया, लेकिन इस दिशा में आज तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी.
आखिरकार थक-हार कर अंधेरे में रहने की नियति मान ग्रामीण बैठ गये. इतना ही नहीं इस गांव में बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य व सिंचाई समेत कई अन्य सुविधाओं का भी अभाव है. हालांकि ऐसा नहीं है कि इस गांव में शुरू से ही बिजली नहीं थी. 1980 के दशक में बिजली की रोशनी से यह गांव जगमग था. उस समय बिजली से ही खेतों की सिंचाई हुआ करती थी. किसान गरमा धान की खेती किया करते थे. इससे अच्छी आमदनी होती थी तथा खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे.
हाथी पर सवार हो पहुंचे थे मुख्यमंत्री : हिंसा-प्रतिहिंसा की आग में जल रहा कंसरा गांव के ग्रामीणों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने व गांव के विकास के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री विंदेश्वरी दुबे ने गांव का दौरा किया. वे एनएच 110 स्थित अंगारी चकिया से हाथी पर सवार होकर कंसरा गांव पहुंचे थे.
उस वक्त गांव में जाने के लिए सड़क नहीं थी. पगडंडी के सहारे ग्रामीण किसी तरह आते-जाते थे. उस पगडंडी पर पैदल चलना भी आसान नहीं था. स्थिति को देखते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री ने पहल कर गांव के कुछ ग्रामीणों को शांतिपूरम अतौलह में बसाया, जहां आज पावर ग्रिड बना हुआ है.
स्वास्थ्य सुविधा का है अभाव : गांव में स्वास्थ्य सुविधा नहीं रहने के कारण लोगों को झोला छाप चिकित्सकों पर निर्भर करना पड़ता है. गांव से 12 किलोमीटर की दूरी पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, करपी है, जहां आने-जाने में लोगों को काफी परेशानी होती है.
पानी के अभाव में नहीं पड़ा बिचड़ा : रोहिणी नक्षत्र में किसान खेतों में धान का बिचड़ा डालते हैं.
समय बीतता जा रहा है. नहर, पइन, पोखरी में एक बूंद भी पानी नहीं है कि इससे पटवन कर किसान खेतों में बिचड़ा डाल सकें. नतीजा किसानों के चेहरे पर उदासी छायी हुई है.
ग्रामीणों ने की गांव के विकास की मांग : कंसरा गांव के कपिलेश शर्मा, वीरेंद्र शर्मा, कृष्णा शर्मा, जितेंद्र शर्मा समेत अन्य ग्रामीणों ने सरकार से गांव की समस्याओं को दूर कर विकास परक योजनाओं की शुरुआत करने की मांग की है. इन ग्रामीणों ने कहा है कि सरकार नहरों में पानी की व्यवस्था करा दे, तो हम ग्रामीणों की बदहाली दूर हो जायेगी.
हिंसा-प्रतिहिंसा की आग में रुका विकास
करपी प्रखंड के कोचहसा पंचायत स्थित कंसरा गांव की आबादी लगभग पांच सौ से अधिक है. 1980 के दशक में यह गांव सुर्खियों में रहा है. 80 के दशक में ही नक्सली संगठन संग्राम समिति के हथियार बंद दस्ते ने गांव के चर्चित किसान नेता विजय शर्मा की हत्या इमामगंज बाजार में दिन के उजाले में ही कर दी. इसके बाद हिंसा-प्रतिहिंसा की आग में गांव झुलस उठा. दर्जनों लोग इस हिंसा-प्रतिहिंसा की भेंट चढ़ गये, नतीजा गांव का विकास रूक गया.
करोड़ों खर्च, पर रजवाहा में नहीं आया पानी
कंसरा गांव के लोगों को कोचहसा रजवाहा नहर की उड़ाही होने पर आशा जगी थी कि अब धान का कटोरा कहे जानेवाले इस गांव में पुन: खुशहाली लौटेगी. इसकी उड़ाही में करोड़ों की राशि खर्च की गयी, परंतु वर्षो बीत जाने के बाद भी इस नहर में पानी नहीं आया.
कोचहसा रजवाहा नहर की अंतिम सीमा कंसरा ही है, जहां नहर के पानी को सुरक्षित रखने की व्यवस्था है. इसके बाद भी नहर में पानी नहीं आने से लोगों को इंद्र भगवान पर टकटकी लगाये रहना पड़ता है.
प्रतिवर्ष सैकड़ों एकड़ भूमि रह जाती है परती
गांव में बिजली नहीं होने के कारण किसानों के समक्ष सिंचाई एक बड़ी समस्या बनी हुई है. किसानों को मॉनसून के भरोसे खेती कार्य करना पड़ता है. इससे सैकड़ों एकड़ भूमि परती रह जाती है.
कुछ संपन्न किसान निजी संसाधनों का इस्तेमाल सिंचाई के लिए करते हैं, परंतु वह काफी खर्चीला साबित होता है, नतीजा फसलें मारी जाती है और पैदावार काफी कम जाती है. इससे किसानों की हालत दिन पर दिन बदतर होती जा रही है. बिजली के अभाव में बच्चों को लालटेन व दीये की रोशनी में पढ़ाई करनी पड़ती है.
बदहाल स्थिति में है सड़क
ग्रामीण व भाजपा नेता डॉ लवकुश शर्मा ने बताया कि गांव में आने-जाने के लिए बड़ी मुद्दत के बाद सड़क तो बनी, लेकिन रखरखाव व मरम्मती के अभाव में काफी बदतर हालात में है.
इस सड़क से वाहनों से आना-जाना तो दूर, पैदल चलना भी काफी मुश्किल है. किसी बीमार को अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस को बुलायी जाये, तो चालक आने से इनकार कर देता है. ग्रामीणों को विवश होकर बीमार व्यक्ति को खाट पर लाद कर अस्पताल पहुंचाना पड़ता है.