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गैंगवार की घटनाओं में पुलिस ने नहीं ली दिलचस्पी, लगातार हो रही थी घटनाएं, चुप थी पुलिस

रांची: 14 अक्तूबर 2014 को जमशेदपुर में पांडेय गिरोह के मुखिया किशोर पांडेय की हत्या, 16 दिसंबर 2014 को हजारीबाग के बड़कागांव में सुशील श्रीवास्तव के करीबी लखन साव पर हमले में बॉडीगार्ड की मौत व चालक घायल, 23 फरवरी को खलारी थाना क्षेत्र में पांडेय गिरोह के लोगों द्वारा सुशील श्रीवास्तव गैंग के मो […]

रांची: 14 अक्तूबर 2014 को जमशेदपुर में पांडेय गिरोह के मुखिया किशोर पांडेय की हत्या, 16 दिसंबर 2014 को हजारीबाग के बड़कागांव में सुशील श्रीवास्तव के करीबी लखन साव पर हमले में बॉडीगार्ड की मौत व चालक घायल, 23 फरवरी को खलारी थाना क्षेत्र में पांडेय गिरोह के लोगों द्वारा सुशील श्रीवास्तव गैंग के मो फिरोज पर गोलीबारी.
सात माह के भीतर दो गिरोहों के बीच हुई इन तीन घटनाओं से साफ है कि पांडेय गिरोह के अपराधी सुशील गिरोह पर लगातार हमले कर रहे थे. किशोर पांडेय की हत्या का बदला लेने की लगातार कोशिश हो रही थी. इन तीन घटनाओं के बाद यदि पुलिस इन अपराधियों पर नजर रखती, तो पुलिस के लिए यह जान पाना कठिन नहीं था कि सुशील श्रीवास्तव पर हमला होगा. उसकी हत्या कहां हो सकती है, इसका अंदाजा भी लगाना कठिन नहीं था. जेल में, जेल से कोर्ट आने के रास्ते या कोर्ट परिसर में. यदि इन तीनों स्थानों पर अलर्ट बढ़ाया जाता, तो दो जून को कोर्ट परिसर में हुई गोलीबारी और सुशील श्रीवास्तव की हत्या को टाला जा सकता था.
हत्या होगी, यह तय कर दिया था : पांडेय गिरोह ने दो जून की घटना से पहले ही यह तय कर दिया था कि गोलीबारी में सुशील श्रीवास्तव की मौत होगी. एक तरह से पांडेय गिरोह ने पूरे घटनाक्रम की सटीक योजना तैयार की थी. इसका खुलासा कोर्ट परिसर में खड़ी बोलेरो में मिले परचे से हुआ है. परचा में विकास तिवारी की तसवीर है. उसमें लिखा हुआ है कि सुशील की हत्या कर किशोर पांडेय की हत्या का बदला ले लिया. परचा मिलने से पुलिस सकते में है, क्योंकि परचा घटना से पहले तैयार किया गया था.

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