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प्रदर्शनकारियों पर 17 चक्र चली थीं गोलियां
कलेक्ट्रेट गोलीकांड . लाठीचार्ज के बाद और भड़क गये थे दोनों दलों के कार्यकर्ता, आंसू गैस से हुए थे शांत डुमरा कोर्ट : समाहरणालय पर प्रदर्शन के दौरान तत्कालीन डीएम रामानंदन प्रसाद के आदेश पर पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर सबसे पहले आंसू गैस के गोले छोड़े थे. बावजूद इसका कोई असर प्रदर्शनकारियों पर नहीं पड़ा […]
कलेक्ट्रेट गोलीकांड . लाठीचार्ज के बाद और भड़क गये थे दोनों दलों के कार्यकर्ता, आंसू गैस से हुए थे शांत
डुमरा कोर्ट : समाहरणालय पर प्रदर्शन के दौरान तत्कालीन डीएम रामानंदन प्रसाद के आदेश पर पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर सबसे पहले आंसू गैस के गोले छोड़े थे. बावजूद इसका कोई असर प्रदर्शनकारियों पर नहीं पड़ा था.
तब पुलिस ने लाठी चार्ज किया था. इस पर भी प्रदर्शन कर रहे लोग शांत नहीं हुए तो डीएम से हरी झंडी मिलते हीं पुलिस फायरिंग शुरू कर दी थी. कहा जाता है कि पुलिस की ओर से 100 राउंड से अधिक फायरिंग की गयी थी. यह बात अलग है कि प्राथमिकी में 17 राउंड फायरिंग का ही जिक्र किया गया था.
खतरे को भांप गया था प्रशासन
बताया जाता है कि बाढ़ राहत की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे नेताओं व कार्यकर्ताओं में प्रशासन के प्रति काफी आक्रोश था. सुबह से हीं समाहरणालय के मुख्य द्वार पर नेता व कार्यकर्ता जुटने लगे थे.
सुबह 10-11 बजते ही हजारों की भीड़ जुट गयी थी. नेताओं का भाषण चल रहा था. इसी बीच, दर्जनों कार्यकर्ता समाहरणालय परिसर में घुस गये थे. इनके आक्रोश को देख प्रशासन यह भांप गया था कि इनकी मंशा शायद सही नहीं है. अंदर आने से रोकने के लिए हीं आंसू गैस के साथ ही लाठी चार्ज करनी पड़ी थी.
खदेड़-खदेड़ कर पीटा
पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए फायरिंग की थी. इस दौरान गोली से पांच लोगों की मौत हो गयी थी. पुलिस ने लोगों को खदेड़-खदेड़ कर पीटा था. जो लोग जहां मिल गये, पुलिस उसी जगह उन पर लाठियां बरपा दी थी.
बहुत से लोग बचने के लिए समाहरणालय के आसपास के होटलों व अन्य दुकानों में चले गये थे. पुलिस वहां भी पहुंच कर एक-एक की पिटाई की थी. हद तो तब हो गयी जब बचने के लिए कोर्ट व कोर्ट परिसर में छुपे लोगों को भी पुलिस नहीं बख्शी थी. यानी कोर्ट में भी जाकर पुलिस प्रदर्शनकारियों की पिटाई कर दी थी.
पुलिस की लाठियां सिर्फ प्रदर्शनकारियों को हीं नहीं लगी थी, बल्कि वे निदरेष लोग भी पिट गये थे जो होटलों में नाश्ता या खाना के लिए आये थे. वहीं, कोर्ट परिसर में केस-मुकदमे के सिलसिले में आये लोगों को भी पुलिस की लाठियां खानी पड़ी थी.
घटना जेहन में ताजा
उस दौरान जिन लोगों ने घटना को देखा था, वे अब भी भूले नहीं है. जब भी समाहरणालय गोली कांड का मामला आता है, तो उनकी आंखों के सामने पूरा मंजर एक फिल्म की तरह दिखने लगता है.
लोग यह नहीं भूले हैं कि कैसे पुलिस प्रदर्शनकारियों पर लाठी लेकर टूट पड़ी थी. पुलिस का वह खौफनाक चेहरा याद कर लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं.
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